भोपाल। विधानसभा में मिली करारी हार के बाद बीजेपी ने अगामी लोकसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है। ज्यादा से ज्यादा सीटे जीतने के लिए पार्टी नेता तैयारी में जुट गए हैं| इसके लिए उप्र के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह एवं राष्ट्रीय पदाधिकारी सतीश उपाध्याय एक महिने से प्रदेश में डेरा डाले हुए है। दोनों नेता हाईकमान को मप्र भाजपा से जुड़ी सभी रिपोर्ट सौंप रहे है। बावजूद इसके प्रदेशभर में कांग्रेस की लहर के चलते कई सीटे भाजपा के हाथों से खिसकती हुई नजर आ रही है। विधानसभा में होने वाला विरोध अब भी कई जिलो में हावी है। संघ भी पहले ही क्लियर कर चुका है कि 16 सांसदों की स्थिति ठीक नही है उनके टिकट इस बार काटे जाए।इसके के चलते भाजपा नए चेहरों को मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है।
दरअसल, विधानसभा चुनाव की तरह इस बार लोकसभा चुनाव भी भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। सत्ता परिवर्तन से समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कई सीटों पर भाजपा सांसदों की स्थिति कमजोर और खराब है, अगर पार्टी वर्तमान सासंदों को मौका देती है तो बीजेपी को फिर से हार का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन पार्टी इस बार रिस्क नही लेना चाहती और नए चेहरों को उतारने की कोशिश मे है। बताया जा रहा है इसके लिए कई नामों पर चर्चा भी चल रही है। मौजूदा राजनीतिक हालात और चुनावी सर्वे में लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी की पिछड़ रही है। कई सीटें ऐसी हैं, जहां सांसदों के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी है। 29 लोकसभा क्षेत्रों में से भाजपा के पास फिलहाल 26 सीटें हैं। कांग्रेस के पास मात्र तीन सीटें हैं पर पार्टी इस बार 15 से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश में है। विधानसभा चुनाव 2018 के परिणामों के आधार पर लोकसभा सीटों का विश्लेषण करें तो 14 सीटें ऐसी हैं, जहां आठ में से भाजपा के पास आधी से भी कम सीटें आई हैं। पार्टी ऐसी सीटों पर अब चेहरे बदलकर लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है।
मुरैना : सांसद अनूप मिश्रा को पार्टी दोबारा उतारने के मूड में नहीं है। यहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आठ में से सात और भाजपा को मात्र एक सीट मिली है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यहां लौट सकते हैं। तोमर के ग्वालियर सीट के बदलने की अटकले तेज है। एससी-एसटी और आरक्षण के विरोध के चलते तोमर ग्वालियर की बजाय मुरैना से मैदान में उतर सकते है।
रतलाम : कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया की इस आदिवासी सीट पर भी भाजपा को तीन और कांग्रेस को पांच सीट पर बढ़त मिली है। 2014 में यहां से भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया जीते थे, लेकिन उनके निधन के बाद उपचुनाव में भूरिया की बेटी निर्मला हार गई थीं।विधानसभा में भाजपा की स्थिति ठीक रही लेकिन जीत निश्चित करने के लिए भाजपा कुछ बदलाव कर सकती है।
भिंड : कांग्रेस से आकर भाजपा से सांसद बने डॉ. भागीरथ प्रसाद के खिलाफ सर्वे में माहौल ठीक नहीं बताया गया है। विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा को मात्र दो सीट मिली है। कांग्रेस को पांच और एक पर बहुजन समाज पार्टी जीती है। यहां के सर्वे में भी पार्टी नया चेहरा तलाश रही है। पूर्व सांसद अशोक अर्गल और लालसिंह आर्य का नाम विचारक्षेत्र में है।
दमोह : सांसद प्रहलाद पटेल यहीं से चुनाव लड़ना चाहते हैं पर विधानसभा चुनाव में यहां की आठ में से भाजपा को मात्र तीन सीट मिली हैं। चार पर कांग्रेस और एक पर बसपा के जीतने से समीकरण बिगड़ गए हैं।इस सीट से पूर्व मंत्री कुसुम मेहदेले और गोपाल भार्गव के बेटे भी दावेदारी पेश कर चुके है। वही कांग्रेस में भाजपा से बागी हुए वरिष्ठ नेता रामकृष्ण कुसमारिया को मैदान में उतारे जाने की भी खबर है।
छिंदवाड़ा : मुख्यमंत्री कमलनाथ की पारंपरिक सीट में सभी विधायक कांग्रेस के जीते हैं। भाजपा यहां से किसी बड़े नेता को चुनाव में उतारने की तैयारी में है।चुंकी कमलनाथ यहां से विधानसभा चुनाव लड़ने वाले है, ऐसे में उनके बेटे नकुलनाथ यहां से मैदान में उतर सकते है ,इसलिए बीजेपी एक दमदार चेहरे की तलाश कर रही है।
बालाघाट : सांसद बोधसिंह भगत के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी नहीं है पर विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा को तीन सीट मिली है। पार्टी सूत्रों की मानें तो भगत को एक मौका मिल सकता है या नीता पटेरिया को भी पार्टी आजमा सकती है।
मंडला : फग्गनसिंह कुलस्ते की सीट को इस बार खतरे में बताया गया है। अब पार्टी यहां से राज्यसभा सदस्य सम्पतिया उईके के नाम पर भी विचार कर रही है। ऐसे हालात में कुलस्ते राज्यसभा भेजने के विकल्प पर बातचीत चल रही है।
राजगढ़ : सर्वे में सांसद रोडमल नागर के खिलाफ अनुकूल माहौल नहीं है। विधानसभा में भी भाजपा को मात्र दो सीटों पर बढ़त मिली। पांच कांग्रेस के पास और एक पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली है। पार्टी देख रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहां से चुनाव लड़ते हैं, उसके बाद राजगढ़ का फैसला किया जाएगा।
खंडवा : सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के लोकसभा क्षेत्र में भी भाजपा को मात्र तीन विधायक मिल पाए। कांग्रेस के चार और एक निर्दलीय विधायक हैं। यहां से पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस भी टिकट की दौड़ में हैं।
खरगोन : आदिवासी सीट खरगोन लोकसभा में भाजपा का मात्र एक विधायक जीतकर आया है। पार्टी यहां भी नए चेहरे को उतारने की तैयारी में है।
धार : पार्टी के सर्वे में सांसद सावित्री ठाकुर के खिलाफ भी अनुकूल माहौल नहीं बताया है। जय युवा आदिवासी शक्ति (जयस) के कारण इस सीट पर पार्टी कोई नए चेहरे को आजमा सकती है। पूर्व मंत्री रंजना बघेल भी यहां से टिकट की दौड़ में है।
गुना : कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना-शिवपुरी सीट में विधानसभा सीटों के लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस को पांच और भाजपा को तीन सीटें मिली हैं पर वोट प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो भाजपा के खाते में ज्यादा वोट आए हैं। इसके विपरीत कई सीटें ऐसी हैं जहां विधानसभा सीट और वोट के लिहाज से भाजपा पिछड़ रही है।
इन सीटों पर भी बदलाव के आसार
देवास से मनोहर ऊंटवाल विधायक बन गए। पार्टी यहां से केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत को उतार सकती है। कांग्रेस नेता गोपाल इंजीनियर को भी पार्टी में लाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। विदिशा से सुषमा स्वराज के चुनाव नहीं लड़ने की दशा में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी विकल्प माना जा रहा है। खजुराहो से नागेंद्र सिंह के विधायक बनने के बाद यहां से उमेश शुक्ला और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा के नाम पर चर्चा चल रही है। मंदसौर में भी सुधीर गुप्ता का विकल्प तलाश जा रहा है।