क्या होता है Silent treatment, मेंटल हेल्थ के लिए हो सकता है खतरनाक, जानिए साइलेंट ट्रीटमेंट के पीछे का मनोविज्ञान

साइलेंट ट्रीटमेंट किसी व्यक्ति का स्वभाव भी हो सकता है और मनोवैज्ञानिक रणनीति भी। संवाद हर रिश्ते में सेतु का काम करता है। अगर दो लोगों में किसी भी तरह का विवाद हो तो उसे सुलझाने के लिए बात करना सबसे सही तरीका है। लेकिन साइलेंट ट्रीटमेंट में एक पक्ष पूरी तरह खामोशी ओढ़ लेता है जिसका असर न सिर्फ दूसरे पक्ष पर बल्कि दोनों के रिश्ते पर भी पड़ता है। ये आदत व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को कमजोर कर सकती है। साइलेंट ट्रीटमेंट मानसिक स्वास्थ्य पर कई नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और ये व्यवहार भावनात्मक दुरुपयोग की श्रेणी में भी आता है।

What is silent treatment

Understanding Silent Treatment : क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी के साथ कोई अनबन हुई हो..लड़ाई या बहस हुई हो और इसके बाद सामने वाला व्यक्ति एकदम चुप हो जाए। ये ऐसी स्थिति होती है कि एक पक्ष इस चुप्पी से परेशान हो जाए, उसके मन में ये खयाल आए कि इस खामोशी से तो बेहतर है कि लड़-झगड़ ही लिया जाए लेकिन सामने वाले की चुप्पी ही न टूटे। इसे साइलेंट ट्रीटमेंट कहते हैं।

साइलेंट ट्रीटमेंट भी एक संचार का तरीका है। इसे खामोशी की भाषा भी कहा जा सकता है। साइलेंट ट्रीटमेंट में कोई व्यक्ति जानबूझकर सामने वाले से बातचीत करना बंद कर देता है और उसे अनदेखा करता है। इसे आमतौर पर नाराजगी, असहमति या किसी समस्या के समाधान के बजाय संवाद से बचने के लिए किया जाता है। इसे भावनात्मक दुरुपयोग या मनोवैज्ञानिक नियंत्रण की एक रणनीति के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि यह दूसरे व्यक्ति पर मानसिक और भावनात्मक दबाव डालने का प्रयास होता है।

साइलेंट ट्रीटमेंट के पीछे क्या है मनोविज्ञान

साइलेंट ट्रीटमेंट एक प्रकार का भावनात्मक दुरुपयोग है जिसमें व्यक्ति सामने वाले से संवाद करने से पूरी तरह बचता है। यह आमतौर पर किसी विवाद या नाराजगी के दौरान किया जाता है और इसका उद्देश्य दूसरे पक्ष को हताश, परेशान या दोषी महसूस कराना होता है। यह व्यवहार व्यक्तिगत संबंधों में, कार्यस्थलों पर, यहां तक कि सामाजिक संबंधों में भी देखने को मिलता है। मनोविज्ञान के अनुसार, साइलेंट ट्रीटमेंट एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक नियंत्रण का प्रयास हो सकता है, जहां व्यक्ति अपने चुप्पी के जरिए दूसरे पर ताक़त जमाना, उसे गिल्ट महसूस कराना या नियंत्रण करना चाहता है।

साइलेंट ट्रीटमेंट का कारण

साइलेंट ट्रीटमेंट के पीछे कई कारण हो सकते हैं। यहां असुरक्षा की भावना एक बड़ी वजह है। व्यक्ति अपने विचारों या भावनाओं को व्यक्त करने से बचता है, क्योंकि वह भावनात्मक रूप से आहत या हारा हुआ महसूस कर सकता है। वहीं ये सामने वाले को कंट्रोल करने की भी कोशिश होती है। यह एक तरीका हो सकता है जिससे व्यक्ति सामने वाले को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। इसी के साथ ये व्यक्ति के बचाव का तरीका भी हो सकता है। कुछ लोग विवाद या असहमति से बचने के लिए साइलेंट ट्रीटमेंट का सहारा लेते हैं, क्योंकि उन्हें सीधे बातचीत करने में असुविधा महसूस होती है। साइलेंट ट्रीटमेंट का मुख्य उद्देश्य सामने वाले व्यक्ति को असहज, अपराधबोध या चिंतित महसूस कराना हो सकता है। हालांकि यह तरीका कई बार किसी तात्कालिक गुस्से या नाराजगी के चलते व्यवहार में लाया जाता है, लेकिन लंबे समय तक ऐसा करना रिश्तों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

साइलेंट ट्रीटमेंट के दुष्प्रभाव

साइलेंट ट्रीटमेंट का दूसरे पर पक्ष पर काफी गहरा असर हो सकता है। अगर ये लगातार हो तो व्यक्ति की मेंटल हेल्थ को भी प्रभावित कर सकता है। इसका मानसिक स्वास्थ्य पर कई नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। यह व्यवहार एक प्रकार की भावनात्मक दुरुपयोग की श्रेणी में आता है, जिससे मानसिक तनाव, अवसाद और आत्मसम्मान की कमी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। विस्तार से समझते हैं कि यह मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है:

1. चिंता और तनाव (Anxiety and Stress)

साइलेंट ट्रीटमेंट पाने वाला व्यक्ति लगातार इस चिंता में रहता है कि उसने क्या गलत किया या क्यों उसे नजरअंदाज किया जा रहा है। यह मानसिक दबाव पैदा करता है और लंबे समय तक जारी रहने पर व्यक्ति में चिंता का विकास हो सकता है। यह स्थिति और भी तनावपूर्ण हो जाती है जब व्यक्ति को समस्या का समाधान नजर नहीं आता या संवाद का कोई रास्ता नहीं होता।

2. अवसाद (Depression)

लगातार अस्वीकृति और साइलेंस का सामना करने से व्यक्ति में अवसाद की संभावना बढ़ जाती है। साइलेंट ट्रीटमेंट के कारण व्यक्ति खुद को अकेलाऔर असहाय महसूस कर सकता है। उसे लग सकता है कि उसकी भावनाओं और जरूरतों को नजरअंदाज किया जा रहा है, जिससे उसकी आत्म-सम्मान की भावना को नुकसान पहुँचता है और अवसाद के लक्षण विकसित हो सकते हैं।

3. आत्मसम्मान में कमी (Lower Self-Esteem)

जब कोई व्यक्ति लगातार साइलेंट ट्रीटमेंट का सामना करता है, तो वह अपने आप को दोषी मानने लगता है। उसे लग सकता है कि उसके साथ कुछ गलत है या वह दूसरों के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। यह नकारात्मक आत्म-धारणा को जन्म देता है, जिससे उसका आत्म-सम्मान कम होता है और वह खुद को कमज़ोर महसूस करने लगता है।

4. भावनात्मक अस्थिरता (Emotional Instability)

साइलेंट ट्रीटमेंट व्यक्ति के अंदर भावनात्मक अस्थिरता पैदा कर सकता है। उसकी भावनाएं अनिश्चित हो जाती हैं जैसे कभी गुस्सा, कभी दुख, और कभी अपराधबोध। यह मानसिक अस्थिरता व्यक्ति के दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकती है और उसके रिश्तों में समस्याएं खड़ी कर सकती है।

5. अलगाव और अकेलापन (Isolation and Loneliness)

साइलेंट ट्रीटमेंट के दौरान व्यक्ति को ऐसा महसूस हो सकता है कि वह अकेला है और किसी से बात नहीं कर सकता। यह भावना व्यक्ति को समाज और अपने रिश्तों से अलग-थलग कर देती है, जिससे वह और भी अधिक अकेलापन महसूस करता है। सामाजिक समर्थन की कमी मानसिक स्वास्थ्य को और अधिक प्रभावित कर सकती है।

6. असुरक्षा की भावना (Feelings of Insecurity)

जब कोई व्यक्ति साइलेंट ट्रीटमेंट का सामना करता है, तो वह अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हो सकता है—खासतौर पर रिश्तों में। उसे यह डर हो सकता है कि उसे छोड़ दिया जाएगा या वह अन्य रिश्तों में भी अस्वीकार कर दिया जाएगा। यह असुरक्षा की भावना व्यक्ति की मानसिक स्थिरता को कमजोर कर सकती है।

7. पुनः आघात (Re-traumatization)

अगर व्यक्ति ने पहले भी किसी प्रकार के भावनात्मक दुरुपयोग या अस्वीकृति का सामना किया है, तो साइलेंट ट्रीटमेंट उसके लिए एक पुनः आघात हो सकता है। इससे पुराने घाव फिर से ताजा हो सकते हैं और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति और भी खराब हो सकती है।

मनोविज्ञान के अनुसार समाधान

मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि साइलेंट ट्रीटमेंट से बचने के लिए खुलकर संवाद करना बेहद महत्वपूर्ण है। समस्या का समाधान बातचीत से निकालने की कोशिश करें। खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना साइलेंट ट्रीटमेंट से बचने का सबसे बेहतर तरीका हो सकता है। यदि साइलेंट ट्रीटमेंट देने वाला व्यक्ति स्वयं को बदलने की इच्छा रखता है तो वह धीरे-धीरे संवाद की आदत डाल सकता है। यदि यह समस्या गंभीर महसूस हो तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से मदद लेना आवश्यक है।

(डिस्क्लेमर : ये लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। हम इसे लेकर कोई दावा नहीं करते। आवश्यक होने पर विशेषज्ञ का परामर्श लें।)


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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