Lata Mangeshkar: लय-ताल और लता का अनसुना साथ, जानें रिजेक्शन के बाद कैसे बनी सुरों की मल्लिका

Lata Mangeshkar

मेरी आवाज ही पहचान है- नाम रहे या न रहे….सिने पटल से लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की आवाज को मिटा पाना हमेशा हमेशा के लिए नामुमकिन हैं। सुर, संगीत और गीतों में लताजी की आवाज ही नहीं उनकी रूह बसती थी। हर गाने में वो कशिश जो कानों के रास्ते सीधे दिल में उतरता था। मखमली आवाज, सुरों की मल्लिका, स्वर कोकिला जैसे तमाम विशेषण उनकी आवाज, उनकी शख्सियत के सामने छोटे लगने लगे थे। लताजी ने कितनी फिल्मों में कितने गानें गाए इसकी गिनती करना बहुत आसान हो सकता है, लेकिन अब सिने जगत को संगीत की दुनिया को उनके जैसा कोई और फनकार मिलेगा और उनका फन कितने बरसों बरस तक जिंदा रहेगा।

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इसका अंदाज लगाना मुश्किल है, लता मंगेशकर जी इस दुनिया को अलविदा कह गईं, न जाने कितने किस्से, कितने कहानियां कितने गीत अपने पीछे छोड़ गईं>  सुरों की दुनिया उनके बिना सूनी रह गई ये सच है, तो ये भी उतना ही सच है कि लता अलविदा कह सकती हैं लेकिन उनकी आवाज और उनके सुर कभी जुदा नहीं हो सकते।  इस गमगीन मौके पर जानते हैं लता मंगेशकर से जुड़ कुछ ऐसे किस्से जो उनके संघर्ष और उनके सुरों की अनसुनी बातें कहते हैं।
अपनी आवाज के साथ दुनिया भर पर राज करने वाली लता मगेशकर को भी रिजेक्शन झेलना पड़ा था।

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Pooja Khodani

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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)