Parenting Tips: हर माता-पिता के लिए, उनका बच्चा उनकी दुनिया का केंद्र होता है। वे अपने बच्चों को सफल और खुशहाल जीवन देने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। लेकिन, इस उत्सुकता में कई बार अनजाने में कुछ गलतियां भी हो जाती हैं, जिनका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
बच्चे की तुलना दूसरों से करना
बच्चे की तुलना दूसरों से करना, एक ऐसी आदत जो कई माता-पिता को शायद ही गलत लगती है। अच्छे इरादों से की जाने वाली ये तुलनाएं, बच्चे के मन में जहर घोल सकती हैं और उसके आत्मविश्वास को कुचल सकती हैं। जब आप अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से करते हैं, तो आप उसे यह संदेश देते हैं कि वह “पर्याप्त अच्छा” नहीं है। इससे बच्चे में हीन भावना पैदा होती है और वह खुद को दूसरों से कमतर समझने लगता है। यह तुलना नकारात्मक सोच और आत्म-संदेह की भावना को जन्म दे सकती है, जिससे बच्चे का आत्मविश्वास कमजोर होता है। इसके अलावा, तुलना करने से बच्चे में प्रतिस्पर्धा की भावना भी पैदा हो सकती है, जो उसे गलत तरीकों से सफलता हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकती है। यह याद रखना ज़रूरी है कि हर बच्चा अलग होता है और उसकी अपनी प्रतिभाएं और क्षमताएं होती हैं। माता-पिता को अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करने की बजाय, उनकी ख़ूबियों पर ध्यान देना चाहिए और उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। अपने बच्चे को प्यार और स्वीकृति दें, उसकी गलतियों से सीखने में मदद करें और उसे खुद पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करें।
लगातार बच्चे पर दबाव डालना
कई माता-पिता यह भूल जाते हैं कि उनका बच्चा एक इंसान है, न कि उनकी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाली मशीन। वे लगातार बच्चे पर दबाव डालते हैं कि वो अच्छा करे, वो नंबर वन बने, वो सफल हो। यह अत्यधिक दबाव बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। इससे बच्चे में तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा, लगातार दबाव बच्चे के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को कम कर सकता है। बच्चा खुद को असफल समझने लगता है और अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगता है। यह ज़रूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों को उनकी रुचि और क्षमता के अनुसार विकसित होने दें। उन पर अपनी इच्छाएं थोपने की बजाय, उनका समर्थन करें और उनका हौसला बढ़ाएं। बच्चों को सिखाएं कि सफलता ही जीवन का एकमात्र मापदंड नहीं है।उन्हें खुश रहना, स्वस्थ रहना और अच्छे इंसान बनना भी सिखाएं।
बच्चों की बातों को न समझना
बच्चे नाजुक भावनाओं वाले होते हैं और उन्हें प्यार, समझ और स्वीकृति की ज़रूरत होती है। कई बार माता-पिता व्यस्तता या जानकारी की कमी के कारण बच्चे की भावनाओं को समझने और उनका सम्मान करने में चूक जाते हैं। वे बच्चे की बातों को गंभीरता से नहीं लेते और उसकी भावनाओं को अनदेखा कर देते हैं। यह व्यवहार बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। बच्चा खुद को अकेला और अनचाहा महसूस कर सकता है। उसमें हीन भावना और आत्मविश्वास की कमी पैदा हो सकती है। इसके अलावा, भावनाओं को अनदेखा किए जाने से बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में भी असमर्थ हो सकता है, जिससे भविष्य में उसे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। यह ज़रूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों की भावनाओं को समझने और उनका सम्मान करने का प्रयास करें।
बच्चों से खुलकर बात करें, उनकी भावनाओं को ध्यान से सुनें और उन्हें स्वीकार करें।
बच्चों को कभी न नहीं बोलना
कुछ माता-पिता अपने बच्चों पर अत्यधिक प्यार लुटाते हैं। वे उनकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हैं और उन्हें कभी “नहीं” नहीं कह पाते। यह अत्यधिक प्यार और लाड़-प्यार बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। इससे बच्चा बिगड़ जाता है और वह अनुशासन का महत्व नहीं समझ पाता। वह यह सोचने लगता है कि वह जो चाहेगा, उसे मिल जाएगा और उसे किसी नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा, अत्यधिक प्यार बच्चे को जिद्दी और अहंकारी भी बना सकता है। वह दूसरों का सम्मान करना नहीं सीख पाता और अपनी बातों को ही सही मानता है। यह ज़रूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों को प्यार और स्नेह के साथ-साथ अनुशासन भी सिखाएं। बच्चों को समझाएं कि कुछ नियमों का पालन करना ज़रूरी है और “नहीं” का मतलब “नहीं” ही होता है। बच्चों को उनकी गलतियों के लिए डांटें और उन्हें सजा भी दें। लेकिन यह भी ध्यान रखें कि डांट और सजा का इस्तेमाल प्यार से नहीं, बल्कि समझदारी से करें।
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)