Freeganism : उपभोक्तावाद बनाम फ्रीगनिज्म, फेंकने से पहले सोचें, दुनियाभर में तेजी से लोकप्रिय होती अवधारणा

आज नहीं तो कल..ये बात समझनी होगी कि हम जितना अधिक उपभोग कर रहे हैं, उससे ज्यादा बर्बाद कर रहे हैं। नए कपड़े, गैजेट्स, महंगे फूड आइटम्स, घरेलू सामान..हर चीज जरूरत से ज्यादा खरीदते हैं और उसका पूरा उपयोग किए बिना कुछ ही समय में खारिज कर देते हैं। अगर हम अपनी उपभोक्तावादी आदतों को नहीं बदलेंगे तो आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसलिए अब समय आ गया है सोचने का कि क्या हम सच में जरूरत के लिए चीजें खरीद रहे हैं या सिर्फ बाजार के लालच में फंसते जा रहे हैं।

Shruty Kushwaha
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Freeganism- Challenging Consumerism, Reducing Waste : क्या आप अपनी कोई ड्रेस सिर्फ दो चार बार पहनने के बाद उसे बेकार मानकर अलमारी से हटा देते हैं? या डाइनिंग टेबल पर बचा हुआ भोजन बिना सोचे-समझे डस्टबिन में डाल देते हैं। अगर हां..तो यह आदत न सिर्फ आपके पैसे की बर्बादी है, बल्कि पर्यावरण और समाज पर भी बुरा असर डाल रही है।

आज हम बात कर रहे हैं फ्रीगनिज्म की..ये एक ऐसी जीवनशैली है जो हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि हम जो कुछ फेंक रहे हैं, क्या वह वाकई बेकार है। क्या आपने कभी सोचा है कि जो खाना आपने प्लेट में छोड़ा है, वो किसी भूखे व्यक्ति का पेट भर सकता था। रिपोर्ट्स बताती है कि दुनिया में हर साल लगभग एक तिहाई भोजन बर्बाद हो जाता है। ऐसे में फ्रीगनिज्म को समझना और महत्वपूर्ण हो जाता है।

हम जो फेंक रहे हैं, वो किसी और के लिए जरूरी हो सकता है

आज के उपभोक्तावादी दौर में बाज़ार हमें सिखा रहा है कि हर बार नई चीजें खरीदना जरूरी है..भले ही पुरानी चीज अब भी उपयोगी हो। कपड़े, जूते हों, गैजेट्स हों या फिर भोजन..अक्सर लोग बिना सोचे-समझे नई चीजें खरीदते रहते हैं और पुरानी फेंक देते हैं। इससे न सिर्फ संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि पर्यावरण पर भी बोझ बढ़ता है। लेकिन संसाधनों को बचाने के साथ हमें इस बात को भी समझना होगा कि हर संसाधन पर दुनियाभर में हर व्यक्ति का समान अधिकार है। और ये तभी संभव है जब सक्षम लोग इस बात को समझेंगे और इस दिशा में कदम बढ़ाएंगे। इसी सोच को लेकर दुनिया में फ्रीगनिज्म की कॉन्सेप्ट धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है।

Freeganism: बर्बादी रोकें, पर्यावरण बचाएं, जरूरतमंदों की मदद करें

फ्रीगनिज्म सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जो हमें उपभोक्तावादी मानसिकता से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करता है। फ्रीगनिज्म एक जीवनशैली है जिसमें लोग उपभोक्तावाद का विरोध करते हुए संसाधनों के दुबारा उपयोग और कचरे में फेंकी गए उपयोगी वस्तुओं को रिसाइकिल पर जोर देते हैं। फ्रीगन शब्द ‘फ्री’ (मुफ्त) और ‘वीगन’ (डेयरी फ्री शाकाहारी) से मिलकर बना है। हालांकि सभी फ्रीगन शाकाहारी नहीं होते हैं।

फ्रीगनिज्म का उद्देश्य और महत्व

इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य खाद्य पदार्थों की बर्बादी को कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना और उपभोक्तावादी संस्कृति के नकारात्मक प्रभावों के प्रति जागरूकता फैलाना है। फ्रीगनिज्म खासतौर पर रूप से अमेरिका और यूरोप के शहरी क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हो रहा है। अब यहां पर फ्रीगन समुदाय सुपरमार्केट, रेस्तरेंट और अन्य स्थानों से फेंके गए खाद्य पदार्थों को इकट्ठा करके उनका दुबारा उपयोग करते हैं।

फ्रीगनिज्म का महत्व कई तरह से है। ये पर्यावरण संरक्षण में मददगार है। खाद्य अपशिष्ट को कम करके, फ्रीगनिज्म लैंडफिल में जाने वाले कचरे की मात्रा को घटाता है। ये आंदोलन उपभोक्तावाद और खाद्य उत्पादन प्रणालियों के नकारात्मक प्रभावों के प्रति जागरूकता बढ़ाता है। वहीं, इससे आर्थिक लाभ भी हैं। फ्रीगन लोग मुफ्त में खाद्य पदार्थ और अन्य वस्तुओं का उपयोग करके अपनी जीवनयापन लागत को कम करते हैं, जिससे उनका खर्च कम होता है।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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