भोपाल।
कहने को तो आजाद भारत में लोकतंत्र है। यहां सत्ता में भागीदारी का सबको बराबर अधिकार है, लेकिन असलियत यह है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक परिवारों का रसूख लगातार बढ़ा है। हैरानी की बात तो ये है कि इसका सबसे ज्यादा असर मध्यप्रदेश में देखने को मिला।इस बार मध्यप्रदेश की 230 सीटों में से करीब 30 % सीटों पर परिवारवाद हावी रहा। इसमें भाजपा ने करीब 20% और कांग्रेस ने 10% टिकट अपने नेताओं के परिवार के लोगों को दिए हैं।ये आकंडे राजस्थान से भी आगे रहे।
एक तरफ जहां भाजपा में कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर को टिकट मिला है, वही कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह ने परिवार में तीन सदस्यों को टिकट दिया गया है। इसके अलावा पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, सांसद कांतिलाल भूरिया के परिवार से 2-2 लोगों को भी टिकट मिला है।
दरअसल, जहां राजस्थान की 200 सीटों में से कांग्रेस ने 10% और भाजपा ने करीब 5% सीटों पर नेताओं के परिवार वालों को टिकट दिए हैं। वही मध्यप्रदेश की 230 सीटों में से भाजपा ने करीब 20% और कांग्रेस ने 10% टिकट अपने नेताओं के परिवार के लोगों को दिए हैं।मध्यप्रदेश में भाजपा-कांग्रेस ने 71 सीटों पर परिवारवाद को ही आगे बढ़ाया। ये 71 प्रत्याशी 68 अलग-अलग सीटों से चुनाव मैदान में हैं। यानी प्रदेश की 30% सीटों पर परिवारवाद का ही वर्चस्व है।राज्य में भाजपा ने 230 में से 48 टिकट अपने नेताओं के भाई, बहन, बहू, बेटे, पत्नी या परिवार के किसी अन्य सदस्य को दिए हैं। इनमें से 34 टिकट बेटे-बेटियों और 14 टिकट परिवार के किसी अन्य सदस्य को दिए। इसी तरह कांग्रेस ने 23 टिकट नेताओं के परिवार के सदस्यों को दिए। इनमें 14 टिकट बेटे-बेटियों और नौ अन्य सदस्यों को मिले हैं।