सब मेरे चाहने वाले हैं, मेरा कोई नहीं

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-फ़िरदौस ख़ान 

उर्दू पत्रकारिता की अहमियत से किसी भी सूरत में इंकार नहीं किया जा सकता. पत्रकारिता का इतिहास बहुत पुराना है. या यूं कहें कि जब से इंसानी नस्लों ने एक-दूसरे को समझना और जानना शुरू किया, तभी से पत्रकारिता की शुरुआत हो गई थी. उस वक़्त लोग एक-दूसरे से बातचीत के ज़रिये अपनी बात अपने रिशतेदारों या जान-पहचान वालों तक पहुंचाते थे. बादशाहों के अपने क़ासिद होते थे, जो ख़बरों को दूर-दराज के मुल्कों के बादशाहों तक पहुंचाते थे. गुप्तचर भी बादशाहों के लिए ख़बरें एकत्रित करने का काम करते थे. बादशाहों के शाही फ़रमानों से अवाम में मुनादी के ज़रिये बात पहुंचाई जाती थी. फ़र्क़ बस इतना था कि ये सूचनाएं विशेष लोगों के लिए ही हुआ करती थीं. वक़्त गुज़रता गया, इसके साथ ही सूचनाओं का दायरा बढ़ता गया और तरीक़ा बदलता गया. कबूतरों ने भी संदेश या ख़बरें एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम किया. आज यही काम अख़बार, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट और मोबाइल के ज़रिये किया जा रहा है.


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