साहित्यिकी : पढ़ते हैं कमलेश्वर की कहानी ‘हवा है, हवा की आवाज नहीं है’

Sahityiki : आज शनिवार है और अपनी पढ़ने की आदत सुधारने के क्रम हम पढ़ेंगे कमलेश्वर की एक कहानी। कमलेश्वर को बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में शुमार हैं। इन्होने उपन्यास, कहानी, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी विधाओं में काम किया है। ‘कितने पाकिस्तान’ इनका कालजयी उपन्यास है और उसने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की। अपने 75 साल के जीवन में उन्होने 12 उपन्यास, 17 कहानी संग्रह और क़रीब सौ फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखी हैं। साल 2005 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकरण तथा ‘कितने पाकिस्तान’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। आज हम पढ़ेंगे उनक कहानी हवा है हवा की आवाज नही है।

हवा है, हवा की आवाज नहीं है

कैरीन उदास थी। उसे पता था कि सुबह हमें चले जाना है। लेकिन उदास तो वह यों भी रहती थी। उस दिन भी उदास ही थी, जब पहली बार मिली थी। हम हाल गाँव का रास्ता भूलकर एण्टवर्प के एक अनजाने उपनगर में पहुँच गये थे। भाषा की दिक्कत भी थी। फ्रेंच से काम चल सकता था, पर वह फेलेमिश इलाका था। टेवर्न की अधेड़ औरत मदद तो करना चाहती थी, पर फ्रेंच नहीं बोलना चाहती थी। आखिर उसने बीयर का गिलास सामने रखा और फोन करने लगी।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।