Balaghat News : टाईगर जिंदा है, यह सलमान खान की फिल्म का नाम नहीं बल्कि कभी देश में शुरू किये गये टाईगर प्रोजेक्ट के सफल 50 साल पूरे होने पर दिल से निकले शब्द है। एक समय था जब देश में टाईगर की संख्या काफी कम थी। तब देश में टाईगर को बचाने के लिए शुरू किये गये टाईगर प्रोजेक्ट का परिणाम है कि 1827 से टाईगर की संख्या 6 गुणा बढ़ गई है। बालाघाट भी टाईगरों के लिए पहचाना जाता है, जिससे लगे कान्हा में देशी और विदेशी सैलानी टाईगर को देखने ही पहुंचते हैं, ऐसे ही हालत पेंच, बांधवगढ़ और अन्य टाईगर रिजर्व की है, जहां सैलानी दूर-दूर से टाईगर को देखने पहुंचते है।
बता दें कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के पहले भारतीय सदस्य बने त्रिलोकचंद कोचर ने टाईगर प्रोजेक्टर के 50 साल पूर्ण होने पर अपने अनुभवों को साझा किया। वे एक वाईल्ड लाईफ के भी अच्छे जानकार है। वाईल्ड लाईफ जानकार त्रिलोकचंद कोचर ने बताया कि देश में जब देश में 9 टाईगर रिजर्व फॉरेस्ट में टाईगरों की संख्या महज 1827 थी, तब देश में टाईगर को बचाने संकल्प पारित कर टाईगर प्रोजेक्ट की शुरूआत 1 अप्रैल 1973 को केन्द्रीय सरकार द्वारा की गई थी। उस समय डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (वर्ल्ड वाईल्डलाईफ फंड) की मदद से देश में टाईगरों को बचाने की मुहिम प्रोजेक्ट टाईगर के रूप में की गई और आज 50 साल बाद बाद देश में ना केवल 53 टाईगर रिजर्व हो गये बल्कि देश में टाईगरों की संख्या भी 6 गुणा बढ़ गई हैं।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के पहले भारतीय सदस्य बने थे त्रिलोकचंद कोचर
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ वाईल्ड लाईफ के संरक्षण में काम करता है। जो हर देश को वहां के वन्यजीवों को बचाने के लिए फंड रिलीज करता है। जिसके देश में शुरू किये गये टाईगर प्रोजेक्ट के रूप में पहले सदस्य त्रिलोकचंद कोचर बने थे। उस दौरान सदस्य बनने एक लाख रूपये की फीस थी। डब्ल्यूडब्ल्यूएफने उन्हें सदस्य के रूप में एलके-1(लाईफ कोचर-1) का नंबर दिया था।
जिले में टाईगरों की संख्या बढ़ाती है प्रदेश का मान
बालाघाट जिले के कान्हा सहित लालबर्रा और वारासिवनी के जंगली क्षेत्रो में टाईगर की बहुतायत है। वन्यजीव जानकार बताते है कि जिले में टाईगरों की बहुतायत संख्या ही प्रदेश का मान बढ़ाती है, यदि प्रदेश टाईगर स्टेट कहा जाता है, तो इसमें जिले का महत्वपूर्ण भूमिका है।
बालाघाट से सुनील कोरे की रिपोर्ट