विज्ञापन जिन्होने ब्रांड को दी नई पहचान, घर घर तक पहुंची कंपनी

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आज हम बाज़ारवादी युग में जी रहे हैं। हमारे जीवन में बाज़ार इस कदर हावी है कि वो किचन से लेकर बेडरूम और पूजाघर तक आ गया है। ऐसे में जब बाज़ार में वस्तुओं की भरमार है..उसे बेचना भी एक कला है। और इस कला का नाम है विज्ञापन (Advertisement)। किसी उत्पाद अथवा सेवा को बेचने या फिर प्रवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला जनसंचार विज्ञापन कहलाता है। हम रोजाना सैकड़ों विज्ञापन देखते हैं। टीवी पर, मोबाइल पर, दीवारों पर, ट्रेन टेक्सी बस में यहां तक कि मौखिक विज्ञापनों की भी भरमार है। इनका उद्देश्य अपने उत्पाद का प्रचार और उसे अधिक से अधिक ग्राहकों तक पहुंचाना होता है। लेकिन सभी विज्ञापन सफल भी नहीं होते और सबमें वो क्रिएटिविटी भी नहीं होती। जिनमें होती है वो सालों तक लोगों के ज़हन में बसे रहते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही विज्ञापनों के बारे में बताएंगे..जिन्होने अपनी खास जगह बनाई और अरसा बीत जाने पर भी उनकी याद बरकरार है।

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सबसे पहले नंबर पर हम लिरिल (liril) सोप के विज्ञापन को याद करेंगे। वॉटरफॉल के नीचे नहाती लिरिल गर्ल को भला कौन भूल सकता है। ये उस समय का बोल्ड विज्ञापन था जो हिंदुस्तान यूनिलीवर कंपनी के लिरिल साबुन के लिए बनाया गया था। इसे विज्ञापन बनाने वाली नामी कंपनी लिंटास ने बनाया था। इसमें सबसे पहले करेन लुनेल नाम की मॉडल पर फिल्माया गया। हालांकि बाद में इसे कई और चेहरे भी मिले और ये विज्ञापनों की दुनिया में एक माइलस्टोन बन गया।

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सर्फ (surf) का विज्ञापन भला कौन भूल सकता है। ललिला जी का मशहूर डायलॉग ‘सर्फ की खरीदारी में ही समझदारी है’ ने इसे घर घर में मशहूर किया। एक समय में डिटर्जेंट पाउडर का पर्याय ही सर्फ बन गया था। भले किसी को कोई भी ब्रांड का डिटर्जेंट खरीदना हो, वो इसे सर्फ ही बोलता। आज भी सर्फ अपनी कैटेगरी में बहुत पॉपुलर है।

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फिर से साबुन की बात करें तो संतूर (santoor) के विज्ञापन में भले चाहे जो बदल गया हो, लेकिन कॉन्सेप्ट वही है। इसमें एक महिला है ‘जिसकी त्वचा से उसकी उम्र का पता नहीं चलता।’ ये टैग लाइन इतनी मशहूर हुई कि लोग अक्सर ही अलग अलग जगहों पर इसे इस्तेमाल करने लगे। चाहे एक बच्चे की मां हो या कोई वर्किंग वूमन, संतूर से नहाकर हर कोई कॉलेज गोइंग गर्ल लगती है। यही इस विज्ञापन ने लोगों को समझाया और ये सुपरहिट भी रहा।

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‘शादी हो त्योहार, लिज्जत लिज्जत पापड़ हर बार’ जब घर घर में पापड़ बनाने की रवायत थी, उस समय लिज्जत पापड़ के विज्ञापन ने खूब धूम मचाई और मार्केट में अपना ऐसा दबदबा बनाया कि आज भी उसका नाम पापड़ सेगमेंट में एकदम ऊपर है।

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1929 में मुंबई के विले पार्ले में पारले-जी (Parle G) नाम की कंपनी शुरु हुई। ये पहले ग्लूको बिस्कुट के नाम से जानी जाती थी। पारले-जी में तब्दील होने के बाद इसके पैकेट में एक बहुत ही प्यारी बच्ची का फोटो लगाया गया जो काफी पॉपुलर हुई। लोग जानना चाहते थे कि ये बच्ची कौन है, लेकिन असल में वो एक इलस्ट्रेशन थी जिसे मगनलाल दहिया नाम के कलाकार ने बनाया था।

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90 के दशक में एक क्यूट बच्चा अपना घर छोड़कर जाना चाहता है। लेकिन उसके घरवाले उसे जलेबी का लालच देकर रोक लेते हैं। ‘धारा ऑयल’ का ये जलेबी एड इतना मशहूर हुआ कि उसने इस तेल की घटती लोकप्रियता को एक बार फिर ऊंचाई दे दी। इस विज्ञापन में काम करने वाला बच्चा आज बड़ा हो गया है, लेकिन विज्ञापन अब भी लोगों के मन में बसा हुआ है।

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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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