सिंहदेव ने कहा कि नए बिल शोषण और छोटे किसानों के दमन का मौका देते हैं। उन्होंने बताया कि देश में 86.21% किसानों के परिवार में 5 एकड़ से कम की जोत है। क्या ऐसा किसान कारपोरेट अनुबंधों के खिलाफ मुकदमे लड़ सकता है, जो किसान पेट भरने की लड़ाई लड़ रहा है, फसल के मूल्य की लड़ाई लड़ रहा है, क्या वह वकील की फीस भी चुका सकता है।
टीएस सिंहदेव ने गुजरात का उदाहरण देते हुए कहा कि कांट्रेक्ट फार्मिंग वर्तमान परिस्थितियों में शोषण और किसानों की लूट को हवा देने का हथियार बन गया है। उन्होंने बताया कि गुजरात में पेप्सिको कंपनी कई किसानों पर लीज में लगने वाले आलू पैदा करने के खिलाफ मुकदमे लगा रही है। स्वयं प्रधानमंत्री उन किसानों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। अनुबंधों में बताया जाएगा कि यदि ऐसा ही पूरे देश में 1 एकड़ या 2 एकड़ की होल्डिंग रखने वाले किसानों के साथ हुआ, तो सरकार उसे क्या संरक्षण दे पाएगी।
टीएस सिंहदेव ने कहा कि बीजेपी की नियत तो शांताकुमार कमेटी से ही जाहिर हो चुकी थी। उन्होंने सवाल किया कि अगर सरकार कहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म नहीं हुआ, तो इसे बिलों में लिखने में क्या आपत्ति है। सरकार ने उसे बिलों में क्यों नहीं लिखा। उलटे बिलों में यही लिखा गया कि जब तक व्यापारी 100 के 200 रूपये कमाता है, तब तक सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी, यानी मध्यस्थता तब शुरू होगी, जब 100 का माल 201 में बेचा जाएगा।
यह उपभोक्ता की लूट का अब कानूनी प्रावधान है। कांग्रेस इसका विरोध करती है। टीएस सिंह देव ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब केंद्र सरकार द्वारा उपभोक्ता मामलों पर बनाए गए वर्किंग ग्रुप के सदस्य थे। तब उन्होंने स्वयं उस बैठक में यह मुद्दा डलवाया था कि कोई भी अंतर राज्य आदान-प्रदान बिना समर्थन मूल्य सुनिश्चित किए वैध नहीं माना जाना चाहिए। अब आज प्रधानमंत्री की हैसियत में पेशी संरक्षण को कानून से क्यों गायब रखना चाहते हैं, इसका उत्तर आना चाहिए।
टीएस सिंह देव ने कहा कि संघीय ढांचे में शेड्यूल सात और समवर्ती सूची के अनुसार कृषि राज्य का विषय है। इसमें कोई भी दखल संवैधानिक बुनियादी अधिकार का अतिक्रमण है। राज्य सरकारों के अधिकारों पर कुठाराघात है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया है कि राज्यसभा में जिस तरह से मत विभाजन को टाला गया है। वह हिटलर शाही की ओर ले जाने वाला है।
जब सरकार बहुमत में है तो उसे मत विभाजन से क्या डर था। उसे बताना चाहिए था कि धीरे-धीरे देश को ऐसे रास्ते पर धकेला जा रहा है जिसका बहुमत है, वह देश पर अपनी मनमर्जी थोप सकता है। कांग्रेस ऐसा नहीं होने देगी।