भोपाल।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कई बड़े नेताओं में इस बार चुनाव लड़ने की इच्छा जागी है। इनमें एक नाम प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी है।सिंह ने भी लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। खबर है कि वे राजगढ़ लोकसभा सीट से मैदान में उतर सकते है। इस क्षेत्र पर उनका खासा दबदबा है। दिग्विजय इस सीट से 2 बार सांसद चुने जा चुके हैं तो वहीं उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी 5 बार इस सीट से जीतकर संसद पहुंच चुके हैं। भले ही वर्तमान में यह सीट भाजपा के कब्जे में हो लेकिन सालों तक इस पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। हालांकि इस सीट पर उनकी पत्नी अमृता के भी चुनाव लड़ाए जाने की अटकले तेज है। अगर दिग्विजय यहां से चुनाव लड़ते है तो भाजपा के लिए जीत हासिल करना मुश्किल होगा।
दरअसल, मध्य प्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट राज्य की वीआईपी सीटों में से एक मानी जाती है। यह क्षेत्र कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के दबदबे वाला क्षेत्र है। इसलिए कयास लगाए जा रहे है कि कांग्रेस इस सीट से दिग्विजय को उतार सकती है। दिग्विजय पहले भी इस सीट से दो बार सांसद रह चुके है। इसके साथ ही उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी यहां से पांच बार सांसद रहे है। ऐसे में सालों से इस सीट पर कांग्रेस का खासा असर रहा है, भले ही वर्तमान में यह सीट भाजपा के पास हो और रोडमल नागर सांसद है। पिछले चुनाव में रोडमल नागर ने कांग्रेस के कद्दावर नेता नारायण सिंह आमलाबे को 2 लाख 28 हजार 737 वोटों से हराकर ये सीट अपने नाम की थी। रोडमल नाहर को सबसे ज्यादा 5 लाख 96 हजार 727 वोट मिले थे,जबकि उस साल यहां बसपा तीसरे नंबर पर रही थी। 2014 में मोदी की लहर का असर जोरों पर था, जिसका फायदा भाजपा को मिला।कांग्रेस का गढ होते हुए भी यहां भाजपा का जीतना अपने आप में काफी बड़ी जीत साबित हुई थी। अब तक नागर का रिपोर्ट कार्ड अच्छा रहा है। वे काफी सक्रिय नेता माने जाते है , संसद में भी उनकी सक्रियता सवालों को लेकर अक्सर देखी गई है। हालांकि इस बार समीकरणों में बदलाव नजर आ रहा है। चुंकी मैदान में बसपा भी है और वर्तमान में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। अगर कांग्रेस दिग्विजय को मैदार में उतारती है तो बाजी पलट सकती है।
ऐसा रहा है इस सीट का इतिहास
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं। चचौड़ा, ब्यावरा, सारंगपुर, राघोगढ़, राजगढ़, सुसनेर, नरसिंहगढ़ और खिलचीपुर यहां की विधानसभा सीटें हैं। इन 8 सीटों में से 5 पर कांग्रेस और 2 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि 1 सीट पर निर्दलीय विधायक है। साल 1962 में यहां पर हुए पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार भानुप्रकाश सिंह को जीत मिली। उन्होंने कांग्रेस के लिलाधर जोशी को हराया था। कांग्रेस को इस सीट पर पहली बार जीत 1984 में मिली, जब दिग्विजय सिंह ने बीजेपी के जमनालाल को मात दी थी। हालांकि इसका अगला चुनाव दिग्विजय सिंह हार गए थे। बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल ने कांग्रेस के इस दिग्गज नेता को हरा दिया था। इसके बाद 1991 में दिग्विजय सिंह ने इस हार का बदला लिया और प्यालेलाल को हरा दिया।दिग्विजय के मध्य प्रदेश का सीएम बनने के बाद यह सीट खाली हो गई और 1994 में यहां पर उपचुनाव हुआ। कांग्रेस की ओर से दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह मैदान में उतरे और बीजेपी के दत्ताराय रॉव को मात दे दी। 1994 में जीत हासिल करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भी जीत हासिल की। लेकिन साल 2009 के चुनाव में इस सीट को जीतकर कांग्रेस नेता आमलाबे नारायण सिंह लोकसभा पहुंचे लेकिन साल 2014 के चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ और भाजपा यहां जीत गई और रोडमल नागर यहां से सांसद बने। इस सीट पर कांग्रेस को 6 बार जीत मिली है और बीजेपी को 3 बार। ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है।