Psychological Causes of Frugality : कंजूस-मख्खीचूस…ये कहावत हम सबने सुनी है। कंजूस लोगों को लेकर कई तरह के चुटकुले भी बनाए जाते हैं। कुछ लोग कंजूसी को एक बीमारी भी मानते हैं। लेकिन कहीं ये प्रवृत्ति किसी पुरानी घटना या परेशानी से तो नहीं जुड़ी ? आख़िर क्यों कोई व्यक्ति पैसे खर्च करने में इतना हिचकता है कि वो एक कंजूस के रूप में जाना जाने लगता है। क्या आपके आसपास भी कोई कंजूस व्यक्ति है। कोई दोस्त, रिश्तेदार या कलीग जिसका हाथ कभी जेब में जाता ही नहीं। भले ही उसके पास कितने भी पैसे हों लेकिन वो छोटे से छोटा खर्च करने के लिए भी तैयार नहीं होता।
ऐसे लोगों के साथ रहकर ज़ाहिर तौर पर कभी खीज तो कभी गुस्सा आता ही है। अगर बात एकाध बार की हो तो चल भी जाए, लेकिन कंजूस प्रवृत्ति के लोगों के साथ अलग लंबा संपर्क या संबंध है तो ये आपकी जेब पर भारी पड़ने का साथ रिश्तों पर भी असर डालता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है। किसी भी आदत या पैटर्न के पीछे कोई न कोई कारण होता है। और कंजूसी के पीछे भी कोई वजह हो..ऐसा स्वाभाविक है। हर कंजूस व्यक्ति की प्रवृत्ति के लिए अलग अलग वजहें हो सकती हैं और मनोविज्ञान में इसे काफी अच्छी तरह समझाया गया है। तो आज हम जानेंगे कि आख़िर क्या कारण हो सकते हैं किसी व्यक्ति के कंजूस होने के पीछे?
कंजूसी की आदत: मनोवैज्ञानिक कारण
मितव्ययता और कंजूसी में अंतर होता है। कंजूसी की आदत को समझने के लिए हमें यह जानना आवश्यक है कि किसी व्यक्ति के मनोविज्ञान में क्या प्रक्रिया है जो इस व्यवहार को जन्म देती हैं। क्या उसके साथ कभी अतीत में ऐसा कुछ हुआ है जिसने उसके अंदर असुरक्षा पैदा कर दी है या फिर ये आदत स्वभावगत ही है। मनोविज्ञान के अनुसार, कंजूसी कई बार आर्थिक सुरक्षा और नियंत्रण की गहरी इच्छा से जुड़ी हो सकती है, जबकि कभी-कभी यह आत्म-संरक्षण या सामाजिक और भावनात्मक असुरक्षा की प्रतिक्रिया भी होती है। आज हम कंजूसी की प्रवृत्ति की पड़ताल करेंगे।
1. आर्थिक असुरक्षा और नियंत्रण की भावना : कंजूसी अक्सर उस व्यक्ति में देखने को मिलती है जिसने अपने जीवन में आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया हो या जिसकी परवरिश ऐसे माहौल में हुई हो जहाँ पैसों की कमी रही हो। ऐसी स्थिति में व्यक्ति पैसे को केवल साधन या सुविधा के रूप में नहीं देखता, बल्कि उसे सुरक्षा और स्थायित्व का प्रतीक मानता है। इसलिए, वे अपने खर्च को अत्यधिक नियंत्रित करते हैं चाहे उनकी आर्थिक स्थिति बाद में कितनी ही बेहतर क्यों न हो जाए।
2. भविष्य की अत्यधिक चिंता : कुछ मनोवैज्ञानिक शोध बताते हैं कि जो व्यक्ति अपनी क्षमता या योग्यता को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं, वे अपनी पहचान को मजबूत करने के लिए भौतिक वस्त्रों और धन पर अधिक निर्भर हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि पैसा ही उनका असली मूल्य तय करता है, और इसलिए वे इसे बचाने में अति कर जाते हैं। इसी के साथ वे ये मानते हैं कि भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए किसी भी तरह से पैसा बचाना जरूरी है और ये बात उन्हें छोटे से छोटा खर्च करने से रोकती है।
3. बचपन के अनुभव और सामाजिक प्रभाव : कई बार व्यक्ति की कंजूसी की आदत बचपन के अनुभवों से भी प्रभावित होती है। यदि किसी बच्चे को अत्यधिक सख्त आर्थिक अनुशासन या संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ा हो, तो वह बड़ा होकर भी उसी आदत को अपनाए रखता है। इसके अलावा, परिवार या सामाजिक परिवेश में यदि पैसे को अत्यधिक महत्त्व दिया गया हो, तो वह व्यक्ति भी बचत को अपनी आदत बना लेता है।
4. अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं : कंजूसी की आदत कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से भी जुड़ी हो सकती है, जैसे ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर (OCD)। इस अवस्था में व्यक्ति को अत्यधिक चिंता होती है कि वे अपने संसाधनों को खो देंगे या उन्हें भविष्य में जरूरत हो सकती है। इसके कारण वे खर्च करने से बचते हैं, भले ही वह खर्च आवश्यक क्यों न हो।
5. आत्मनिर्भरता की भावना : कुछ लोग कंजूसी को अपनी स्वतंत्रता और आत्म-निर्भरता के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे कम खर्च करेंगे और अपनी आय को बचाकर रखेंगे तो वे किसी पर निर्भर नहीं होंगे। इस मानसिकता से भी वे खर्च करने से बचते हैं और बचत पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
कंजूसी का प्रभाव
कहते हैं जिसे पैसा समझता है..उसे सब समझता है। अगर कंजूस व्यक्ति से सिर्फ एक बार पाला पड़े तो सामने वाला शख्स उसे बर्दाश्त भी कर ले। लेकिन अगर ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसके साथ आपका मिलना जुलना या संपर्क लगातार है तो फिर कंजूसी की आदत आपसी संबंधों को भी प्रभावित कर सकती है। ज़ाहिर सी बात है, अगर किसी एक व्यक्ति या पक्ष पर ही हमेशा पैसे खर्च करने या अपने संसाधन उपयोग करने का अनावश्यक दबाव होगा, तो वो इस संबंध से परेशान हो जाएगा और बाहर निकलना चाहेगा। इसीलिए लोग धीरे धीरे कंजूस व्यक्तियों से दूरी बना लेते है। ख़ास बात ये कि जरूरी नहीं कि व्यक्ति दूसरों के लिए ही कंजूस हो, कई बार कई लोग अपने ऊपर भी खर्च नहीं कर पाते हैं और इसका असर उनके स्वास्थ्य और व्यक्तित्व पर भी पड़ता है।
- सामाजिक रिश्तों पर असर : कंजूसी की आदत व्यक्ति के सामाजिक रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। लोग ऐसे व्यक्ति को स्वार्थी या अनुदार समझ सकते हैं, जिससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत संबंध खराब हो सकते हैं। जब व्यक्ति दूसरों के साथ संसाधन साझा नहीं करता या जरूरी खर्चों से बचता है, तो उनके आस-पास के लोग उन्हें संकीर्ण दृष्टिकोण वाला समझ सकते हैं, जिससे रिश्तों में दूरी आ सकती है।
- आर्थिक दृष्टिकोण : कंजूसी की आदत से व्यक्ति को अल्पकालिक या तात्कालिक आर्थिक लाभ हो सकता है, क्योंकि वे अधिक बचत कर पाते हैं। लेकिन ये आदत लम्बे समय में हानिकारक हो सकती है। कंजूसी के कारण व्यक्ति महत्वपूर्ण निवेशों या अवसरों को गंवा सकता है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति को नुकसान हो सकता है।
- स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव : अत्यधिक कंजूसी के कारण व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं पर भी खर्च नहीं करता, जैसे स्वास्थ्य संबंधी देखभाल, उचित भोजन, और आरामदायक जीवनशैली। इससे उनके स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य : कंजूसी अक्सर व्यक्ति को मानसिक तनाव और चिंता का शिकार बना सकती है। व्यक्ति हमेशा इस चिंता में रहता है कि वे अपने संसाधनों को खो सकते हैं या उनकी भविष्य की आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त पैसा नहीं बचेगा। इस वजह से उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है और वे संतोषजनक जीवन जीने से वंचित रह सकते हैं।
- आत्म–अनुशासन और आत्म–नियंत्रण की अति : कंजूसी व्यक्ति के आत्म-अनुशासन और संसाधनों के प्रति सचेत रहने की भावना को भी दर्शा सकती है। कई बार यह आदत व्यक्ति को सीमित संसाधनों में जीवन जीने की कला सिखाती है, लेकिन जब यह व्यवहार अति तक पहुँच जाता है तो व्यक्ति के जीवन को सीमित और असंतुलित बना सकता है। अगर व्यक्ति इस हद तक कंजूस है कि अपने ऊपर भी खर्च नहीं कर रहा है तो उसकी सेहत और लाइफ़स्टाइल प्रभावित हो सकती है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)