संडे यानी छुट्टी का दिन, जानिए रविवार को साप्ताहिक अवकाश मनाने के पीछे क्या हैं ऐतिहासिक और धार्मिक कारण

संडे को आमतौर पर आराम और आलस का दिन माना जाता है। ये ज्यादातर लोगों के लिए देर तक सोने, परिवार के साथ समय बिताने और टीवी देखने का होता है। कई भाषाओं में रविवार का नाम सूर्य से जुड़ा है जैसे अंग्रेजी में 'Sunday' और संस्कृत में 'रविवार' और जर्मन में इसे 'Sonntag' कहते हैं। ब्रिटेन में 'Sunday Roast' एक परंपरा है जिसमें संडे को विशेष प्रकार का भोजन तैयार किया जाता है। इसमें रोस्टेड मीट, आलू और सब्जियाँ शामिल होती हैं। वहीं, अमेरिका में इस दिन बड़े पैमाने पर 'संडे नाइट फुटबॉल' और अन्य खेलों का आयोजन होता है।

Origin of Sunday Holiday

Sunday Holiday : संडे का नाम आते ही हमारे ज़हन में एक ऐसा दिन घूम जाता है जो आराम करने, घूमने फिरने, कुछ ख़ास खाने-खिलाने, दोस्तों से मिलने या अपना मनचाहा कुछ भी करने का समय होता है। हफ्ते भर काम करने के बाद सभी को इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार होता है। लेकिन कभी आपने सोचा है कि आख़िर सप्ताह में संडे या रविवार या इतवार को ही छुट्टी क्यों होती है।

किसी भी परंपरा या ट्रेंड के पीछे कोई कारण होता है और रविवार की छुट्टी की परंपरा भी कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से जुड़ी हुई है। इसका इतिहास हमें प्राचीन रोम से मिलता है। वहीं इसके पीछे कई धार्मिक कारण भी हैं। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में रविवार को छुट्टी का दिन माना जाने का मूल कारण धार्मिक मान्यताएँ और ऐतिहासिक घटनाएं हैं।

सूर्य की पूजा का दिन

Sun Day यानी सूरज का दिन। प्राचीन सभ्यताओं में रविवार को भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व था। इस दिन को ‘रविवार’ या सूर्य का दिन कहा जाता है, क्योंकि लोग निश्चित दिन पर सूर्य की आराधना करते थे। चर्चों के निर्माण के बाद, लोगों ने इस दिन प्रार्थना के लिए चर्च जाना शुरू किया, जिसके बाद सबकी सहमति से इसे छुट्टी का दिन घोषित किया गया।

रविवार की छुट्टी के ऐतिहासिक कारण

चौथी शताब्दी में ईसाई चर्च ने रविवार को एक पवित्र दिन घोषित किया। यह दिन जीसस क्राइस्ट के पुनर्जीवित होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ईसाई समुदाय के लिए, यह दिन प्रार्थना और धार्मिक गतिविधियों का समय होता है। इस दिन सभी अनुयायियों को मिस्सा (Mass) में भाग लेना आवश्यक था और सामान्य कार्यों से विश्राम करना अनिवार्य था। वहीं मध्यकालीन यूरोप में रविवार की छुट्टी का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को आराम देने के साथ-साथ धार्मिक आस्था को बढ़ावा देना भी था। यह दिन न केवल पूजा के लिए, बल्कि परिवार और समुदाय के साथ समय बिताने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता था।

प्राचीन रोम और अन्य संस्कृतियों में भी छुट्टियों का प्रावधान था, जिसमें एक दिन काम करने से विश्राम लिया जाता था। जब ईसाई धर्म का उदय हुआ, तो रविवार को काम से विश्राम का दिन मान लिया गया। 19वीं शताब्दी के दौरान औद्योगिक क्रांति के कारण काम के घंटों में वृद्धि हुई। इस संदर्भ में, रविवार की छुट्टी को श्रमिकों को आराम देने के लिए और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया गया। यह न केवल श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक था। आज कई देशों में रविवार को छुट्टी का एक पारंपरिक रूप से पालन किया जाता है, जिससे लोगों को अपने धार्मिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन के लिए एक दिन मिलता है। यह अभ्यास अब आधुनिक समाज में महत्वपूर्ण बन गया है।

रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन का योगदान

321 ईस्वी में, रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने रविवार को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया। उन्होंने यह आदेश दिया कि रोमन सप्ताह में रविवार को अवकाश का दिन बना दिया जाए। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि किसान इस दिन काम कर सकते हैं। यह प्रथा धीरे-धीरे यूरोप में फैल गई और जब वहाँ की जनसंख्या मुख्यतः ईसाई हुई तो लोग रविवार को चर्च जाकर प्रार्थना करने लगे।

भारत में रविवार की छुट्टी

भारत में रविवार की छुट्टी की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई। इससे पहले भारतीय श्रमिकों को सप्ताह के सभी दिनों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था, जबकि ब्रिटिशों के लिए यह दिन चर्च जाने का था। नारायण मेघाजी लोखंडे, जो एक मिल श्रमिक थे ने सात वर्षों तक संघर्ष किया ताकि रविवार को भारतीय श्रमिकों के लिए भी छुट्टी घोषित की जा सके। इसके बाद 10 जून 1890 को ब्रिटिश सरकार ने रविवार को छुट्टी घोषित की।

 

(डिस्क्लेमर : ये लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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