भोपाल। विधानसभा जीत के बाद कांग्रेस का फोकस लोकसभा चुनावों पर है। कांग्रेस इस बार 29 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही है। कांग्रेस की नजर इस बार उन सीटों पर जहां सालों से पार्टी को जीत नही मिली या फिर वोटों का अंतर कम रहा हो।वक्त है बदलाव का नारा लेकर मैदान में आई कांग्रेस इस बार हर हाल में बीजेपी के किले ढ़ाहने की कोशिश में है। इसी के चलते टिकटों को लेकर जबरदस्त मंथन किया जा रहा है।अलग अलग स्तर पर सर्वे करवाए जा रहे है। वही टिकट वितरण का जिम्मा संभाल रहे मुख्यमंत्री कमलनाथ पर पार्टी को पूरा भरोसा है कि वे कामयाब होंगें। हाईकमान ने जीत की सारी जिम्मेदारी नाथ पर छोड़ दी है। पार्टी को विश्वास है कि जिस तरह से विधानसभा चुनाव में नाथ ने जीत दिलाई और वनवास पूरा करवाया उसी तरह लोकसभा में भी इसका असर देखने को मिलेगा।
दरअसल, वर्तमान में कांग्रेस के पास 29 में से तीन सीटे है, जिसमें छिंदवाड़ा से मुख्यमंत्री कमलनाथ, गुना-शिवपुरी से सिंधिया और रतलाम-झाबुआ से कांतिलाल भूरिया सांसद है। वही 26 सीटों पर बीजेपी का दबदबा है।बीजेपी जहां सीटों को बचाने की जद्दोजहद कर रही है वही कांग्रेस सेंध लगाने की तैयारी में जुटी है। इसी के चलते बीते दिनों कमलनाथ ने वरिष्ठ नेता दिग्विजय को प्रदेश की किसी कठिन सीट से चुनाव ल़ड़ने को कहा है।भले ही प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया हो लेकिन अंदरुनी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के विरोध के चलते हाईकमान को सिर्फ और सिर्फ कमलनाथ पर भरोसा है।कहा जा रहा है कि पार्टी कमलनाथ का चेहरा आगे कर प्रत्याशियों को पार्टी मैदान में उतारेगी। कांग्रेस को लगता है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे और पिछले दो महीनों में कमलनाथ सरकार के निर्णयों का लाभ लोकसभा चुनावों में मिलेगा।
पार्टी का मानना है कि जिस तरह से विधानसभा में गुटबाजी और आपसी मतभेद-कलह को कमलनाथ खत्म करने मे कामयाब रहे वैसे ही लोकसभा चुनाव मे भी देखने को मिलेगा। जनता कमलनाथ सरकार के पिछले दो माह में लिए गए निर्णयों की तुलना शिवराज की घोषणाओं से करने लगी है। युवाओं, किसानों और महिलाओं के लिए गए निर्णय से इस बार नतीजों पर फर्क पड़ेगा। प्रदेश की चार हाईप्रोफाइल सीट भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में जीत का मिथक तोड़ने के लिए पार्टी हाईकमान ने कमलनाथ पर भरोसा जताया है। साल 1989 से भोपाल और इंदौर लोकसभा पर बीजेपी का कब्जा है। जबलपुर लोकसभा पर कांग्रेस को 1996 से और ग्वालियर में 2009 से जीत नसीब नहीं हुई है।10 से लेकर 30 सालों से महानगरों पर बीजेपी का कब्जा बरकरार है। बीजेपी के गढ़ बन चुके भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर संसदीय क्षेत्रों को इस बार किसी भी तरह से कांग्रेस भेदना चाह रही है।
हालांकि वर्तमान में कांग्रेस के पास ऐसा कोई जिताऊ उम्मीदवारों नही है जो सेंध लगाने में कामयाब हो सके। यही वजह है कि इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और भोपाल लोकसभा सीट पर दिग्गज नेताओं को उतारने का कांग्रेस ने मन बनाया है। भोपाल-इंदौर से दिग्विजय सिंह, इंदौर-ग्वालियर से सिंधिया, और गुना-शिवपुरी से प्रियदर्शनी के नाम की चर्चा है, तो दूसरी सीटों पर भी बड़े कद के नेता की तलाश तेज हो गई है।हालांकि भोपाल-इंदौर में लोकसभा को भेदना इतना आसान नही है।जहां इंदौर सीट पर बीजेपी का सालों से दबदबा है वही लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को बीजेपी फिर से मैदान में उतारने जा रही है। यहां कांग्रेस के पास ऐसा कोई नाम नहीं है, जो ताई को टक्कर दे सके। इंदौर की ही तरह भोपाल संसदीय सीट को भी बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने की चर्चा है। जबलपुर और ग्वालियर संसदीय सीट पर भी कांग्रेस के पास जिताऊ प्रत्याशी का टोटा है।