भोपाल। लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम चरण में हैं। प्रदेश में भी तीन दौर का मतदान हो चुका है। आखिरी दौर का मतदान मालवांचल की ही आठ सीटों पर होना है। देवास, धार, खंडवा, खरगोन, इंदौर, मंदसौर, रतलाम और उज्जैन सीटों पर 19 मई को मतदान है।
2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ये सभी सीटें जीतकर इतिहास रचा था। लेकिन इस बार प्रदेश की राजनीति के समीकरण बदले हुए हैं। कांग्रेस सत्ता में है, विधानसभा चुनावों में भाजपा को मालवांचल से जोरदार झटका मिला है। 2014 में वह ये सभी सीटें कम से कम एक लाख से अधिक मतों से जीती थी. पर अब आठ में से चार सीटों पर पिछड़ गई है और बाकी चार पर भी बढ़त का अंतर कम हुआ है। मतलब कि मुकाबला 4-4 की बराबरी पर है।
देवास में 39871, धार में 220070, खरगोन में 9572 और रतलाम में 29190 मतों से भाजपा पिछड़ गई है। जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में यही सीटें उसने क्रमश: 260313, 104328, 257879 और 108447 मतों के अंतर से जीती थीं। इंदौर, खंडवा, मंदसौर और उज्जैन में भाजपा बढ़त में तो रही है लेकिन नुकसान यहां भी उठाना पड़ा है। 2014 में 466901 मतों से जीती इंदौर सीट पर अब उसकी बढ़त घटकर 95130 रह गई है। इसी तरह खंडवा में 259714 से घटकर 72537, मंदसौर में 303649 से 77593 और उज्जैन में 309663 से घटकर 69922 रह गई है।
लेकिन यदि विधानसभा सीटों की जीत की गणना के हिसाब से देखें तो कांग्रेस बढ़त में दिखती है। एक लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभाएं हैं. धार (6-2), खंडवा (4-3), खरगोन (6-1), रतलाम (5-3) और उज्जैन (5-3) में कांग्रेस आगे है. देवास (4-4) और इंदौर (4-4) में मुकाबला बराबरी का है. केवल एक मंदसौर में भाजपा 7-1 से आगे है. कुल मिलाकर यह समीकरण तो कांग्रेस के पक्ष में हैं।
इसीलिए अपना पिछला प्रदर्शन दोहराना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. नतीजतन आठ में से छह सीटों पर पार्टी ने नए चेहरे दिए हैं. मौजूदा दो ही सांसदों को दोहराया गया है. अंतिम दौर के इस चुनाव में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और कांतिलाल भूरिया और यूपीए सरकार में मंत्री रहीं मीनाक्षी नटराजन जैसे बड़े नामों का भविष्य दांव पर है. 2009 के लोकसभा चुनावों में मालवा की इन 8 सीटों में से 6 कांग्रेस ने जीती थीं. इसलिए 2018 के विधानसभा चुनावों में मालवा में मिली बढ़त से कांग्रेस को वही प्रदर्शन फिर से दोहराने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन से पूरी बाजी ही पलट दी थी. 2013 के विधानसभा चुनावों में उसे 66 में से केवल 9 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 55 सीटें. 2018 में कांग्रेस को सीधा 26 सीटों का फायदा हुआ और उसकी संख्या 35 पर पहुंच गई. जबकि भाजपा खिसक कर 28 पर आ गई थी. इन आठ में से पांच आरक्षित सीटें हैं. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान मालवांचल की जिन चार सीटों पर बढ़त बनाई है, वे चारों ही आरक्षित हैं. वहीं, अगर इन सीटों पर किसी पार्टी के दीर्घकालीन प्रभाव पर बात करें तो इंदौर सीट 1989 से भाजपा के पास है. इस दौरान 8 लोकसभा चुनाव हुए हैं.
मंदसौर सीट पर भी 1989 से हुए 8 चुनावों में 7 बार भाजपा जीती है केवल 2009 में कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन ने जीत दर्ज की थी. कुछ ऐसा ही हाल उज्जैन का है. 1989 से अब तक केवल 2009 में ही भाजपा हारी थी. वहीं, खरगोन और खंडवा भी भाजपा के प्रभाव वाली सीटें हैं. खरगोन में 1989 से 9 चुनाव हुए, 7 भाजपा जीती और खंडवा में इस दौरान 8 चुनाव हुए, 6 में भाजपा जीती है. इस तरह पांच सीटें भाजपा के प्रभाव क्षेत्र वाली हैं जिनमें इंदौर उसका सबसे मजबूत किला है. वहीं, रतलाम कांग्रेस का सबसे मजबूत किला है जिसे वह 1980 से फतह करती आ रही है.
इस दौरान हुए 11 में ���े 10 चुनाव उसने जीते हैं. 2014 में उसे भाजपा से हार भी मिली तो इसलिए क्योंकि उसके पांच बार के सांसद दिलीप सिंह भूरिया बगावत करके भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. धार भी कांग्रेस के लिए सुकून वाले नतीजा देता रहा है. 1980 से हुए 10 चुनावों में 7 उसने जीते हैं. हालांकि 2004 से अब तक हुए 3 चुनावों में दो में उसे हार मिली है. बची देवास की सीट, तो वर्ष 1962 के बाद यह 2009 में अस्तित्व में आई.2009 में यहां कांग्रेस जीती तो 2014 में भाजपा. हालांकि, 2008 में परिसीमन के पहले तक इस सीट को शाजापुर-देवास के नाम से जाना जाता था. उसे समय 1989 से 2004 तक हुए 6 चुनावों में भाजपा ही जीती थी.