थिएटर की दुनिया में क्यों नहीं कहते ‘Good Luck’, क्या है ‘मैकबेथ’ का श्राप, जानिए रंगमंच से जुड़ी रोचक अनूठी बातें

विशेषज्ञों का मानना है कि थिएटर कभी खत्म नहीं होगा क्योंकि यह मानव संवाद और भावनाओं का सबसे जीवंत रूप है। हम इस डिजिटल युग में भी थिएटर की प्रासंगिकता देख रहे हैं। फिर चाहे वो एक्सपेरिमेंटल थिएटर हो या पारंपरिक। और इस बात को साबित करता है दुनिया का सबसे पुराना थिएटर जो आज भी सक्रिय है। पुर्तगाल का "थिएट्रो डो बायरो" दुनिया का सबसे पुराना सक्रिय थिएटर माना जाता है, जो 1565 से लगातार प्रदर्शन कर रहा है। थिएटर को लेकर कई अजीब नियम भी हैं..जैसे कई थिएटरों में मंच पर एक छोटी सी रोशनी, जिसे "घोस्ट लाइट" कहते हैं हमेशा जलती रहती है। माना जाता है कि यह भूतों को खुश रखती है।

Fascinating Facts and Unique Stories about Theatre : रंगमंच..एक ऐसी कला जहां जीवन की कहानियां, भावनाएं और सपने मंच पर सजीव हो उठते हैं। ये एक जादुई संसार है जिसमें अभिनेता नाटक, संगीत और प्रकाश के माध्यम से मानव मन की जानें कितनी भावनाओं को व्यक्त करता है। रंगमंच सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं हैं बल्कि वो दर्पण है जो समाज को उसका चेहरा दिखाता है। ये एक खिड़की है जो हमें नई सोच और संभावनाओं की ओर ले जाती है।

साधारण शब्दों में कहें तो रंगमंच मनोरंजन, चिंतन और संवेदना का संगम है जो दर्शकों को हँसाता, रुलाता और सोचने पर मजबूर करता है। यहां जज्बातों का का मेला, संवादों का जादू और किरदारों की पूरी दुनिया है। जब पर्दा उठता है तो दर्शक एक नई दुनिया में प्रवेश करते हैं। हर नाटक एक अलग दुनिया रचता है। कभी कोई राजा बन जाता है तो कोई भिखारी। कभी हंसी से गूंजता है थिएटर तो कभी कोई दृश्य आंखों में आंसू छोड़ जाता है। रंगमंच की दुनिया ऐसी ही रंगीन और सपनीली है। और आज हम आपको इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें बता रहे हैं।

MP

थिएटर की शुरुआत: प्राचीन ग्रीस से हुई उत्पत्ति

थिएटर का इतिहास लगभह 2500 साल पुराना है जिसकी जड़ें प्राचीन ग्रीस से जुड़ी हैं। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीक नाटककारों जैसे सोफोक्लीज़ और यूरोपाइड्स ने ट्रैजडी और कॉमेडी को जन्म दिया। रोचक बात ये है कि उस समय अभिनेता मास्क पहनकर प्रदर्शन करते थे ताकि दर्शक उनकी भावनाओं को दूर से भी समझ सकें। ये मास्क आज भी थिएटर का प्रतीक माने जाते हैं।

शेक्सपियर का ग्लोब थिएटर: खड़ा हुआ दर्शक वर्ग

16वीं सदी में इंग्लैंड के महान नाटककार विलियम शेक्सपियर के नाटकों ने थिएटर को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनके प्रसिद्ध ग्लोब थिएटर में एक अनोखी परंपरा थी गरीब दर्शक के लिए..जिन्हें “ग्राउंडलिंग्स” कहा जाता था। ये लोग सिर्फ एक पैसे में नाटक देख सकते थे, लेकिन उन्हें मंच के ठीक सामने खड़े रहना पड़ता था। ये परंपरा उस समय की सामाजिक संरचना को भी दर्शाती है।

भारत में रंगमंच: नाट्यशास्त्र का योगदान

भारत में रंगमंच की परंपरा बेहद प्राचीन है और इसका आधार भरत मुनि का “नाट्यशास्त्र” है, जो 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच लिखा गया। ये विश्व का पहला विस्तृत ग्रंथ है जिसमें अभिनय, नृत्य, संगीत और मंच सज्जा के नियम बताए गए हैं। आज भी भारतीय रंगमंच में “रस सिद्धांत” का प्रभाव देखा जा सकता है, जो दर्शकों में भावनाओं को जागृत करने पर केंद्रित है। भारतीय थिएटर की जड़ें लोक कथाओं और पौराणिक कथाओं से जुड़ी हैं।

 सबसे लंबा चलने वाला नाटक

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला नाटक “द माउसट्रैप” है। अगाथा क्रिस्टी द्वारा लिखित यह नाटक 1952 से लंदन के वेस्ट एंड में लगातार प्रदर्शित हो रहा है। अब तक इसके 28,000 से ज्यादा शो हो चुके हैं और ये अपने आप में एक रिकॉर्ड।

थिएटर का अंधविश्वास: “मैकबेथ” का श्राप

थिएटर की दुनिया में कई अंधविश्वास भी जुड़े हैं। जैसे शेक्सपियर के नाटक “मैकबेथ” को “शापित नाटक” माना जाता है। कहा जाता है कि इसके प्रदर्शन के दौरान कई दुर्घटनाएं हुईं जिसके चलते अभिनेता मंच पर इसका नाम लेने से भी बचते हैं और इसे “द स्कॉटिश प्ले” कहकर संबोधित करते हैं।

भूतों का थिएटर: अनोखी मान्यता

दुनिया भर के कई पुराने थिएटरों में यह मान्यता है कि वहां भूतों का वास होता है। लंदन के ड्रूरी लेन थिएटर में “ग्रे मैन” नामक एक भूत की कहानी मशहूर है, जिसे कई अभिनेताओं ने देखने का दावा किया है। कहा जाता है कि उसकी मौजूदगी नाटक की सफलता का संकेत होती है।

गुड लक : थिएटर में “ब्रेक ए लेग” का रहस्य

ये बात आपको हैरत में डाल सकती है लेकिन थिएटर की दुनिया में “गुड लक” कहना अशुभ माना जाता है। इसकी बजाय अभिनेताओं को “ब्रेक ए लेग” कहा जाता है। इससे जुड़ी कई कहानियां हैं, लेकिन एक लोकप्रिय मान्यता ये है कि यह परंपरा शेक्सपियर के समय से चली आ रही है, जब अभिनेता मंच पर झुककर दर्शकों का अभिवादन करते थे, जिसे “लेग ब्रेकिंग” कहा जाता था।

आधुनिक थिएटर में तकनीक का समावेश

आज के दौर में थिएटर ने नई तकनीक को अपनाकर खुद को और जीवंत बना लिया है। प्रोजेक्शन मैपिंग, 3 डी साउंड और ऑगमेंटेड रियलिटी जैसे उपकरण मंच पर कहानियों को नया आयाम दे रहे हैं। उदाहरण के लिए..हाल ही में मुंबई में हुए एक नाटक “रामायण: द न्यू विजन” में डिजिटल तकनीक से रावण के दस सिरों को जीवंत किया गया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

स्ट्रीट थिएटर: समाज को आईना दिखाने का जरिया

भारत में लंबे समय से स्ट्रीट थिएटर या “नुक्कड़ नाटक” सामाजिक जागरूकता का एक शक्तिशाली माध्यम रहा है। सफदर हाशमी जैसे अनेक रंगकर्मियों ने इसे जन-जन तक पहुंचाया। रोचक बात यह है कि इसमें कोई भव्य मंच या कॉस्ट्यूम की जरूरत नहीं होती..फिर भी इसके द्वारा कही गई बात दर्शकों को गहराई से प्रभावित करता है।

मूक थिएटर: बिना शब्दों की कहानी

20वीं सदी में मूक थिएटर (पैंटोमाइम) ने अपनी अलग पहचान बनाई। इस कला ने साबित किया कि संवादों के बिना भी भावनाओं को गहराई से व्यक्त किया जा सकता है। फ्रांस के मशहूर कलाकार मार्सेल मार्सो ने इसे विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया है। मूक थिएटर की खूबसूरती इसकी शब्दहीन अभिव्यक्ति में है। बिना एक शब्द बोले, सिर्फ हाव-भाव से कहानी कहने की यह कला आज भी दर्शकों को हैरान और रोमांचित करती है और इस बात को साबित करती है कि खामोशी भी बहुत कुछ कहती है।


About Author
Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

Other Latest News