क्या आप भी ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंट हैं? कहीं आप प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग के शिकार तो नहीं, जानें

Parenting Tips: क्या आप भी अपने बच्चे को हर कदम पर देख-रेख करते हैं, उसके हर फैसले में इंटरफेयर करते हैं, और उसकी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते हैं? अगर हां, तो शायद आप ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंट्स की केटेगरी में आते हैं।

भावना चौबे
Published on -
Parenting Tips

Parenting Tips: प्लास्टिक रैप पेरेंटिंग एक अनोखा और दिलचस्प पेरेंटिंग स्टाइल है जिसे कुछ पेरेंट्स बच्चों की परवरिश में अपनाते हैं। इस पेरेंटिंग स्टाइल का मुख्य उद्देश्य बच्चों को अधिक सुरक्षा देखभाल और संरचना देना है लेकिन इसे कुछ हद तक अत्यधिक नियंत्रण के रूप में भी देखा जा सकता है। इससे शैली में पेरेंट्स बच्चों की हर गतिविधि पर गहरी नजर रखते हैं। उनका हर कदम तय करने की कोशिश करते हैं और बच्चों के आसपास का वातावरण बहुत ही सुरक्षित बनाने की कोशिश करते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस तरह की पेरेंटिंग स्टाइल को प्लास्टिक रैप पेंटिंग क्यों कहा जाता है, क्योंकि जैसे प्लास्टिक रैप किसी चीज को ढककर उसे सुरक्षित रखता है, ठीक उसी प्रकार पेरेंट्स अपने बच्चों को अपनी सुरक्षा के घेरे में रखते हैं। हालांकि, इस पेरेंटिंग स्टाइल उपयोग करने से बच्चों को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, जिसके बारे में आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे।

आत्मविश्वास पर असर

जब पेरेंट्स बच्चों को हमेशा अपने निगरानी में रखते हैं और उन्हें खुद से फैसले लेने का मौका नहीं देते हैं, तो इससे बच्चे का आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है। उन्हें यह नहीं सीखने मिलता की स्वतंत्र रूप से सोचने और निर्णय लेने की क्षमता कैसे विकसित की जाती है।

मानसिक स्थिति पर प्रभाव

ओवर प्रोटेक्टिव पेरेंटिंग से बच्चों पर अत्यधिक दबाव पड़ सकता है। वह महसूस कर सकते हैं कि उन्हें अपनी गलतियों से सीखने का अवसर नहीं मिल रहा है, जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

सामाजिक कौशल की कमी

जब बच्चे हमेशा अपनी मां-बाप की सुरक्षा में रहते हैं, तो वह खुद को असुरक्षित महसूस कर सकते हैं और बाहर की दुनिया में सामना करने की क्षमता विकसित नहीं कर पाते हैं। इससे उनकी सामाजिक कौशल में कमी आ सकती है।

निर्णय लेने की क्षमता

अगर बच्चों को हमेशा पेरेंट्स पर निर्भर रखा जाए तो वह खुद के फैसले लेने में खुद को सक्षम महसूस नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चे हमेशा कंफ्यूजन में रहते हैं। यह उनकी आत्मनिर्भरता को बाधित करता है और भविष्य में उन्हें बड़े फैसले लेने में मुश्किल हो सकती है। इसलिए बच्चों की सुरक्षा और देखभाल जरूरी है, उन्हें स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का मौका भी देना चाहिए। ताकि वह आत्मविश्वास से भरें और जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सके।

 


About Author
भावना चौबे

भावना चौबे

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

Other Latest News