कर्ज में डूबी मध्यप्रदेश सरकार, लेकिन मंत्रियो का इन्कम टैक्स चुकाने को है पैसा

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। अजब एमपी की गजब सरकार में कोरोना काल में एक तरफ तो जानवरों (Animals) का चावल (Rice) गरीबों की भूख मिटाने के लिए बांट दिया जाता है। गौमाता का पेट भरने के लिए रोजाना महज 1 रुपया 60 पैसा का बजट तय किया जाता है, वहीं गौमाता और गरीब का पेट काटकर आम जनता के टैक्स से भरे सरकारी खजाने के पैसे से अब मंत्रियों के वेतन का इन्कमटैक्स (Income tax of ministers salary) भरा जा रहा है। हैरानी तो ये है कि कोरोना महामारी में खाली खजाने का ढिंढोरा पीट रही शिवराज सरकार (Shivraj Sarkar) के पास इतने पैसे हैं कि वो अपने माननीय मंत्रियों के वेतन का इन्कमटैक्स यकीनन भर रही है। इसके लिए बकायदा 1 करोड़ 80 लाख हज़ार का बजट जारी किया गया है। जबकि 57 लाख 60 हजार रुपए आवंटित भी किए जा चुके हैं।

बीजेपी सरकार के इस फैसले पर सियासत भी शुरू हो चुकी है। कांग्रेस (Congress) हमलावर होते हुए कह रही है कि ये बेहद शर्मनाक है कि सत्ता के नशे में चूर होकर शिवराज सरकार गौमाता और गरीबों का निवाला छीनकर मंत्रियों का इन्कमटैक्स भर रही है। पूर्व मंत्री जीतू पटवारी (Former Minister Jitu Parvati) ने कहा कितनी राक्षसी प्रवति, हैवानियत और निर्दयता हो सकती है किसी सरकार की, यह शिवराज सिंह चौहान ने दिखा दिया। पटवारी ने कहा एक तरफ उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने वहां के मंत्रियों और विधायकों की सैलरी काटी, सब ने उसका स्वागत किया किसी ने कोई आपत्ति नहीं उठाई। पटवारी ने कहा आज प्रदेश को आर्थिक दृष्टि से अगर सरकारी कर्मचारी पेंशन लेता है तो उसका भी टैक्स पेंशन से देता है। ऐसे में मंत्रियों का टैक्स सरकार भरेगी, शिवराज जी आप को शर्म आती है कि नहीं। जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री शिवराज कहा कि आखिर क्या हो गया है आप को, आप क्या थे और क्या हो गए है। इतना सज्जन आदमी जिसको मध्य प्रदेश की जनता ने संभावनाओं से देखा था, लोगों ने चुनाव जीता कर सर आंखों पर बिठाया था। पटवारी ने कहा आप ने सत्ता के लिए लोकतंत्र की पीठ में छुरा घोप दिया और अब इस तरह का कृत्य कर रहें है।लेकिन बीजेपी सरकार के पास मंत्रियों के इन्कमटैक्स भरने की वजह का जवाब ही नहीं है कि आखिर तर्क क्या दिया जाए। मंत्री सवाल करने पर बगलें झांकते नजर आ रहे हैं। या फिर तर्क दे रही हैं कि जानकारी ही नहीं है।


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Pooja Khodani

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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)