पागल नहीं होते मानसिक रोगी, जानिये क्या है OCD

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मानसिक स्वास्थ्य (mental health) को लेकर अब देश दुनिया में जागरुकता आ रही है। लोग इस बात को समझने लगे हैं कि मेंटल हेल्थ एक बहुत बड़ा मुद्दा है और इसपर बात करने और इसे लेकर जागरुक होने की जरुरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहता है कि यह “सलामती की एक स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप से काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है। हालांकि यह पहले ही कहा जा चुका है कि मानसिक स्वास्थ्य की कोई एक “आधिकारिक” परिभाषा नहीं है।

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आज कई लोग अलग अलग तरह की मनोवैज्ञानिक विकार (mental disorder) परेशानियों या बीमारियों का सामना कर रहे हैं। भागमभाग वाली जिंदगी ने तनाव, डिप्रेशन,एंजायटी जैसी समस्याएं बढ़ा दी है। बाइपोलर डिसॉर्डर और ओसीडी के मरीज़ों की संख्या भी बढ़ने लगी है। हमारे समाज में एक भ्रांति ये रही है कि मानसिक रोगी मतलब पागलपन की स्थिति। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। मानसिक रोगी पागल नहीं होते हैं। सही इलाज और थोड़े प्रेम से उनका उपचार पूरी तरह संभव है। यहां आज हम बात करेंगे ओसीडी (OCD) को लेकर। ओसीडी मतलब आब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (obsessive compulsive disorder) जो एक मानसिक रोग है। इसमें ऑब्सेशन (obsession) का मतलब है किसी भी व्यवहार की पुनरावृत्ति। किसी एक विचार से इतना अधिक प्रभावत या दुष्प्रभावित होता कि हम बार बार उसी को करते रहें और चाहकर भी छोड़ न पाएं। दूसरा शब्द है compulsion जो मजबूरी से जुड़ा है। उदाहरण के तौर पर अगर हमारे मन में ये विचार आ गया कि कोई गैस का नॉब बंद नहीं है तो हम बार बार गैस चेक करते रहेंगे। भले ही हमने देख क्यों न लिया हो कि वो बंद है लेकिन हम उस क्रिया को करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। इस तरह की क्रिया को ओसीडी की स्थिति कहेंगे।

किसी अनचाहे खयाल का बार बार मन में आना और बिहेवियर पर कंट्रोल न रह पाना इसकी निशानी है। इसमें व्यक्ति एक ही काम को रिपीट करता जाता है। इसमें सबसे बड़ी संख्या में लोग सफाई की झक से परेशान होते हैं। बार बार हाथ थोना, नहाना, किसी भी वस्तु को धो डालना, बाथरूम में घंटों गुजारना उनकी आदत में शुमार हो जाता है। इसके अलावा किसी को ये डर लगा रहता है कि उसने दरवाजा बंद किया या नहीं और बार बार उसे चेक करना या फिर फोन पर किसी चीज कों घंटों ताकते रहना सहित कई तरह के प्रकार हो सकते हैं। इसमें विचारों और भावनाओं पर कंट्रोल नहीं रह जाता और चाहकर भी मरीज इन खयालों को रोक नहीं पाता है।

ओसीडी कोई घातक बीमारी नहीं है लेकिन समय पर इसका इलाज न होने पर ये खतरनाक स्थिति में परिवर्तित हो सकती है। इसलिए यदि किसी में भी इसके लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर या साइकोलॉजिस्ट (psychologist) से परामर्श करना चाहिए। साथ ही अपने मन और दिमाग को भी मजबूत करने की जरुरत है। कोई भी डॉक्टर या मनोवैज्ञानिक आपकी तभी मदद कर सकता है जब आप ठीक होना चाहें। अपने दिमाग में सकारात्मक खयाल लाएं और खुद को अच्छी चीजों में व्यस्त रखने की कोशिश करें। ऐसे समय में घरवालों और दोस्तों का साथ बड़ी सहायता कर सकता है। ये बात परिजनों को समझना भी आवश्यक है कि मरीज के साथ प्रेम और धैर्य के साथ पेश आएं।

 

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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