भूमिका
जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ा है, तब-तब धर्म की पुनर्स्थापना हेतु ईश्वर ने अवतार लिया। त्रेता युग में भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और संपूर्ण मानवता को मर्यादा, संयम और धर्म की शिक्षा दी। रामनवमी, उनके दिव्य प्राकट्य की स्मृति का दिन, आज केवल एक धार्मिक पर्व न होकर, एक वैचारिक आंदोलन जैसा बन चुका है — विशेषकर तब, जब समाज मूल्यहीनता, असहनशीलता और असंतुलन की ओर अग्रसर हो रहा हो।

*राम का आदर्श और उसका सामाजिक महत्त्व*
श्रीराम का जीवन व्यक्तित्व निर्माण की पाठशाला है। वह राजा होकर भी प्रजा के सेवक हैं, योद्धा होकर भी विनम्र हैं, और पति, पुत्र, भ्राता, मित्र, हर संबंध में मर्यादा की पराकाष्ठा हैं।
आज के संदर्भ में, जब पारिवारिक ताने-बाने टूट रहे हैं, जब रिश्ते स्वार्थ के तराजू पर तौले जाते हैं, तब राम का जीवन यह सिखाता है कि त्याग, कर्तव्य और प्रेम में ही सच्चे संबंधों की नींव है।
*राजनीति में राम का आदर्श*
रामराज्य का अर्थ केवल एक धार्मिक कल्पना नहीं है, बल्कि वह आदर्श शासन प्रणाली है जिसमें—
राजा प्रजा के कल्याण हेतु उत्तरदायी होता है,
नीति और न्याय सर्वोपरि होते हैं,
शासन सेवा बनकर उभरता है, अधिकार नहीं।
आज जब राजनीति केवल सत्ता के लिए संघर्ष बन गई है, तब श्रीराम का आदर्श हमें याद दिलाता है कि राजा का धर्म प्रजा की भलाई में निहित होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत लाभ में।
*शिक्षा और युवा वर्ग में राम के विचारों की आवश्यकता*
युवाओं के लिए श्रीराम का चरित्र आत्मबल, संयम और उद्देश्य की स्पष्टता का आदर्श है। वे सिखाते हैं कि केवल विद्या ही नहीं, बल्कि सदाचार, सहनशीलता और विवेक आवश्यक हैं। आधुनिक शिक्षा पद्धति यदि श्रीराम जैसे चरित्रों से जुड़ जाए, तो मानसिक और नैतिक विकास संतुलित रूप से हो सकता है।
*रामनवमी और सांस्कृतिक जागरण*
रामनवमी भारतीय संस्कृति का उत्सव है — यह स्मरण कराता है कि हमारा अतीत केवल गौरवशाली ही नहीं, बल्कि मार्गदर्शक भी है। रामकथा केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है, जो हर पीढ़ी को धर्म और जीवन जीने की कला सिखाती है।
*समकालीन चुनौतियों के संदर्भ में रामनवमी का संदेश*
आज समाज जिन चुनौतियों से जूझ रहा है — जैसे नैतिक पतन, हिंसा, पर्यावरण संकट, पारिवारिक विघटन — उनमें श्रीराम का जीवन प्रकाश बनकर उभरता है:
जब राम वन में गए, तब उन्होंने प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व का संदेश दिया।
जब उन्होंने विभीषण को शरण दी, तो “शरणागत वत्सलता” का आदर्श स्थापित किया।
और जब उन्होंने सीता की अग्निपरीक्षा ली, तो उन्होंने एक राजा के दायित्व और व्यक्ति के द्वंद्व को दर्शाया।
यह सारे प्रसंग आज के संवैधानिक, सामाजिक और नैतिक विमर्शों से भी गहराई से जुड़े हुए हैं।
अतः रामनवमी — केवल पर्व नहीं, विचार है, रामनवमी केवल एक तिथि नहीं, यह एक चेतना है — जो हर युग में आवश्यक है। वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि हम तकनीकी विकास की दौड़ में मानवीय मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। ऐसे समय में राम एक पुकार हैं — धर्म की, मर्यादा की, न्याय की और करुणा की।
आज हमें केवल ‘जय श्रीराम’ कहने की नहीं, बल्कि ‘जियो श्रीराम’ का अभ्यास करने की आवश्यकता है।
*राम वही नहीं जो मंदिर में विराजते हैं,राम वह भी हैं जो जीवन में उतरते हैं।*
लेखक- डॉ सत्येंद्र सिंह नरवरिया
सहायक प्राध्यापक एवं ओसडी, माननीय मंत्री जी संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग, मध्यप्रदेश शासन