Diwali 2022 : दिवाली मनाने के पीछे हैं कई कहानियां, जानिये मान्यताएं और पौराणिक कथाएं

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मान्यता है कि दिवाली (Diwali 2022) के दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे और उनके आगमन पर अयोध्यावासियों ने हर्ष में घी के दीप जलाए और आतिशबाजी की। कार्तिक मास की वो अमावस वाली रात्रि इन खुशियों से जगमगा उठी और तभी से दीपावली मनाने की परपंरा प्रारंभ हुई। इसी तरह हर त्यौहार के पीछे कोई कहानी या मान्यता होती है। दिवाली को लेकर भी कई तरह की कहानियां प्रचलित है।

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साहूकार की बेटी और लक्ष्मीजी की मित्रता

एक अन्य कथा अनुसार एक गांव में साहूकार रहता था और उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाती थी। उस पेड़ पर लक्ष्मीजी का वास था और एक दिन उन्होने साहूकार की बेटी से कहा कि वो उसकी मित्र बनना चाहती है। इसके बाद दोनों एक दूसरे से खूब बातें करते। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर लेकर गई और वहां उसका खूब आदर सत्कार किया। सोने की थाल में पकवान परोसे और जाते हुए दुशाला भेंट की।

इसके बाद साहूकार की बेटी ने भी उसे अपने घर बुलाया लेकिन वो आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति में नहीं थे। पिता के कहने पर उसने घर की साफ सफाई की और चार बत्ती वाला दीया लक्ष्मीजी के नाम से लगाया। तभी एक चील उसके घर एक नौलखा हार गिरा गई। उसे बेचकर साहूकार की बेटनी ने अच्छे भोजन की तैयारी की। लक्ष्मीजी उसके घर आई तो उसके प्रेम और आतिथ्य से प्रसन्न हुई और उसपर अपनी कृपा बरसाई। इसके बाद उनके घर किसी चीज की कोई कमी नहीं हुई।

नरकासुर की कथा

एक कहानी श्रीकृष्ण और नरकासुर की भी है। नरकासुर बहुत शक्तिशाली था और उसके आतंक से सारी सृष्टि कांपती थी। उससे रक्षा करने की प्रार्थना लेकर देवता श्रीकृष्ण की शरण में गए। उस समय श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने पूछा कि देवता तो स्वयं सबकी रक्षा करते हैं फिर आपको एक असुर ने इतना प्रताड़ित कैसे कर दिया। तब इंद्रदेव ने बताया कि नरकासुर को ब्रह्मा जी का वरदान है जिसके कारण कोई भी देवता उसका वध नहीं कर सकता।

श्रीकृष्ण ने देवताओं को सहायता का वचन दिया और नरकासुर की नगरी की ओर जाने लगे। इसपर सत्यभामा ने भी साथ चलने का आग्रह किया और वे भी उनके साथ चली गईं। जब वे नरकासुर की नगरी पहुंचे और उनके बीच युद्ध प्रारंभ हुआ। इसी बीच जब श्रीकृष्ण जब धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा रहे थे तो उसकी डोरी टूट गई। नरकासुर ने अवसर का लाभ उठाकर उनपर वार कर दिया। ये देखकर श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने अपना हाथ आगे किया और उस प्रहार को रोक दिया। अपनी पत्नी पर हुए इस आघात को देख श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से नरकासुर का वध कर दिया। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन ही नरकासुर का वध हुआ था इसीलिए इसे नरक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

समुद्र मंथन में हुआ था देवी लक्ष्मी का अवतरण

एक अन्य मान्यतानुसार कार्तिक महीने के अमावस्या के दिन समुद्र मंथन के दौरान माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। उन्हें धन, धान्य, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है इसीलिए उनके स्वागत में घर घर में घी के दीपक जलाए जाते हैं और उनका पूजन किया जाता है। माना जाता है कि विधि विधान से पूजा करने पर मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख समृद्धि का वरदान देती हैं।

 

 

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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