हारने के बाद भी सिंधिया समर्थक दो मंत्रियों का नहीं जा रहा पद मोह, नहीं दिया इस्तीफा

Atul Saxena
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश  (Madhya pradesh) में 28 विधानसभा सीटों ( Assembly seats) पर हुए उपचुनावों (By election) में भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya janata party)ने भले ही 19 सीटें जीतकर शिवराज सरकार (Shivraj government) ने स्थायित्व (Stability) दे दिया हो लेकिन  ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya scindia samarthak) समर्थक तीन मंत्रियों के हारने से सिंधिया कैंप में थोड़ी मायूसी है। हार के बाद भी इनमें से दो मंत्रियों ने अभी इस्तीफा नहीं दिया है। उनसे मंत्री पद का मोह नहीं छूट रहा है।

प्रदेश की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 19 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया और कांग्रेस को 9 सीटों पर ही रोक दिया। भाजपा ने हालांकि जीत तो बड़ी हासिल की लेकिन सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया समर्थक तीन मंत्री चुनाव हार गए। प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी डबरा से चुनाव हार गई वहीं कृषि राज्य मंत्री गिर्राज दंडोतिया दिमनी विधानसभा से चुनाव हार गए। उधर सुमावली विधानसभा से चुनाव लड़े पीएचई मंत्री एदल सिंह कंसाना भी चुनाव हार गए। ये तीनों सीटें कांग्रेस के खाते में चली गई।

दो मंत्रियों से नहीं छूट रहा पद का मोह

शिवराज सरकार में 12 मंत्री ऐसे थे जिन्हें बिना विधायक बने मंत्री बनाया गया था इनमें इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और एंदल सिंह कंसाना भी शामिल थे। भाजपा ने इन्हें अपने टिकट पर चुनाव लडाया लेकिन ये चुनाव हार गए। हार के बाद अगले ही दिन पीएचई मंत्री कंसाना ने तत्काल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया ने अभी तक पद से इस्तीफा नहीं दिया है यानि इन दोनों नेताओं से हार के बाद भी मंत्री पद का मोह नहीं छूट रहा।

2 जनवरी तक बने रह सकते हैं पद पर

उप चुनाव में हार के बाद इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया द्वारा इस्तीफा नहीं दिया जाना राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। नैतिकता तो यही कहती है कि चुनाव में हार के बाद इन दोनो को मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए लेकिन संविधान ये कहता है कि कोई भी गैर विधायक व्यक्ति अधिकतम छह महीने तक पद पर रह सकता है उस बीच यदि वो निर्वाचित नहीं होता है तो उसका पद स्वयं ही समाप्त हो जाता है। इस हिसाब से यदि इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया इस्तीफा नहीं देते है तो वे 2 जनवरी तक अपने पद पर बने रह सकते हैं उसके बाद उनका पद स्वतः समाप्त हो जायेगा।

कैबिनेट की बैठक में मुक्त  किया जा सकता है 

उधर भारतीय जनता पार्टी के पूर्व  राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रभात झा ने मीडिया से कहा कि इस्तीफा देना सामान्य और औपचारिक प्रक्रिया है। एंदल सिंह कंसाना इस्तीफा दे चुके हैं जल्दी ही इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया भी इस्तीफा दे देंगे और यदि वे इस्तीफा नहीं भी देते तो कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री उन्हें  पद से मुक्त घोषित  कर सकते हैं यानि मुख्यमंत्री दोनों को पद से अलग कर सकते हैं। बहरहाल अब देखना ये है कि हारे हुए दोनों मंत्री पद का मोह कब तक त्याग पाते हैं।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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