सिर्फ 4 मिनट में हो सकता है प्यार, इंसान का दिमाग दर्द महसूस नहीं करता, जानिए दिलचस्प मनोवैज्ञानिक तथ्य

क्या आप जानते हैं कि इंसान का दिमाग नकारात्मक चीजों को ज्यादा जल्दी पकड़ता है और उन्हें लंबे समय तक याद रखता है। इसे "निगेटिविटी बायस" कहा जाता है। वहीं, जब हम किसी विषय पर ज्यादा सोचते हैं तो हमारा दिमाग खुद से ही अलग-अलग तर्क-वितर्क करने लगता है, जिससे चिंता और अनिर्णय की स्थिति पैदा हो सकती है। रिसर्च ये भी बताती है कि जब लोग खुद को आईने में ज्यादा देखते हैं तो वे अपनी कमियों पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं।

Shruty Kushwaha
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Psychological facts : मनुष्य का दिमाग बहुत गूढ़ होता है। उसमें जानें कितनी भावनाएं और विचार निरंतर चलते रहते हैं। और इन्हीं व्यवहार, विचारों, भावनाओं और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन मनोविज्ञान में होता है। इसमें ये समझने की कोशिश की जाती है कि हम कैसे सोचते हैं, क्यों महसूस करते हैं और विभिन्न परिस्थितियों में किस तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। मनोवैज्ञानिक तथ्य वैज्ञानिक रूप से सिद्ध जानकारियां होती हैं, जो हमारे मस्तिष्क, विचार, भावनाओं और व्यवहार से जुड़ी होती हैं। ये तथ्य  समझने में मदद करते हैं कि हम कैसे सोचते हैं, महसूस करते है और किस प्रकार कार्य करते हैं।

मनोवैज्ञानिक तथ्य इसलिए महत्वपूर्ण है कि जब हमें पता होता है कि हमारा दिमाग कैसे काम करता है तो हम अपने विचारों और भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं या उनकी निगरानी कर सकते हैं। अगर हमें ये बात समझ में आ जाए कि सामने वाला व्यक्ति क्या महसूस कर रहा है तो हम उसके साथ बेहतर व्यवहार कर सकते हैं। जब हम अपने साथ दूसरों के व्यवहार और भावनाओं को भी समझते हैं तो हमें कम गुस्सा आता है, धैर्य बढ़ जाता है और इस तरह हम अपने रिश्तों में भी संतुलन बनाकर रख सकते हैं।

क्यों महत्वपूर्ण हैं Psychological facts 

मनोवैज्ञानिक तथ्य हमें खुद को और दूसरों को बेहतर तरीके से समझने में मदद करते हैं। ये हमारी सोच, आदतों, व्यवहार और रिश्तों को सुधारने में भी सहायक साबित होते हैं। अगर हम इन तथ्यों से सीखें तो हम ज़्यादा खुश, समझदार और सफल बन सकते हैं। आज हम आपके लिए कुछ रोचक मनोवैज्ञानिक तथ्य लेकर आए हैं।

रोचक मनोवैज्ञानिक तथ्य

1. भावनाएं शरीर पर गहरा असर डालती हैं : अगर आपको बहुत गुस्सा आता है या चिंता का शिकार हैं तो इसे लेकर सोचने की ज़रूरत है। लंबे समय तक नकारात्मक भावनाए रखने से शरीर में असली दर्द और कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इस स्थिति को “साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर”(Psychosomatic Disorder) कहा जाता है।

2. झूठ पकड़ने का आसान तरीका : अगर कोई व्यक्ति आपके सवालों के जवाब देते समय अधिक जानकारी देने लगे, बिना पूछे ही एक्स्ट्रा डिटेल्स बताने लगे तो बहुत संभावना है कि वह झूठ बोल रहा है। ये एक मनोवैज्ञानिक संकेत जिसे ‘ओवर-एक्सप्लेनेशन’ (Over-Explanation) या डीटेल्स बढ़ाना कहा जाता है। दरअसल जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो वो खुद को सच साबित करने के लिए जरूरत से ज्यादा जानकारी देने लगता है।

3. सिर्फ 4 मिनट में हो सकता है प्यार : क्या आपको कभी प्यार हुआ है। और अगर हुआ है तो उसमें कितना समय लगा था।  वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि यदि दो लोग लगातार 4 मिनट तक एक-दूसरे की आँखों में देखते हैं तो उनके बीच भावनात्मक संबंध बनने की संभावना बढ़ जाती है। जब हम किसी की आँखों में लगातार देखते हैं तो हमारा दिमाग उस व्यक्ति को महत्वपूर्ण मानने लगता है। इसी के साथ ऑक्सिटोसिन हार्मोन रिलीज होता है जिसे लव हार्मोन भी कहा जाता है। हमारे शरीर में डोपामिन और सेरोटोनिन बढ़ जाता है और ये न्यूरोट्रांसमीटर हमें खुशी और रोमांच महसूस कराते हैं। इसीलिए अब अगर आप किसी की आँखों में झांके तो ये बात याद रखिएगा।

4. दिमाग दर्द महसूस नहीं करता : ये बात आपको चौंका देगी। हमारे शरीर में दर्द का एहसास दिलाने वाले दिमाग में दर्द को महसूस करने की क्षमता नहीं होती है। दरअसल दिमाग में कोई पेन रिसेप्टर्स (Pain Receptors) नहीं होते हैं। हमारे शरीर के अन्य हिस्सों में नोसिसेप्टर्स (Nociceptors) नाम के पेन रिसेप्टर्स होते हैं, जो दर्द का एहसास कराते हैं। लेकिन खुद दिमाग में ये रिसेप्टर्स नहीं होते, इसलिए वो खुद दर्द को महसूस नहीं कर सकता। अब सवाल उठता है कि सिरदर्द क्यों होता है। तो जवाब है कि जब हमें सिरदर्द या माइग्रेन होता है तो यह दिमाग की नसों, रक्त वाहिकाओं और आसपास के टिश्यू में होने वाले तनाव या सूजन के कारण होता है, न कि खुद दिमाग के कारण।

5. मस्तिष्क खुद को धोखा दे सकता है : ये भी बेहद रोचक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हमारा दिमाग खुद को धोखा दे सकता है और हमारी भावनाओं को नियंत्रित कर सकता है। इसे ‘सेल्फ-फुलफिलिंग प्रोफेसी’ (Self-Fulfilling Prophecy) और न्यूरोप्लास्टिसिटी (Neuroplasticity) के सिद्धांत से समझा जा सकता है। यदि आप बार-बार खुद से कहते हैं कि “मैं खुश हूँ” तो आपका दिमाग इसे सच मानने लगता है और आपके शरीर में खुशी के हार्मोन (डोपामिन, सेरोटोनिन, ऑक्सिटोसिन) का स्तर बढ़ने लगता है। यह आपकी सोच और व्यवहार को भी प्रभावित करता है।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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