ये गलतियां बना सकती हैं आपको अपने बच्चे का दुश्मन, जानिए कैसे बचें

बच्चों के साथ एक मजबूत और सकारात्मक संबंध बनाना हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है, लेकिन कई बार कुछ छोटी-छोटी गलतियां (Parenting Mistakes) हमारे और बच्चों के बीच दूरी पैदा कर देती हैं.

Bhawna Choubey
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बच्चों की अच्छी परवरिश करना माता-पिता की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होती है, अपनी इस ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाने के लिए माता-पिता हर वो कोशिश करते हैं जो कि वो कर सकते हैं. माता-पिता अपने बच्चों को सभी तरह की सुख सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं जिससे की बच्चों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी का सामना न करना पड़े.

बच्चे के पैदा होने के पहले ही उसकी परवरिश की चिंताएं माता-पिता को सताने लगती है, बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर माता-पिता का बड़ा प्रभाव पड़ता है. कई बार माता-पिता की कुछ छोटी मोटी गलतियों की वजह से बच्चों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. आज ख़ास तौर पर हम उन गलतियों के बारे में जानेंगे.

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माता-पिता की गलतियां (Parenting Mistakes)

अगर समय रहते इन गलतियों को सुधारा जाए, तो माता-पिता और बच्चों के बीच का मनमुटाव दूर हो सकता है, माता-पिता और बच्चों के रिश्ते मज़बूत बन सकते हैं, बच्चे अपने माता-पिता से खुलकर मन की सारी बातें साझा भी कर सकते हैं. चलिए फिर जानते हैं.

दूसरों के सामने बेज्जती करना

अक्सर माता-पिता इस बात का ध्यान नहीं रखते है कि वे अपने बच्चों के साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं, अक्सर यह ग़लत फ़ैमिली रहती है कि बच्चा छोटा है इसलिए उसे कुछ भी समझ नहीं आएगा, लेकिन यह ग़लत है.

बच्चों को भी रिस्पेक्ट और इज़्ज़त की अच्छी समझ होती है. इसलिए कभी भी किसी बहार वालों के सामने अपने बच्चों के साथ बेज्जती वाला बर्ताव नहीं करना चाहिए.

हद से ज़्यादा रोक टोक करना

हर माता-पिता अपने बच्चों के लिए डरे रहते हैं, इसलिए वे उन्हें कभी भी ख़ुद से कोई काम करने नहीं देते हैं. जब बच्चे छोटे होते हैं तो उन्हें रोक-टोक का कुछ ख़ास असर नहीं होता है, लेकिन बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं तो माता-पिता की रोक टोक उन्हें बुरी लगने लगती है. कई बार हद से ज़्यादा रोक-टोक भी बच्चों के लिए नुकसानदायक हो सकती है. ऐसे में बच्चे कभी आत्मनिर्भर नहीं बन पाते हैं और न ही ख़ुद से फ़ैसले ले पाते हैं.

बच्चों की भावनाओं को ना समझना

अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता अपने बच्चों की बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं और उनकी भावनाओं को समझते नहीं है. उन्हें लगता है कि बच्चा छोटा है उसकी उम्र कम है इसलिए वह कुछ भी बोलता रहता है या करता रहता है, जिस वजह से बच्चों की बातों को नज़रअंदाज़ किया जाता है.

यह एक छोटी सी गलती माता-पिता के लिए बड़ी गलती साबित हो सकती है, बच्चों की भावनाओं को समझना बहुत ज़रूरी होता है. इसलिए बच्चे की भावना कैसी भी क्यों न हों चाहे प्रेम, ग़ुस्सा या चिड़चिड़ाहट माता पिता को उनकी हर भावना का सम्मान करना चाहिए और समझना चाहिए.

 


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Bhawna Choubey

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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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