‘If you pay peanuts, you get monkeys’ क्या आपको भी है कम वेतन मिलने की शिकायत, जानिए इस अंग्रेजी कहावत का संदर्भ और अर्थ

इस कहावत का संबंध कर्मचारियों के वेतन और उनके कार्य की कुशलता से है। अक्सर लोगों को इस बात का अफ़सोस और शिकवा रहता है कि उनके श्रम, योग्यता और कार्य का सही मूल्यांकन नहीं हो रहा है। ख़ासकर प्राइवेट सेक्टर में तो ये बात काफी प्रचलित है। और अगर किसी व्यक्ति को उसकी मेहनत के बदले सही वेतन न मिले तो उसके काम पर भी असर पड़ेगा। न तो वो उस रुचि से अपना काम कर पाएगा, न ही उसकी निष्ठा और समर्पण ही रहेगा। कुल मिलाकर, यह कहावत संगठनों के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है कि यदि वे उत्कृष्टता और कार्य की गुणवत्ता चाहते हैं, तो उन्हें अपने कर्मचारियों को उचित वेतन और संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।

If You Pay Peanuts, You Get Monkeys

If you pay peanuts, you get monkeys : क्या आपके भी कभी लगा है कि आपकी तनख़्वाह बहुत कम है ? आप जो काम कर रहे हैं, नौकरी कर रहे हैं, उस काम के बदले आपको मूंगफली जितना वेतन दिया जा रहा है ? आख़िर ऐसा क्यों है ? हमारा सवाल ‘कम वेतन’ को लेकर नहीं बल्कि इस ‘मूंगफली जितने वेतन’ कहावत को लेकर है। आख़िर कम तनख़्वाह की तुलना मूंगफली के करने का रिवाज़ कैसे पड़ा। कैसे बनी कहावत ‘इफ़ यू पेज़ पीनट्स, यू गेट मंकीज़’।

इसका शाब्दिक अर्थ हुआ कि अगर आप मूंगफली जितनी तनख़्वाह देंगे तो आपके बदले में बंदर जैसे अयोग्य कर्मचारी मिलेंगे। लेकिन बेचारी मूंगफली ने किसी का क्या बिगाड़ा है जो उसका उपयोग ‘कम’ को ज़ाहिर करने के लिए किया गया। और बंदरों ने कब किस कंपनी में नौकरी कर ली जो उन्हें अयोग्य या कमज़ोर कर्मचारी के तरह उदाहरण में पेश किया गया। आख़िर इस कहावत की उत्पत्ति कैसे हुई ?

If you pay peanuts, you get monkeys कहावत का अर्थ

‘If you pay peanuts, you get monkeys’ एक अंग्रेज़ी कहावत है और इसका अर्थ मुख्य रूप के कर्मचारियों के वेतन और उनके प्रदर्शन से जुड़ा है। यह कहावत सर्विस सेक्टर, व्यापार और प्रबंधन जगत में इस्तेमाल होती है और कहती है कि यदि आप कम वेतन यानी कि मूंगफली (Peanuts) के बराबर  देंगे, तो आपको अयोग्य या कम-योग्य या कमज़ोर कर्मचारी (Monkeys) ही मिलेंगे। इस कहावत का प्रयोग मुख्य रूप से व्यापार, प्रबंधन और सरकारी सेवाओं में उस स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है जहाँ कर्मचारियों को कम भुगतान करने से उनकी कार्यक्षमता या योग्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कहावत का सरल मतलब यह है कि अगर किसी संगठन या कंपनी में कर्मचारियों को बहुत कम वेतन दिया जाता है, तो उसमें काबिल और योग्य लोग नहीं टिक पाएँगे। सिर्फ वे लोग रहेंगे जो या तो अनुभवहीन हैं या काम में उतने कुशलता नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि किसी भी संस्था या संगठन को गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए उचित वेतन और संसाधन देना जरूरी है। यह कहावत व्यापार, सरकारी नौकरियों और किसी भी प्रकार के संगठनों में उच्च स्तर की कर्मठता और उत्पादकता को प्रोत्साहित करने के संदर्भ में प्रयोग की जाती है।

कहावत की उत्पत्ति

इसकी सटीक उत्पत्ति विवादित है, लेकिन यह आमतौर पर 20वीं सदी की कहावत मानी जाती है। इसका सबसे पहला उपयोग ब्रिटिश या अमेरिकी व्यापारिक संदर्भ में हुआ माना जाता है। हालाँकि, इस कहावत के सबसे पहले प्रयोग का कोई प्रमाणिक स्रोत नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव मुख्य रूप से पश्चिमी व्यवसायिक और प्रबंधन जगत से जुड़ा हुआ है।

कहावत की शुरुआत 1940-1950 के दशक में मानी जाती है, जब व्यापारिक और औद्योगिक जगत में योग्य कर्मचारियों की कमी महसूस की जा रही थी और यह समझ आने लगी कि कर्मचारियों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उन्हें उचित वेतन दिया जाना जरूरी है। उस समय यह कहावत एक चेतावनी के रूप में प्रयोग की जाने लगी कि यदि वेतन और संसाधन पर्याप्त नहीं होंगे तो परिणामस्वरूप कम कुशल या अयोग्य कर्मचारी ही मिलेंगे।

संदर्भ और महत्व

इस कहावत का अर्थ है कि अगर कोई संगठन या कंपनी अपने कर्मचारियों को बहुत कम वेतन देती है तो वह अच्छी गुणवत्ता वाले कर्मचारी नहीं रख पाएगी। इससे सिर्फ वे लोग आकर्षित होंगे, जिनकी योग्यता कम है या जिनका काम में उत्साह और कुशलता उतनी अधिक नहीं है। इसका प्रयोग उन स्थितियों में किया जाता है जब यह दिखाना होता है कि कम वेतन देने से योग्य और मेहनती लोगों की बजाय कम अनुभवी या अयोग्य कर्मचारी ही मिल पाएंगे।

  1. व्यापारिक संदर्भ: इस कहावत का प्रयोग मुख्य रूप से व्यापार, सरकारी सेवाओं, और औद्योगिक क्षेत्रों में होता है, जहाँ कर्मचारियों की कुशलता और वेतन का सीधा संबंध होता है। यह प्रबंधन के लिए एक संदेश है कि अगर वे सस्ते में काम चलाना चाहेंगे, तो उन्हें अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगे।
  2. महत्व: यह कहावत प्रबंधन और नेतृत्व के लिए एक सबक है कि कर्मचारियों में निवेश किया जाना चाहिए ताकि अच्छे परिणाम मिल सकें। यदि वेतन या संसाधनों में कटौती की जाती है, तो इससे कार्य की गुणवत्ता में गिरावट आएगी।

इस कहावत से साफ़ होता है कि अगर किसी संगठन, संस्थान, फैक्ट्री, व्यापार आदि में अनुभवी और कुशल कर्मचारियों को आकर्षित करना है और सही तरह से उनकी योग्यता का उपयोग करना है तो उनके वेतन और सुविधाओं का भी पूरी तरह से ख्याल रखना होगा।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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