देशभर में गणेशोत्सव श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जा रहा है। गणेश पंडालों में लोगों की भीड़ जुटनी शुरु हो गई है। वहीं, कई श्रद्धालु अपने घर पर भी बप्पा को ले आए हैं। घरों में श्रीगणेश की स्थापना अलग-अलग अवधिी के लिए की जाती है और ये पूरी तरह भक्तों की परंपरा, सुविधा और श्रद्धा पर निर्भर करता है। कोई डेढ़ दिन के गणेशजी स्थापित करता है तो कोई तीन दिन के। किसी के यहां पाँच, सात दिन के लिए गणपति आते हैं तो कोई पूरे दस दिन तक विधिविधान से उनकी सेवा करता है।
इसी तरह लोग अपनी पसंद और श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग गणेश प्रतिमाएं भी चुनते हैं। हमने देखा है कि श्रीगणेश की कई तरह की मूर्तियां उपलब्ध होती है। शायद ही कोई ऐसे देव हों..जिनकी प्रतिमाओं में इतनी विविधता देखने को मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर प्रतिमा का कोई धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। आइए आज हम जानते हैं गणपति जी की अलग अलग प्रतिमाएं से जुड़ी कुछ खास बातें।
सूंड की दिशा: इडा और पिंगला नाड़ी का प्रतीक
बाईं सूंड : गणेश प्रतिमाओं में सूंड की दिशा सबसे प्रमुख विशेषता है, जो योग और वास्तुशास्त्र से जुड़ी है। बाईं तरफ मुड़ी सूंड इडा नाड़ी (चंद्र ऊर्जा) का प्रतीक है जो शांति, सुख और समृद्धि लेकर आती है। इस तरह की प्रतिमा घरेलू पूजा के लिए उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि यह वैभव और पारिवारिक सौहार्द को बढ़ावा देती है।
दाईं सूंड : दाईं तरफ मुड़ी सूंड पिंगला नाड़ी (सूर्य ऊर्जा) का प्रतीक है, जो मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति का संकेत देती है। इस प्रकार की प्रतिमाएं आमतौर पर मंदिरों में रखी जाती हैं, क्योंकि इनकी पूजा में कठोर नियमों का पालन आवश्यक है।
सीधी सूंड : वहीं, सीधी सूंड वाली दुर्लभ प्रतिमाएं सुषुम्ना नाड़ी का प्रतीक हैं, जो संतुलन और ध्यान की अवस्था को दर्शाती हैं। पौराणिक कथाओं में सूंड की दिशा गणेशजी के जीवन से जुड़ी है, जहां वे बाधाओं को दूर करने के लिए विभिन्न ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
गणेश प्रतिमाओं की विभिन्न मुद्राएं: जीवन के विभिन्न भावों का प्रतिबिंब
- आसन मुद्रा : गणपति जी की बैठी हुई मुद्रा शांति, स्थिरता और ध्यान का प्रतीक है, जो भक्तों को जीवन में संतुलन सिखाती है। यह सबसे आम मूर्ति है जो घरों में स्थापित की जाती है।
- स्थानक मुद्रा : ये उनकी खड़ी हुई मुद्रा होती है जो साहस और सतर्कता को दर्शाती है। ये योद्धा स्वरूप का प्रतीक है जो विघ्नहर्ता के रूप में तुरंत बाधाओं को दूर करने में सक्षम है।
- नृत्य मुद्रा : नृत्य गणपति कला, आनंद और सृजनात्मकता का संदेश देते हैं। ये शिव-पार्वती को प्रसन्न करने की कथा से भी जुड़ी हुई है।
- अभय मुद्रा : में गणेशजी का एक हाथ ऊपर उठा हुआ होता है और हथेली बाहर की ओर होती है जो भय से दूर रहने का संदेश देती है। अभय मुद्रा में गणेश का दायां या बायां हाथ (आमतौर पर दायां) ऊपर उठा हुआ होता है, जिसमें हथेली बाहर की ओर खुली होती है और उंगलियां सीधी होती हैं।
- शयन मुद्रा : यह विश्राम और समृद्धि का प्रतीक है, जो राजसी जीवन को इंगित करती है। इस मुद्रा में उनके हाथों में सामान्यतः मोदक, कमल, अंकुश या पाश जैसी वस्तुएं देखी जा सकती हैं।
श्रीगणेश हाथों में वस्तुएं: गुण और शक्तियों का प्रतीक
- हाथ पर अंकुश : प्रतिमा में गणपति के हाथ अगर उनकी गोद में हैं तो ये मन पर नियंत्रण और मार्गदर्शन का प्रतीक है।
- हाथ में पाश (रस्सी) : इच्छाओं और माया से मुक्ति का संकेत।
- हाथ में मोदक : जीवन की मधुरता और पुरस्कार का प्रतीक, जो सबको आध्यात्मिक संतुष्टि देता है।
- हाथ में परशु (कुल्हाड़ी) : विघ्नों को काटने की शक्ति।
- हाथ में कमल : पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक।
- टूटा दांत : त्याग और समर्पण का प्रतीक, ये महाभारत लेखन की कथा से जुड़ा है।
- वरद और अभय मुद्रा : आशीर्वाद और भयमुक्ति का संदेश।
श्रीगणेश के वाहन का भी अत्यधिक महत्व है। उनका वाहन मूषक है जो लालसाओं और चंचल मन का प्रतीक है। गणेशजी का उस पर सवार होना इच्छाओं पर विजय पाने और सर्वव्यापी होने को दर्शाता है। पौराणिक रूप से, चूहा बाधाओं को चीरने की क्षमता रखता है जो गणपति बप्पा की शक्ति को बढ़ाता है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसे लेकर किसी तरह का दावा या पुष्टि नहीं करते हैं।)





