साठ साल से जारी हैं रोज़े, उम्मीद है कि आखिरी दम तक यह सिलसिला जारी रहेगा

भावना चौबे
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यह उन दिनों की बात है जब हम पुराने शहर में जामुन वाली मस्जिद के नजदीक रहते थे। मेरे वालिद सैयद अशफाक अली सैफिया कॉलेज में प्रिंसिपल थे। मेरी उम्र कोई दस बरस रही होगी। उस वक्त मैं चौथी क्लास में पढ़ता था, जब मैंने अपना पहला रोजा रखा था। घर में कुछ ऐसा माहौल था दिन में चूल्हा ही नहीं जलता था। यानि रमजान के दौरान दिन में खाना बनने का प्रचलन नहीं था, घर के सारे मेंबर रोजा रखते थे। मैंने भी पहला रोजा रखने की ख्वाहिश जताई। जो थोड़ी कोशिश के बाद मान ली गयी। पहले रोज़े का यह तजुर्बा है, पूर्व संयुक्त संचालक, जनसंपर्क सैय्यद ताहिर अली का।

अली उपमुख्यमंत्री मंत्री राजेंद्र शुक्ल का वर्ष 2004 से लेकर अब तक जनसंपर्क अधिकारी की हैसियत से प्रचार-प्रसार काम देख रहे हैं। वह बताते हैं कि मेरी रोजाकुशाई बड़ी धूमधाम से मनाई गई थी। मुझे किसी दूल्हे की तरह सजाया गया था। दिनभर मैंने खुद जा-जाकर लोगों को बताया था कि आज मेरा पहला रोजा है। शाम को अफ्तार के वक्त बड़ा जलसा हुआ। करीबी रिश्तेदारों के अलावा शहर के कई बड़े लोग इसमें शामिल हुए थे। अफ्तारी के बाद लजीज खाने की दावत भी हुई। सबने मुझे तोहफे दिए और दुआएं भी दीं। वह आगे कहते हैं कि जनसंपर्क की नौकरी के दौरान कई बार मुझे मीटिंग में बैठना पड़ता था। एक बार की बात है मैं छिंदवाड़ा में जिला जनसंपर्क अधिकारी था, तब वहाँ पूर्व सीएस डिसा साहब कलेक्टर थे।

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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग रंग होता है, यह इतना चमकदार रंग होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा की कलम में बहुत ताकत होती है, इस कलम की ताकत को बरकरार रखने के लिए हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन से बीए स्नातक किया। मैं अब आगे इसी विषय में DAVV यूनिवर्सिटी से स्नाकोत्तर कर रही हूं। मेरा पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू ही हुआ है। मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग, वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली, धर्म इन विषयों पर लिखना अच्छा लगता है।