Smartphone Addiction: जानें किस उम्र में देना चाहिए बच्चों को स्मार्टफोन, इस रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

Smartphone Addiction: एक समिति ने तीन महीने तक किए गए शोध के आधार पर अपनी रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें की गई हैं, जिनमें छोटे बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने पर जोर दिया गया है।

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Smartphone Addiction: जब कभी भी बच्चे जिद करते हैं या रोने लगते हैं तो माता-पिता उन्हें चुप करने के लिए हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। ऐसे में बच्चों को मोबाइल की लत लग जाती है। आजकल स्मार्टफोन जैसे हर व्यक्ति के लिए जीवन का जरूरी हिस्सा बन गया है। लेकिन क्या बच्चों के लिए स्मार्टफोन सच में जरूरी है, दरअसल हम बात कर रहे हैं 13 साल तक के बच्चों के लिए। आजकल हर छोटे से छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल देखने को मिलता है, लेकिन क्या सच में आपको लगता है कि बच्चों के लिए मोबाइल इतना जरूरी है कि वह मोबाइल के बिना बिल्कुल रह नहीं सकते। आज हम आपको इस लेख के द्वारा विस्तार से बताएंगे कि बच्चों को मोबाइल देने की सही उम्र क्या होती है साथ ही साथ यह भी बताएंगे कि बच्चों को किस उम्र में सोशल मीडिया चलाना चाहिए, तो चलिए जानते हैं।

कब देना चाहिए बच्चों को स्मार्टफोन

बच्चों को स्मार्टफोन कब देना चाहिए? यह हर माता-पिता के लिए एक बड़ा सवाल होता है। अक्सर छोटी उम्र में ही बच्चे स्मार्टफोन मांगने लगते हैं और उन्हें न देने पर गुस्सा हो जाते हैं। लेकिन क्या यह उनके लिए ठीक है? फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों को 13 साल की उम्र तक स्मार्टफोन का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, 18 साल की उम्र तक उन्हें इंस्टाग्राम, स्नैपचैट आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग भी नहीं करना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटी उम्र में स्मार्टफोन का उपयोग बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। इससे उनमें एकाग्रता की कमी, नींद में खलल, मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर बच्चों को साइबरबुलिंग, अनुचित सामग्री के संपर्क और अन्य जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है।

फ्रांस की एक सरकारी रिपोर्ट में बच्चों को 13 साल की उम्र तक स्मार्टफोन न देने की सलाह दी गई है। यह रिपोर्ट बच्चों पर स्मार्टफोन के नकारात्मक प्रभावों पर केंद्रित है, जिसमें स्क्रीन एडिक्शन, नींद में खलल, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और शारीरिक निष्क्रियता शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे बच्चों का मस्तिष्क विकासशील होता है और अत्यधिक स्क्रीन समय इसके विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, स्मार्टफोन बच्चों को साइबरबुलिंग, अनुचित सामग्री के संपर्क और सामाजिक अलगाव के जोखिम में भी डाल सकते हैं। रिपोर्ट में माता-पिता को सलाह दी गई है कि वे अपने बच्चों के स्क्रीन समय को सीमित करें और उन्हें अन्य गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें। इसके अलावा, माता-पिता को अपने बच्चों के साथ खुले तौर पर बात करनी चाहिए और उन्हें ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में शिक्षित करना चाहिए। फ्रांस की यह रिपोर्ट दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गई है। यह बच्चों और तकनीक के उपयोग के बारे में एक महत्वपूर्ण बातचीत को जन्म दे रही है।

डिस्क्लेमर – इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। एमपी ब्रेकिंग इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लें।


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भावना चौबे

भावना चौबे

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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