भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। केंद्र सरकार (Central Government) द्वारा पेश किए गए तीन अध्यादेश (Ordinance) को किसान विरोधी कानून (Anti Farmer Law) बताते हुए बीते दिनों हुंकार भरते हुए सैकड़ों किसानों के साथ सड़क पर उतरे किसान संघ नेता शिवकुमार शर्मा (Farmers Union Leader Shivkumar Sharma) के बाद भोपाल सहित मध्य प्रदेश के हजारों अनाज व्यापारियों ने अनिश्चितकालीन आंदोलन (Indefinite Agitation) और शंखनाद करते हुए गुरुवार को पुनः नीलामी का बहिष्कार शुरू कर दिया है। वहीं मंडी बोर्ड के 9 हज़ार से अधिक अधिकारी और कर्मचारियों (Officers And Employee) ने भी शिवराज सरकार (Shivraj Government) पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए शुक्रवार 25 सितंबर से एक बार फिर अनिश्चितकालीन हड़ताल करने की घोषणा की है।
गौरतलब है कि उपचुनाव (By-election) की तैयारी में जुटी शिवराज सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल पर उतरे अनाज व्यापारी टैक्स में कमी (Tax Reduction) चाह रहे हैं, जबकि अधिकारी कर्मचारी अपना भविष्य सुरक्षित रखना चाहते हैं। लेकिन बीते दिनों राज्य सरकार द्वारा आश्वासन देने के बाद भी अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से व्यापारी, अधिकारी और कर्मचारी बिफर गए हैं। वादाखिलाफी के विरोध में मंडियों में तालाबंदी कर दी।
मंडी शुल्क 50 पैसे कर दिया जाए
मध्य प्रदेश शक्ल अनाज, दलहन, तिलहन व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष गोपाल दास अग्रवाल, समीर अग्रवाल, महामंत्री प्रकाश कल्ला, राधेश्याम माहेश्वरी ने कहा कि प्रदेश सरकार केंद्र के आदेश के बाद भी प्राइवेट मंडियों को खोलने के लिए प्रयासरत है। जबकि प्रदेश की 259 मंडियां इस नए अध्यादेश से समाप्ति की कगार पर है। उनका मूल कारण मंडी के बाहर कोई बंधन व मंडी शुल्क नहीं है और मंडी में अनावश्यक कार्यवाही मंडी शुल्क व निराश्रित शुल्क मिलाकर एक रूपया 70 पैसे ही है।
इसलिए है हड़ताल
मॉडल मंडी रेट में बाहर के व्यापारियों को टैक्स से पूरी छूट दी है, लेकिन मंडी के व्यापारियों को टैक्स देना होगा। मंडी लाइसेंस की अनिवार्यता भी खत्म की गई। वहीं नए नियमों के कारण प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकेगी और किसानों का अनाज कम भाव में बिकेगा। व्यापार नहीं होने से मंडी समितियों को शुल्क भी प्राप्त नहीं हुआ इससे मंडियां बंद हो जाएंगी।
यह प्रमुख मांगे
व्यापारियों से 1.70 की बजाय 0.50 फीसदी मंडी शुल्क लिया जाए।
निराश्रित शुल्क व अनुज्ञा पत्र की आवश्यकता को भी समाप्त किया जाए।