भोपाल में लिंगानुपात विषय पर हुआ राष्ट्रीय वेबिनार, देश के कई प्रोफेसर और मीडिया प्रतिनिधि हुए शामिल

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Bhopal News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आशा पारस फॉर पीस एंड हारमोनी फाउंडेशन एवं वेद फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजित किया गया। जिसका विषय लिंगानुपात असंतुलन : अधिकार, कानून और यथार्थ था। इस वेबिनार में देश के अलग-अलग स्थानों के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों के प्रोफेसरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मीडिया प्रतिनिधियों और छात्र छात्राओं ने प्रतिभाग किया। इस वेबिनार का आयोजन 29 अक्टूबर 2023 को किया गया था। इस का संचालन एवं संयोजन प्रबंधक लव चावड़ीकर द्वारा किया गया था। इस वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रख्यात साहित्यकार डॉ. वीणा सिन्हा मौजूद रही। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. अवन्तिका शुक्ला, डॉ. रत्ना मुले और डॉ. सुप्रिया पाठक मौजूद रही। वहीं अध्यक्षीय भाषण के लिए प्रो. आशा शुक्ला उपस्थित थी।

लिंगानुपात असंतुलन एक विश्वव्यापी समस्या- डॉ. वीणा सिन्हा

इस वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रख्यात साहित्यकार डॉ. वीणा सिन्हा ने संबोधित करते हुए कहा कि लिंगानुपात असंतुलन एक विश्वव्यापी समस्या है इसके ऊपर अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। इस दौरान उन्होंने Pre- Conception and Pre- Natal Diagnostic Techniques Act पर बात किया। उन्होंने समाज की जघन्य मानसिकता के बारे में बताते हुए कहा कि घर में जब बच्ची पैदा होती है तो उसे परिवार के लोगों द्वारा मुंह में तंबाकू रखे, चारपाई के नीचे दबाकर मार दिया जाता है। वहीं इस एक्ट के आने के बाद स्थिति में कुछ हद तक सुधार हुआ है। लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज की मानसिकता महिलाओं को स्वीकार करने में अब भी पीछे है। लिंगानात अंसुतलन को रोकने के लिए हम सबको को समाज का नजरिया बदलने की आवश्यकता है।

बेटी पराया धन नहीं- डॉ. अवन्तिका शुक्ला

इस वेबिनार में विशिष्ट वक्ता के रूप में स्त्री अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की डॉ. अवन्तिका शुक्ला उपस्थित रही। उन्होंने कहा कि समाज में लड़कियों को हमेशा से नकारा गया है। बचपन से ही लड़कियों को उसके घर में बताया गया है कि लड़किया पराया धन होती हैं। उन्होंने आगे कहा कि बेटी पराया धन नहीं होती हैं। इस बात को लड़कों, परिवार और समाज को समझाने की जरूरत है। इसके साथ ही उन्होंने लिंगानुपात के आंकड़ों को भी विस्तार से प्रस्तुत किया।

लड़कियों के साथ लड़को को भी संवेदनशील बनाने पर विशेष ध्यान की जरूरत- डॉ. रत्ना मुले

इस कार्यक्रम में भोपाल की चिकित्सक, महिला उद्यमी और मोटीवेशनल स्पीकर डॉ. रत्ना मुले ने महिलाओं के भागीदारी के आंकड़ों और लिंगानुपात के आंकड़ों को पेश करते हुए कहा कि महिलाओं के हर पहलू जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक, सामाजिक स्तर पर शोध करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि हमें लड़कियों के साथ-साथ लड़कों के व्यवहार और उनको संवेदनशील बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है।

आजादी के बाद भी महिलाओं की स्थिति में नहीं हुआ सुधार- डॉ. सुप्रिया पाठक

इस दौरान स्त्री अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की डॉ. सुप्रिया पाठक ने हुए शारदा एक्ट, विधवा पुनर्विवाह और  दलित स्त्रियों की चिंताजनक स्थिति पर जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि आजादी के इतने सालों के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। आज भी समाज में दहेज के लालच में कई महिलाओं को जिंदा जला दिया जाता है। बेटे की चाहत में बेटियों को मार दिया जाता है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

लिंगानुपात असंतुलन के कारण मानव तस्करी, बलात्कार जैसे अपराधों में बढ़ोतरी- प्रो. आशा शुक्ला

इस वेबिनार में अध्यक्षीय भाषण के लिए डॉ. बी. आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. आशा शुक्ला मौजूद रही। उन्होंने लिंगानुपात असंतुलन के परिणाम को बताते हुए कहा कि समाज में जितने बेटे हैं उतनी बेटियां नहीं हैं। इसके कारण ही फाल्स मैरिज की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है जिसमें महिला का पूरा परिवार शोषण करता है। साथ ही कहा कि लिंगानुपात असंतुलन के कारण मानव तस्करी, बलात्कार जैसे अपराधों में बढ़ोतरी भी हुई है। उन्होंने कहा कि लिंगानुपात असंतुलन किसी एक घर का मामला नहीं है। यह हम सभी का, देश का और विश्व का मामला है। हम सभी को मिलकर इसके संतुलन की ओर कार्य करना चाहिए।

आपको बता दें द एशियन थिंकर के मुख्य संपादक डॉ. रामशंकर द्वारा धन्यवाद सत्र प्रस्तुत किया गया था।


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Shashank Baranwal

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पत्रकारिता उन चुनिंदा पेशों में से है जो समाज को सार्थक रूप देने में सक्षम है। पत्रकार जितना ज्यादा अपने काम के प्रति ईमानदार होगा पत्रकारिता उतनी ही ज्यादा प्रखर और प्रभावकारी होगी। पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके जरिये हम मज़लूमों, शोषितों या वो लोग जो हाशिये पर है उनकी आवाज आसानी से उठा सकते हैं। पत्रकार समाज मे उतनी ही अहम भूमिका निभाता है जितना एक साहित्यकार, समाज विचारक। ये तीनों ही पुराने पूर्वाग्रह को तोड़ते हैं और अवचेतन समाज में चेतना जागृत करने का काम करते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने अपने इस शेर में बहुत सही तरीके से पत्रकारिता की भूमिका की बात कही है– खींचो न कमानों को न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो मैं भी एक कलम का सिपाही हूँ और पत्रकारिता से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे साहित्य में भी रुचि है । मैं एक समतामूलक समाज बनाने के लिये तत्पर हूँ।

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