नहाना दैनिक क्रिया भर नहीं, भारतीय परंपरा और शास्त्रों में स्नान का है अत्यधिक महत्व, जानिए स्नान के नियम और लाभ

स्नान की प्रक्रिया भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में सिर्फ शारीरिक स्वच्छता से ही नहीं जुड़ी है, बल्कि यह एक संपूर्ण शुद्धिकरण का माध्यम है। मान्यता है कि सही तरीके से किया गया स्नान व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रखने में सहायक है। इसे एक दैनिक कार्य के रूप में देखा जाता है, जो हमारे जीवन के हर पहलू को संतुलित और समृद्ध बनाता है। नियमित स्नान से शरीर, मन और आत्मा तीनों ही स्तर पर संतुलन बना रहता है।

भारतीय परंपरा में स्नान का महत्व

The Significance of Bathing in Hindu Tradition : नहाना हमारी दैनिक क्रिया है। आमतौर पर हम रोज़ नहाते हैं। लेकिन नहाना या स्नान एक प्रक्रिया भर नहीं..भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में इसका बेहद महत्व है। स्नान को शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन धर्मग्रंथों, वेदों और पुराणों में स्नान को एक धार्मिक क्रिया के रूप में देखा गया है जो केवल शारीरिक स्वच्छता तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी माध्यम है।

स्नान में जल को एक पवित्र तत्व माना गया है जो हमारे शरीर के दोषों को दूर करता है और हमें आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करता है। भारतीय संस्कृति और धर्मग्रंथों में जल को शुद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना गया है। प्राचीन शास्त्रों, वेदों और पुराणों में जल को पांच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) में से एक माना गया है, जो जीवन का आधार है। स्नान के दौरान जल केवल शरीर को शुद्ध करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी महत्वपूर्ण साधन है।

भारतीय परंपरा में स्नान का महत्व

भारतीय परंपरा में स्नान को न केवल शारीरिक शुद्धि, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए भी अनिवार्य माना गया है। यह प्रक्रिया हमें तनाव, थकावट और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाती है। रोज़ सुबह स्नान करने से शरीर में ताजगी और ऊर्जा का संचार होता है जिससे मन शांत और एकाग्र रहता है। इस प्रकार, स्नान न केवल शरीर की स्वच्छता है, बल्कि यह एक ध्यान और पूजा की विधि भी मानी जाती है।

प्राचीन धर्मग्रंथों, वेदों, पुराणों और आयुर्वेद में स्नान को एक आवश्यक दैनिक क्रिया माना गया है जो व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करता है। स्नान सबसे पहले शरीर की स्वच्छता से जुड़ा है। दिनभर में हमारे शरीर पर धूल, गंदगी, पसीना और विषाक्त पदार्थ जमा हो जाते हैं। स्नान शरीर से इन सभी अशुद्धियों को दूर करता है। जल से स्नान करने से न केवल शरीर, बल्कि मन भी शांत होता है। ठंडा या गुनगुना जल तनाव, थकावट और बेचैनी को दूर करने में सहायक होता है। स्नान के बाद मन शांत और ध्यान केंद्रित रहता है। इसी के साथ स्नान को आध्यात्मिक शुद्धिर से भी जोड़ा गया है। यह माना जाता है कि स्नान के माध्यम से व्यक्ति न केवल शारीरिक अशुद्धियों से मुक्त होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक अशुद्धियों से भी छुटकारा पाता है। विशेषकर पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, आदि में स्नान करने को मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पवित्र जल में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है। आज हम भारतीय परंपरा और शास्त्रों में स्नान के महत्व को लेकर जानेंगे।

शास्त्रों में स्नान के नियम

  1. सूर्योदय से पूर्व स्नान: शास्त्रों में सुबह जल्दी उठकर, विशेषकर सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्त्व बताया गया है। इसे ब्रह्म मुहूर्त में किया जाना श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इस समय स्नान करने से तन और मन दोनों ही शुद्ध होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
  2. प्राकृतिक जलस्रोतों में स्नान: प्राचीन काल में नदियों, सरोवरों और झरनों में स्नान को श्रेष्ठ माना गया है। विशेषकर पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, सरस्वती आदि में स्नान को पुण्यदायक माना गया है। इसे धार्मिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम कहा गया है।
  3. जल का शुद्ध होना: स्नान के लिए शुद्ध जल का प्रयोग करना अनिवार्य है। दूषित या गंदे जल से स्नान करना न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, बल्कि शास्त्रों के अनुसार इसे अशुभ भी माना जाता है।
  4. मंत्रोच्चार के साथ स्नान: शास्त्रों में स्नान के दौरान मंत्रों का उच्चारण करने की परंपरा है। जैसे कि “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥” इस मंत्र का जाप स्नान के समय किया जाता है, जिससे आत्मा और शरीर दोनों की शुद्धि होती है।
  5. किस दिशा में मुख करके स्नान करें: शास्त्रों के अनुसार, स्नान करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करना श्रेष्ठ माना गया है। यह दिशा देवताओं की दिशा मानी जाती है, और इस ओर मुख करके स्नान करने से विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है।
  6. तीन बार जल अर्पण करना: स्नान के दौरान तीन बार सिर पर जल डालना, जो कि “अचमन” कहलाता है, अनिवार्य माना गया है। इसे त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को अर्पण करने के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
  7. शरीर के सभी अंगों की सफाई: शास्त्रों में बताया गया है कि स्नान करते समय शरीर के सभी अंगों को ठीक से साफ करना आवश्यक है। केवल जल डालना पर्याप्त नहीं होता; शरीर की सम्पूर्ण सफाई की जाती है ताकि शरीर और मन दोनों शुद्ध हो सकें।

स्नान के लाभ

  1. शारीरिक स्वच्छता: स्नान शरीर से पसीना, धूल और अन्य अशुद्धियों को साफ करता है।
  2. मानसिक शांति: ठंडे जल से स्नान करने से मन में शांति का अनुभव होता है।
  3. आध्यात्मिक शुद्धि: धार्मिक दृष्टि से स्नान आत्मा की शुद्धि का भी प्रतीक है।

(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)

 


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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