MPPSC द्वारा 4 साल से सिर्फ कैलेण्डर जारी लेकिन नही हो रही नियुक्तियां-आवेदकों ने लगाया आरोप

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Madhya Pradesh MPPSC : मध्यप्रदेश में MPPSC के आवेदकों ने गंभीर आरोप लगाए है, छात्र आकाश पाठक का कहना है कि बताया गया कि MPPSC द्वारा 2019 से अभी तक लगभग 6 कैलेण्डर जारी किए जा चुके है लेकिन आज दिनांक तक सिविल सर्विस की एक भी फाइनल नियुक्तियों को पूरा नही किया गया है न ही अभी तक एक भी कैलेंडर पूरा फॉलो हुआ है और मुझे पूर्ण विश्वास है 2023 में विधानसभा चुनाव है इसलिए 17 जनवरी 2023 के कैलेंडर भी पूरा फॉलो होना मुश्किल है। हम सभी लगभग 4 लाख विद्यार्थियों को सही नियम पर फाइनल 4 साल से फाइनल नियुक्तियों का इंतजार है लेकिन हमें हर बार कैलेंडर दिया जाता है।

छात्रों का आरोप
छात्रों का आरोप है कि हम विद्यार्थियों को गलत नियम पर आयोजित परीक्षाओं पर उलझा कर रखा गया है लगता है सरकार की मंशा नही है कि वो नौकरी दे। आज जारी किए गए कैलेंडर में भी केवल परीक्षाओं की तिथि दी गई है न कि उनके इंटरव्यू और फाइनल परिणाम की तिथि दी गई है आज के कैलेंडर में 2020 की मुख्यपरीक्षा के परिणाम को गायब कर दिया गया जबकि अप्रेल 2022 में इसकी मुख्यपरीक्षा पूर्ण हो गई थी लेकिन समझ नही आ रहा है कि ऐसी कौनसी विधिक सलाह ली जा रही है कि 9 माह में भी पूर्ण नही हो पाई यह बड़ा ही चिंतनीय विषय है यदि अन्य राज्यों की बात करें तो UPPSC द्वारा 1 वर्ष में जारी कैलेंडर को पूर्ण किया जा रहा परंतु MPPSC द्वारा कोई भी साल पूर्ण नही हो पा रहा है।

किसान, मजदूरों के बच्चे 

किसान, मजदूरों और सामान्य परिवार के बच्चे अपने सपने पूरे करने के लिए छोटे जिलों से निकलकर MPPSC की तैयारी करने के लिए इंदौर, भौपाल, ग्वालियर जैसे महानगरों की ओर बढ़े थे , जिसमें कोई 1 साल का बजट तो कोई 2 साल का बजट बनाकर चला था और कई कर्ज लेकर पढ़ाई करने निकले थे, प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में लगभग 3 लाख विद्यार्थी mppsc की तैयारी कर रहे है जहां पर लाखों रुपये कोचिंग की फीस देकर वह पढ़ रहे है लेकिन नही हो रही पूर्ण परीक्षाएं। एक विद्यार्थी का औसतन खर्चा लगभग 10 हजार प्रतिमाह होता है , घर से मांगते मांगते अब तो विद्यार्थियों को पैसे मांगने में शर्म आने लगी लेकिन शर्म नही आई तो वो सरकार और संबंधित संस्थाओं को ।
संस्थाओं द्वारा परीक्षा करवाई भी जाती है तो वह कभी असंवेधनिक नियमों पर कभी अवैधानिक फार्मूलों पर ताकि परीक्षाएं हाईकोर्ट में उलझी रहे और सरकार की जो मंशा है कि नौकरी न देनी पड़े वो पूर्ण हो रही है। भारत देश मे विधि का शासन चलता है और यहां संविधान से ऊपर कुछ नही है तो क्यों संवेधानिक नियम पर परीक्षाओ के परिणाम जारी नही किये जाते है। यदि विद्यार्थी हाईकोर्ट में सही नियमों को लेकर जाता है तो उसके पीछे भी उसकी कई चिंताएं की कहीं निकट भविष्य में गलत नियमों का हवाला देकर उसे नौकरी से बाहर न कर दिया जाए कहीं भविष्य में इन गलत नियमों पर उसका जीवन बर्वाद न हो जाये और वह कहीं का नही रहे इसलिए विद्यार्थियों की एक ही मांग रहती है कि सरकार और संविधान द्वारा बनाये गए नियमों का सही से पालन करते हुए साफ सुथरी परीक्षाएं आयोजित की जाएं क्योंकि असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2017 हमारे सामने एक उदाहरण है जिसमें आरक्षण नियम के कारण आज भी हर महीने एक नई सूची जारी की जाती है इसलिए हम सिविल सेवा में ये सब नही चाहते है। लेकिन सवाल ये है कि संवेधानिक नियमों पर परीक्षा आयोजित करवाने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है विद्यार्थियों की या सम्बंधित अफसरों की।  यदि 4 वर्ष से कोई परीक्षा पूर्ण नही हो पाती तो क्या सम्बंधित अधिकारियों को स्तीफा दे देना चाहिए, हमारे देश में जिस सत्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व और कर्तव्यों के निर्वहन की बात की जाती क्या इंनको पूर्ण न करने पर संबधित लोगों के खिलाफ कार्यवाही नही होनी चाहिए। 2019 से अभी तक कोरोना महामारी की 4 लहरें टकराकर वापस चली गई, नरेंद्र मोदी जी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनकर तीसरी बार की तैयारी करने लगे, NRI सम्मेलन पूर्ण हो चुका, अमेरिका में ट्रम्प की जगह जो बाइडेन राष्ट्पति बन चुके, ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का 96 वर्ष की उम्र में निधन हो चुका और जिस ब्रिटेन के हम 200 साल गुलाम रहे वहां भारतीय मूल के व्यक्ति ऋषि सुनक प्रधानमंत्री भी बन चुके लेकिन अगर कुछ नही हुआ तो वो है MPPSC 2019 की पूर्णभर्ती। हम आज भी सकारात्मक आशा में बैठे है कि शायद MPPSC 2023 का कैलेंडर पार्ट-2 जल्द जारी कर आज जारी की गई परीक्षाओं की तिथियों के आगे की कार्यवाही कर पूर्ण नियुक्तियों का दावा करेगा और झारखंड लोकसेवा आयोग द्वारा 2005 की भर्ती को 2023 में पूरा किया गया उससे आगे निकलकर MPPSC 2019 को 2023 में नियुक्ति देकर विश्व इतिहास रचेगा।

 


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Harpreet Kaur

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