बैतूल: फर्जी अधिकारी बनकर ब्लैकमेल करने वाली 2 महिला और एक पुरुष गिरफ्तार

Gaurav Sharma
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बैतूल,वाजिद खान। महिला आयोग के नाम पर अडीबाजी का सनसनीखेज मामला बैतूल से सामने आया है । जहां खुद को महिला आयोग का पदाधिकारी बताने वाली दो महिलाओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया है । ये महिलाये खुद को महिला आयोग से जुड़ा बताकर एक स्वास्थ्य कर्मी को ब्लैकमेल कर रही थी । पुलिस ने महिलाओं को 10 हजार की रकम लेते रंगे हाथ गिरफतार कर कोर्ट में पेश किया है।जहां से उन्हें पूछताछ के लिए दो दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया है।

बताया जा रहा है कि बैतूल गंज इलाके में रहने वाले स्वास्थ्य कर्मी राजेश यादव का उनके पड़ोसी परिवार से मकान की पुताई को लेकर विवाद चल रहा था। जिसकी शिकायत पड़ोसियों ने इन महिलाओं से की। खुद को संस्था मानव अधिकार एवं सामाजिक आयोग दिल्ली से जुड़ी बताने वाली शीतल जायसवाल और उसके पुत्र ने राजेश यादव से बात की और उसे महिला प्रताड़ना मामले में उलझाने, गिरफ्तार कराने की धमकी देना शुरू कर दिया। यहां तक कि इस मामले को सुलझाने के लिए एक लाख रुपये की मांग कर डाली।

जब राजेश को यह मामला अडीबाजी का लगने लगा तो उसने बैतूल एसपी से मदद की गुहार लगाई जिसके बाद आरोपी महिलाओ को अडीबाजी की रकम दिया जाना तय किया गया। पुलिस ने इस मामले में बैतूल एसडीओपी नितेश पटेल के नेतृत्व में दो टीआई की टीम बनाई और फिर इस जाल को बुनते हुए महिलाओ को रंगे हाथों धर दबोचा। पुलिस ने शीतल जायसवाल ,प्रिया नरूला और पृथ्वीराज जायसवाल के खिलाफ धारा 384 के तहत प्रकरण दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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