भवन का मुख्य द्वार हो या अन्य कमरों के गेट, पहले जो घर बनते थे उनमें हर द्वार पर दहलीज़ लगाना अनिवार्य होता था। इसके महत्व को मान-सम्मान से जोड़कर भी देखा जाता है- “इस दहलीज़ को न लांघना”, कह देने से सामने वाले को घर में प्रवेश पर प्रतिबंध लग जाता था। वास्तु विशेषज्ञ एस.के. मेहता से जानते हैं दहलीज से जुड़ी खास बातें…
नकारात्मकता को बाहर का रास्ता
दहलीज़ का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इससे कोई भी व्यक्ति एक दम से अंदर नहीं आ सकता, उसे दहलीज़ को लांघकर ही अंदर आना पड़ता है। अत: दहलीज़ घर के अंदर आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को प्रवेश करने से रोक देती है।
इसलिए है दहलीज़ लगाना जरूरी
किसी भी द्वार पर दहलीज़ लगाने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये भी है कि वह जिस कमरे के गेट पर लगाई जाती है, उस कमरे की ऊर्जा ना तो बाहर जाती है और ना ही बाहर की ऊर्जा अंदर आती है। इससे हम जिस घर में रहते हैं, अगर उसमें या उसके आस-पास कोई वास्तु दोष है भी, तो बेडरूम, ड्रॉइंग रूम, किचन और घर के अंदर अन्य सभी कक्ष बाहर की नेगेटिव एनर्जी से दूर रहते हैं और ऐसे घर में निवास करने वाले लोग औरों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित होते हैं।
टॉयलेट द्वार पर दहलीज़ लगाने का फ़ायदा
पहले के ज़माने में घर बनाते समय शौचालयों को भवन से दूर बनाया जाता था क्योंकि माना जाता है कि सबसे ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा यहां से आती है। हालांकि आजकल जो शौचालय बनते हैं, वो हाईटेक होने की वजह से उतने नेगेटिव नहीं हैं, फिर भी सबसे ज्यादा नेगेटिव ऊर्जा इन्हीं की वजह से घर में आती है और आप इनके द्वारों पर दहलीज़ लगवाकर घर को इस वास्तु दोष से बचा सकते हैं।
इन दिशाओं में मुख्य द्वार हो, तो अवश्य लगाएं दहलीज़
अगर आपका घर उत्तर पूर्व या ईशान मुखी है और घर के मुख्य द्वार पर दहलीज़ नहीं भी है, तो ऐसा चल सकता है पर यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिण, पश्चिम, नैऋत्य, वायव्य या आग्नेय दिशा में है, तो इन पर दहलीज़ लगवाना आपके लिए बहुत ज़रूरी है क्योंकि इस दोष की वजह से आपको अलग-अलग प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।