क्या आपको याद है करीब 15-20 साल पहले ग्रामीण इलाकों में मुख्य भोजन मोटे अनाज का होता था। उस समय अधिकतर ज्वार, बाजरा, मक्का और इसी तरह की स्थानीय फसल के आटे की बनी रोटियां खाई जाती थी। तब गेहूं एक महंगा और कभी कभार खाया जाने वाला अनाज था। ग्रामीण इलाकों में तो कई बार गेहूं की रोटी त्योहार पर या किसी शहरी मेहमान के आने पर ही बनाई जाती थी।
लेकिन धीरे-धीरे गेहूं ने मोटे अनाज की जगह ले ली और यही प्रचलन में आ गया। मगर अब कई रिसर्च के बाद डाक्टर्स और डाइटीशियन्स का कहना है कि गेहूं स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है और इसकी जगह हमें मोटा अनाज ही खाना चाहिए। आखिर क्यों गेहूं को सेहत के लिए हानिकारक बताया जा रहा है, और अगर ऐसा है तो हम इसकी जगह क्या खा सकते हैं।
गेहूं की रोटी खाने से मना करने की वजह है गेहूं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन जिसे ग्लूटेन कहते हैं। यही वह प्रोटीन है जो गेहूं के आटे को गूंधने पर उसे बांध देता है। सामान्य भाषा में हम कहते हैं कि गेहूं में लस है, मैदे में और अधिक लस होता है। तो जिसमें जितना अधिक लस या बांधने की क्षमता होगी, उसमें उतना अधिक ग्लूटेन होगा। जिन अनाजों में यह ग्लूटेन प्रोटीन नहीं पाया जाता है, उन का आटा गूंधना और रोटी बनाना कठिन होता है। अब जरा सोचिए, क्यों ज्वार या बाजरे की रोटी को हाथों से थापकर बनाया जाता है। इसीलिए क्योंकि उसमें ग्लूटेन नहीं है और इस कारण वो गेहूं के आटे की तरह बेलन से बेली नहीं जा सकती।
ग्लूटेन प्रोटीन सीलिएक रोग से पीडि़त लोगों के लिए काफी खतरनाक होता है. सीलिएक रोग से पीड़ित लोगों को गेहूं की रोटी खाने से पेट में अफरा, गैस,डायरिया, उल्टी, माइग्रेन (सिर दर्द) और जोड़ों के दर्द की तकलीफ हो सकती है। सीलिएक रोग सीधे छोटी आंत की पाचनक्रिया को प्रभावित करता है। डाक्टरों के मुताबिक ये लाइलाज बीमारी है, जिस से बचने के लिए परहेज ही इकलौता रास्ता है।
ग्लूटेन असहनशीलता तब होती है, जब गेहूं में पाए जाने वाला ग्लूटेन प्रोटीन, पेट के अंदर मौजूद कोशिकाओं में विपरीत प्रतिक्रिया उत्पन्न कर देता है। इस रोग की तीव्रता, प्रकार और जीनोमिक बनावट पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को गेहूं से एलर्जी है या वो सैलिएक रोग से पीड़ित है। सैलिएक रोग में व्यक्ति पूरी तरह से ग्लूटेन प्रोटीन के प्रति असहनशील होता है। यह समस्या बच्चों और वयस्कों दोनों में हो सकती है।
देश विदेश में ग्लूटेन को लेकर लगातार रिसर्च हो रही है। अमेरिकी वैज्ञानिक डा. डेविड पर्लमुटर ग्लूटेन के सख्त विरोधी हैं। उनके मुताबिक आज 40 फीसदी अमेरिकी लोग ग्लूटेन को नहीं पचा सकते और बाकी 60 फीसदी भी इस की चपेट में आ रहे हैं। यही हाल दुनिया के अलग अलग स्थानों पर है। डा. डेविड ने गेहूं, चीनी व दूसरी कार्बोहाइड्रेट वाली चीजों को मनुष्य के लिए घातक बताया है।
यही वजह है कि आज बाजार में ग्लूटेन फ्री आटा भी मिलता है, जिसे सफेद चावल के आटे, आलू के स्टार्च,टैपियोका के स्टार्च, ग्वार गम और नमक मिला कर बनाया जाता है। गेहूं से होने वाले रोगों से बचने के लिए चौलाई, कुटू, मक्का, काला चना, तिल, रामदाना,चावल, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन, अखरोट, बादाम,पिस्ता आदि से बनी चीजें खाने की सलाह दी जाती है।