मेडिकल साइंस की अविश्वसनीय कहानी, बिना Sex किये आखिर कैसे प्रेग्नेंट हुई लड़की

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। क्या शारीरिक संबंध बनाए बगैर गर्भधारण संभव है। क्या ये संभव है कि अगर किसी लड़की की ब्लाइंड वेजाइना (Blind Vagina) हो और उसने कभी प्रॉपर सेक्स (Sex) न कर सिर्फ ओरल सेक्स (Oral Sex) किया हो तब भी वो गर्भवती (Pregnant) हो जाए। ऐसा अजीबोगरीब मामला जब मेडिकल साइंस के सामने आया तो डॉक्टरों और विशेषज्ञों के होश उड़ गए।

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ये लड़की महज़ 15 साल की थी और उसके पेट में चाकू से वार (Stabbed) किए गए थे। उसने अस्पताल में डॉक्टरों को बताया कि उसके मौजूदा बॉयफ्रेंड, एक्स बॉयफ्रेंड और उसके बीच लड़ाई हुई और इसी दौरान दोनों लड़कों में से किसी ने उसपर चाकू से हमला कर दिया। चाकू का घाव उसके बाएं हाथ पर और पेट के ऊपरी हिस्से पर था। पेट का घाव काफी गहरा था जो आमाशय तक गया था। लड़की तो तुरंत सर्जरी के लिए ले जाया गया। सर्जरी के बाद करीब 10 दिन अस्पताल में रखने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई।

यहां तक तो ये एक सामान्य घटना थी, लेकिन कहानी में मोड़ आया 9 महीने बाद। 9 महीने बाद वही लड़की एक बार फिर अस्पताल पहुंची। इस बार उसके पेट में तेज़ दर्द हो रहा था। डॉक्टरों ने जांच की तो वो हैरान रह गए। लड़की गर्भवती थी और डिलीवरी का समय नजदीक था। पहले तो डॉक्टरों ने उसकी सिजेरियन डिलीवरी कराई और फिर उससे सारा मामला पूछा। दरअसल, डॉक्टरों की हैरानी की वजह ये थी कि लड़की मेडिकली शारीरिक संबंध बनाने में अक्षम थी। उसकी ब्लाइंड वेजाइना थी जिसकी गहराई सिर्फ 2 सेंटीमीटर थी। मतलब न तो वो इंटरकोर्स कर सकती थी न ही गर्भवती हो सकती थी न ही प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म दे सकती थी। उसे कभी पीरियड्स भी नहीं आए थे। फिर आखिर उसने गर्भधारण किया कैसे?

डॉक्टरों के पूछने पर लड़की ने बताया कि स्वस्थ वेजाइना न होने के कारण वो ओरल सेक्स करती थी। जब चाकू से वार हुआ था उस घटना से पहले भी उसने अपने मौजूदा बॉयफ्रेंड के साथ ओरल सेक्स किया था। लेकिन इस आधार पर गर्भघारण असंभव है। इसके बाद डॉक्टरों ने ये थ्योरी निकाली कि चाकूबाजी की घटना के दौरान कोई स्पर्मैटोजोआ (Spermatozoa) पेट में हुए घाव के रास्ते से प्रजनन अंगों तक पहुंचा होगा। इसके लिए उच्च पीएच वाला सलाइवा मददगार साबित हुआ होगा। क्योंकि जब उसे चाकू लगा था तब उसका आमाशय खाली था और किसी एसिड का निर्माण नहीं हो रहा था, इसलिये ये संभावना बनती है। सन 1988 में ये रिपोर्ट ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में ‘ओरल कॉन्सेपशनः इम्प्रिगनेशन वाया प्रॉक्सिमल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट इन पेशेंट विद ऐन एप्लास्टिक डिस्टल वैजाइना’ विषय से प्रकाशित हुई थी। इसके बाद भी इस केस पर कई दिनों तक चर्चा जारी रही। इस तरह मेडिकल साइंस के सामने कई अजीबोगरीब केस आते रहते हैं जो उसे चैलेंज करते हैं। लेकिन साइंस की खूबी यही है कि वो इन अजीब दिखने वाली घटनाओं में से तथ्यों को निकालें और विज्ञानसम्मत दृष्टि से उसका विश्लेषण करे।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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