भोपाल
ऐसे समय में जब पड़ोसी का पड़ोसी से मिलना बंद है, लोग अपने घर तक नहीं लौट पा रहे, जेल में बंद कैदियों से मिलने पर भी रोक लगा दी गई है। अब मुलाकाती जेल जाकर अपने रिश्तेदार या परिचितों से नहीं मिल पा रहे हैं। जाहिर है ये जेल में बंद कैदियों के साथ उनके अपनों के लिये भी बड़ी मुश्किल वाली स्थिति है। लेकिन ऐसे में मध्यप्रदेश जेल प्रशासन ने नया तरीका निकाल लिया है जिससे कैदी और उनका परिवार एक दूसरे से जुड़ा रह सकता है। ये तरीका है टेलीफोन। जी हां, प्रदेश की अधिकांश जेलों में अब कैदियों को टेलीफोन सुविधा मुहैया कराई गई है, जिससे वो अपने घरवालों से बात कर सकें। मध्य प्रदेश जेल के महानिदेशक संजय चौधरी का कहना है कि कोरोना काल में कैदियों को ये सुविधा निशुल्क उपलब्ध कराई गई है। बता दें कि कोरोना क्राइसिसि के दौरान प्रदेश में ही सबसे पहले पैरोल पर रिहाई भी की गई है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
इतना ही नहीं, प्रदेश की 8 जेलों में टेलीफोन के इस्तेमाल और इसे लेकर कैदियों तथा उनके परिजनों की मन:स्थिति पर एक रिसर्च भी की गई है। ये रिसर्च मशहूर पत्रकार वर्तिका नन्दा ने जेल प्रशासन के सहयोग से की है जो पहले भी तिहाड़ जेल और मध्यप्रदेश की जेलों पर किताब “तिनका तिनका तिहाड़” और “तिनका तिनका मध्यप्रदेश” लिख चुकी हैं। अब उन्होने केंद्रीय जेल जबलपुर, केंद्रीय जेल इंदौर, केंद्रीय जेल सागर, केंद्रीय जेल उज्जैन, केंद्रीय जेल भोपाल, केंद्रीय जेल ग्वालियर, केंद्रीय जेल होशंगाबाद और जिला जेल इंदौर पर भी एक शोध किया है। वर्तिका नन्दा तिनका तिनका फाउंडेशन की संस्थापक हैं और देशभर की अलग अलग जेलों पर काम करती रहती हूं। मध्यप्रदेश में कैदियों को उपलब्ध कराई गई टेलीफोन सुविधा भी उनकी रिसर्च का एक हिस्सा है जिसके नतीजे काफी रोचक रहे हैं।
पाया गया है कि कोरोना काल से पहले केंद्रीय जेल भोपाल में पुरुष कैदी औसतन 390 और महिलाएं 28 फोन करती थीं लेकिन इस समय इसका औसर 600 और 48 पर पहुंच गया है। ग्वालियर और जबलपुर जेल में कोरोना के समय सबसे अधिक फोन का इस्तेमाल हो रहा है। यहां 350 से बढ़कर 640 और 212 से बढ़कर 451 कॉल की बढ़ोत्तरी हुई है। महिलाएं पहले 25 व 20 फोन करती थी जो अब बढ़कर 40 और 28 कॉल हो गए हैं। बता दें कि इस समय प्रदेश की अलग अलग जेलों में 73 लैंडलाइन फोन और 34 मोबाइल फोन उपलब्ध कराए गए हैं। जबलपुर जेल में 231 कैदियों पर एक फोन है जबकि उज्जैन में 111 कैदियों के लिये एक फोन है। फोन की उपलब्धता के साथ कैदियों के लिये बात करने की समय सीमा भी बढ़ाई गई है, पहले जहां 3 घंटे ही फोन करने की अनुमति होती थी वहां अब इसे 6 घंटे कर दिया गया है। रिसर्च में सामने आया है कि फोन पर बात कर कैदी काफी खुश और सुकून महसूस कर रहे हैं। हालांकि सामने मुलाकात होने पर वो अपने परिजनों को देख भी पाते थे, लेकिन इस समय टेलीफोन पर बात करना ही उनके लिये काफी सुकूनदेह साबित हो रहा है। ये कैदी टेलीफोन पर ही अपने सुख दुख अपे घरवालों से बांट रहे हैं और उनका हालचाल भी ले रहे हैं। इस तरह कोरोना क्राइसिस में कैदियों के लिये टेलीफोन की सुविधा एक बड़ा वरदान साबित हो रही है।