जानिये ‘इतिहास’ संजोने वाले ‘कागज’ का क्या है इतिहास, कैसे होता है निर्माण

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हमारे जीवन में ऐसी कई चीज़ें हैं जिनका हम रोज़ इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कभी भी ये इस बात का विचार नहीं आता कि आखिर इनका निर्माण कैसे होता है, इनके इजाद की क्या कहानी है। ऐसी ही एक चीज़ है कागज़, मानव सभ्यता के विकास में कागज़ का बहुत योगदान है। मुख्य रूप से ये लिखने व छपाई के काम आता है, साथ ही वस्तुओं की पैकेजिंग में भी इसका इस्तेमाल होता है। आज भले ही हम कम्यूटर युग में जी रहे हों, लेकिन आज भी कागज़ का महत्व कम नहीं हुआ है। तो आईये जानते हैं कागज़ के निर्माण की कहानी।

कागज़ एक पतला पदार्थ है, इसे बनाने के लिए सेल्यूलोज की जरुरत होती है। रुई या कपास सेल्यूलोज का अच्छा स्रोत है लेकिन इससे कागज़ नहीं बनाया जाता क्योंकि ये काफी महँगी होती है और मुख्य रूप से कपड़ा बनाने में काम आती है। कागज पेड़ों से बनता है। सेल्यूलोज एक कार्बोहाइड्रेट है जो पौधों में पाया जाता है। इसी सेल्यूलोज के रेशों को मिलाकर एक पतली चद्दर का रूप देकर कागज बनाया जाता है। सेल्यूलोज के रेशों में ही ये गुण पाया जाता है जो मिलकर एक पतली चद्दर का रूप ले सकते हैं इसलिए कागज सेल्यूलोज से ही बनाया जाता है और सेल्यूलोज पेड़ों से प्राप्त होता है।

अब जानते हैं कि क्या है कागज़ बनाने की प्रक्रिया। इसके लिए पेड़ के तने को काटकर मशीनों से उसके छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं। इसके बाद लकड़ी के इन टुकड़ों को पानी के साथ मिलाकर उबाला जाता है जिससे उसकी लुगदी बन जाती है। इसी लुगदी में ब्लीच और केमिकल्स मिलाये जाते हैं। इसके बाद तैयार लुगदी में से पानी को मशीनों के ज़रिये अलग कर दिया जाता है और इस लुगदी से पतली चद्दर बना ली जाती है। फिर इसे सुखाकर छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है और इस तरह अलग-अलग साइज का कागज तैयार हो जाता है।

 मान्यता है कि कागज़ का अविष्कार चीन में हुआ है क्योंकि सबसे पहले कागज़ का इस्तेमाल चीन में ही किया गया था। 105 ईस्वी में चीन की इंपीरियल अदालत से सम्बद्ध हान राजवंश (202 ई.पू.) के मुख्य शासक हो-टिश के राज दरबार में ‘त-साई-लून’ नामक व्यक्ति ने इसका इजाद किया था। उसने विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों जैसे भांग, शहतूत, वृक्ष की छालों तथा अन्य लताओं के रेशों द्वारा कागज़ निर्माण की कला का प्रयोग प्रारम्भ किया। त-साई-लून द्वारा निर्मित यह कागज़ अत्यन्त चमकीला,मुलायम, लचीला व चिकना होता था। कागज़ निर्माण की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे सार्वभौमिक हुई और दुनियाभर में कागज़ का निर्माण व इस्तेमाल किया जाने लगा। चीन के बाद भारत ही वो देश है जहाँ कागज़ बनाने और इस्तेमाल किये जाने के प्रमाण मिले। सिंधु सभ्यता के दौरान भारत में कागज़ के निर्माण और उपयोग के कई प्रमाण सामने आये हैं जिनसे ये साबित होता है की चीन के बाद भारत में ही सर्वप्रथम कागज़ का निर्माण और उपयोग हुआ।

अच्छी बात ये है कि कागज़ को रिसाइकिल किया जा सकता है और पर्यावरण को भी इससे खतरा नहीं है। इसीलिए आजकर दुनियाभर में पॉलिथिन की जगह कागज़ के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है। लेकिन इसके अधिक इस्तेमाल के कारण ये बात और महत्वपूर्ण हो जाती है कि कागज़ को अधिक से अधिक रिसाइकिया किया जाए, यानी पुराने कागज से नया कागज बनाया जाए। ऐसा इसलिए जरूरी है कि कम पेड़ कटेंगे, पेड़ों को काटने के बजाए पुराने कागज से नए कागज बनाने के विकल्प पर ही ज़ोर दिया जाना चाहिए क्योंकि 1 टन कागज़ को अगर रिसाइकिल किया जाए तो 17 पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। तो अब अगली बार आप जब भी कागज़ का इस्तेमाल करें तो ध्यान रखें कि इसे बनाने के लिए एक पेड़ ने अपनी कुर्बानी दी है, इसीलिए इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए।


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