अजब गजब : जब एक राजा ने पतलून पर कर दिए करोड़ों रुपए खर्च

लेखक, अनु शर्मा अनुभूति। भारत पर जब अंग्रेजों का राज्य था उस समय हमारे देश में कई छोटी-छोटी रियासतें थी ‌‌। जिस समय की यह बात है उस समय यद्यपि रियासतों पर अधिकारिक रूप से अंग्रेजों का शासन चलता था। परंतु राजाओं की शानो शौकत और फिजूलखर्चियां ज्यों की त्यों कायम थी । कुछ रंगीन मिजाज के राजा अपनी जिद और सनक के लिए प्रसिद्द थे।

ऐसे ही एक राजा को जॉर्ज पंचम की ओर से द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण भेजा गया। अधेड़ उम्र के राजा साहब पोलो, ब्रिज जुआ खेलने व शराब पीने में नंबर 1 थे धड़ल्ले से अंग्रेजी बोलते थे। निमंत्रण पाते ही वे इस उधेड़बुन में लग गए ऐसा क्या किया जाए जिससे इंग्लैंड में उनके नाम की धूम हो जाए? जब उन्होंने सुना की गांधीजी गोलमेज सम्मेलन में लंगोटी पहनकर जाएंगे तो उनके दिमाग में एक विचार आया क्यों ना एक ऐसी पतलून बनवाई जाए जो गांधीजी की लंगोटी से भी अधिक चर्चित हो जाए। फिर क्या था शुरू हुई राजा साहब की पतलून बनने की प्रक्रिया।

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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।