भोपाल।
मध्य प्रदेश की 15वीं विधानसभा का सत्र आज सोमवार से शुरू हो गया है। 15 सालों बाद कांग्रेस सत्तापक्ष और बीजेपी विपक्ष में बैठेगी।वही प्रदेश के 18 वें मुख्यमंत्री कमलनाथ सदन के नेता के रूप में आज पहली बार विधानसभा पहुंचेंगे। हालांकि वे अभी तक विधानसभा सदस्य नही बन पाए है, उन्हें मुख्यमंत्री बनने के बाद छह महीने के अंदर विधानसभा सदस्य निर्वाचित होना होगा। खबर है कि वे जल्द ही छिंदवाड़ा की सौसर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ विधायक बनेंगें। अब तक कमलनाथ छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद रह चुके है।
छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद रह चुके कमलनाथ एक उत्कृष्ट और कुशल नेता रहे हैं। चुनाव से पहले पार्टी द्वारा उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया और वे पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे। उन्होंने कांग्रेस को एकजुट कर चुनाव लड़ा औऱ जीत हासिल की। कांग्रेस के 14 सालों के वनवास को खत्न करने में नाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री है और अब तक अपने 50 सालों के करियर में 9 बार छिंदवाड़ा से लोकसभा सांसद रहे चुके है।लेकिन सालों बाद कमलनाथ आज पहली बार विधानसभा की सीढ़िया चढ़ेंगें। हालांकि वे अब तक विधानसभा के सदस्य नही बने है। अब विधानसभा सदस्य बनने के लिए उन्हें उपचुनाव लड़ना होगा। ऐसे में माना जा रहा है कि कमलनाथ अपने गृह जिले छिंदवाड़ा की सौसर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते है।
ऐसा रहा है संसद से विधानसभा तक का सफर
कमलनाथ मध्यप्रदेश की राजनीति में पहली बार सक्रिय हुए हैं। इससे पहले वह केन्द्र की राजनीति में सक्रिय थे। कमलनाथ ने कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा वह मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा संसदीय सीट से नौ बार के सांसद रहे और केन्द्र में कई बार मंत्री भी रहे। मनमोहन सिंह के दोनों कार्यकाल में कमलनाथ मंत्री रहे। ये पहला मौका है जब वो विधानसभा पहुंचेंगे। कमलनाथ 1980 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। वह फिर से 8 वीं लोकसभा में 1985, 9 वीं लोकसभा में 1989, और 10 वीं लोकसभा में 1991 में उन्होंने में वो मंत्री बने। 1995 से 1996 तक केंद्रीय राज्य मंत्री रहे। 12 वीं लोकसभा में 1998 और 13वीं लोकसभा में 1999। 2001 से 2004 तक वह पार्टी के महासचिव रहे। 14 वीं लोकसभा में 2004 के लिए चुने गए और केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री बने। 2009 में वह फिर सांसद बनें और कैबिनेट मंत्री बने। उनके पास सड़क परिवहन और राजमार्ग, शहरी विकास मंत्री भी रहे। 2014 में भी उन्होंने जीत दर्ज की और लोकसभा पहुंचे।
कहा जाता है बिजनेस टायकून
कांग्रेस के कार्यकाल में वे उद्योग मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय, वन और पर्यावरण मंत्रालय, सड़क और परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। राजनीति के अलावा कमलनाथ को बिजनेस टायकून भी कहा जाता है, वो 23 कंपनियों के मालिक हैं, जो उनके दोनों बेटे चलाते हैं।1980 में छिंदवाड़ा की जनता ने कमलनाथ को 7वीं लोकसभा में भेजा। मूल रूप से छिंदवाड़ा एक आदिवासी इलाका माना जाता है। कमलनाथ ने यहां लोगों को रोजगार दिया और आदिवासियों के उत्थान के लिए कई काम किए।
यहां से हुई थी राजनीतिक जीवन की शुरुआत
कहा जाता है कि आपातकाल के बाद जब पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई थी तब संजय गांधी के कहने पर कमलनाथ ने राजनीति में आए। उन्हें संजय गांधी ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने के लिए कहा था। पहली बार कमलनाथ 1980 में कांग्रेस सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे और इसके साथ ही इंदिरा गांधी की भी सत्ता में वापसी हुई। 1980 के लोकसभा चुनाव में जब कमलनाथ पहली बार चुनाव लड़ रहे थे तब इंदिरा गांधी उनका प्रचार करने छिंदवाड़ा पहुंची थीं। इस दौरान उन्होंने कहा था कि राजीव और संजय गांधी के बाद कमलनाथ मेरे तीसरे बेटे हैं और मैं अपने बेटे के लिए वोट मांगने आई हूं।
जिंदगी में केवल एक बार हारे कमलनाथ
जिस छिंदवाड़ा से कमलनाथ लगातार चुनाव जीत रहे हैं वहां से उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा है। दरअसल, हवाला कांड में नाम आने के बाद कमलनाथ 1996 का आम चुनाव नहीं लड़ सके थे। अपनी जगह उन्होंने यहां से अपनी पत्नी अलका कमलनाथ ने चुनाव मैदान में उतारा और वो चुनाव जीत भी गईं। लेकिन हवाला कांड से बारी होने के बाद कमलनाथ ने पत्नी से से इस्तीफा दिला दिया और खुद चुनाव लड़े। लेकिन वो बीजेपी के दिग्गज नेता सुंदरलाल पटवा से हार गए। कमलनाथ की यह एक मात्र हार है।
इंदिरा गांधी मानती थीं तीसरा बेटा
उल्लेखनीय है कि कमलनाथ स्वर्गीय संजय गांधी के करीबी दोस्त थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन्हें अपना तीसरा बेटा मानती थीं। शायद यही वजह रही होगी कि 1980 में संजय गांधी ने कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली छिंदवाड़ा सीट से कमलनाथ को चुनाव लड़वाया था। तब से कमलनाथ छिंदवाड़ा के ही होकर रह गए। वह अब तक 9 बार सांसद चुने जा चुके हैं। सिर्फ 1997 के उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन कुछ महीने बाद ही वह फिर जीत गए थे।
1993 में अर्जुन सिंह ने रास्ता रोका था
केंद्र सरकार में संसदीय कार्य और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके कमलनाथ 1993 में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन तब अर्जुन सिंह ने उनका रास्ता रोक दिया था। उस समय दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने थे लेकिन दिग्विजय ने कमलनाथ से हमेशा बनाकर रखी। अभी कुछ दिन पहले ही दिग्विजय ने कहा भी था कि मैं कमलनाथजी को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री देखना चाहता हूं। वह लगातार कमलनाथ की मदद कर रहे थे।