भोपाल।
आदिवासियों के विस्थापना की आड़ में करोडों रुपए का घोटला सामने आया है। मामला सतपुड़ा टाइगर रिर्जव में आदिवासियों की विस्थापना से जुड़ा है। जानकारी के अनुसार आदिवासियों के लिए जो कृषि भूमि भूमि डेवलप की जानी थी, वो कागजों में ही डेवलप हो गई। जो टेंडर निकाले गए थे उस में निर्धारित दर से भी ज्यादा रेट से पेमेंट किया गया। लेकिन एक भी जेसीबी का नंबर बिल में नहीं दर्शाया गया। इसी तरह कई गुना कम या ज्यादा जनसंख्या और पेड़ दर्शाए गए। अब यह मामला EOW के पास पहुंच गाया है। EOW शिकायत के आधार पर जांच करेगा।
जानकारी के अनुसार 2005 से लेकर 2019 तक 46 ग्रामों का विस्थापन किया गया था। जिस के बाद नई बसाहट से पहले जमीन को कृषि के लायक बनाने के लिए जेसीबी से मिट्टी समतल करने सहित मेढ़बंदी और खुदाई आदि की गई। इसके टेंडर और पेमेंट में गड़बड़ की गई।
टेंडर और भुगतान में की गई गड़बड़ियां
ग्राम साकोट के 44 हितग्राहियों को कृषिभूमि डेवलप करके देने के लिए 571 रुपए प्रतिघंटा की दर से ठेका दिया गया, जबकि भुगतान 11 हजार 664 रुपए प्रतिघंटा की दर से कुल भुगतान 66 लाख 54 हजार 434 रुपए का किया गया। इसमें जेसीबी क्रमांक 1 से 10 तक से काम दर्शाया गया, लेकिन जेसीबी का रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं लिखा गया। इसी तरह बोरी, इटारसी में किए गए काम 6 जेसीबी मशीनों का भुगतान 56 लाख 35 हजार 174 रुपए किया गया। चौंकाने वाला तथ्य यही है कि बिल में दर्शाए गए छह में से पांच जेसीबी मशीनों के नंबर आरटीओ में दर्ज ही नहीं है। भुगतान के लिए जो चेक जारी किए वो ठेका फर्म के बजाय रेंजर, साकोट के नाम से जारी किए गए। इस का सीधा मतलब यह है कि कि रेंजर ने ठेकेदार को नगद भुगतान पहले कर दिया। हालांकि ऐसी नियम प्रक्रिया नहीं होने के बाद भी जांच नहीं की गई।
ग्राम काकड़ी के 20 हितग्राहियों का 2012-13 में विस्थापन का काम करवाया गया। इसके लिए ट्रेक्टरों का 525 रुपए प्रतिघंटा, 585 रुपए प्रतिघंटा के अलावा जेसीबी का 49 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब पेमेंट किया गया। इसमें आयकर को 525 रुपए प्रतिघंटे के हिसाब से ही कर अदा किया गया, जबकि वास्तविकता में भुगतान 585 रुपए प्रतिघंटे के हिसाब से किया गया।