भोपाल| विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है| उससे पहले शनिवार को विधानसभा के कैलाश मानसरोवर सभाकक्ष में नव-निर्वाचित विधायकों के लिए दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ| विधायकों को सदन की कार्यप्रणाली और नियमों पूरी जानकारी मिल सके, इसके लिए संविधान विशेषज्ञ, पूर्व मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ विधायकों को भी आमंत्रण दिया गया है| विधायकों की पाठशाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा भविष्य का मध्यप्रदेश बनाने और जनता की अपेक्षाएँ पूरा करना हमारा लक्ष्य होना चाहिये। प्रजातंत्र के मंदिर में हमें इसी कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए। कमलनाथ ने कहा, कब हमें बोलना, कब हमें चुप रहना है। इस बारीकी को समझना होगा। हमें सिर्फ बोलना है यह नहीं सार्थक रूप से अपनी बात कहना है। इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। शोर-शराबा और विषयांतर होकर अपनी बात करने से हम न केवल अपने अधिकारों, कर्तव्यों बल्कि क्षेत्र की जनता के साथ ही अन्याय करते हैं। जिससे हमें विश्वास के साथ चुनकर भेजा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 40 साल पहले जब वे पहली बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे, तब पहली बार संसदीय ज्ञान की पहली सीढ़ी ऐसे ही प्रबोधन कार्यक्रम के जरिए चढ़ी थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे संविधान ने विधायिका के कर्त्तव्यों और अधिकारों को बेहतर ढंग से परिभाषित किया है। हमें संविधान की आत्मा को आत्मसात कर अपने देश, प्रदेश और क्षेत्र की जनता की अपेक्षाओं को पूरा करना है। श्री नाथ ने कहा कि समय के साथ राजनीति बदली है। कई परिवर्तन हमारे समाज में हुए हैं। पुरानी दुनिया से अलग नई पीढ़ी की दुनिया हमारे सामने हैं। इसके परिवर्तनों को हमें देखना-समझना है। नई पीढ़ी हमारा सम्मान करें। विधायिका और कार्यपालिका के साथ नयी पीढ़ी को कैसे जोड़े और उनकी अपेक्षाओं को कैसे पूरा करें, यह हमारे सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि हम पाँच साल के लिए चुने गए हैं। हम जब अपना कार्यकाल पूरा कर फिर से जनता के बीच समर्थन मांगने जाएं तो वह हमारा स्वागत करें और हमें आत्मसंतुष्टि हो, यही हमारी सफलता होगी। श्री नाथ ने कहा ���ि एकजुट कोशिश से ही हम प्रदेश के विकास का एक नया नक्शा बना पाएंगे।मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप हमें मध्यप्रदेश को बनाना है जिससे हम आने वाले कल का प्रदेश बनाने में पीछे न रह जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक जिम्मेदार प्रतिनिधि को संसदीय परंपराओं, नियम प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन करना चाहिए। इससे वह विधायी सदनों में जनता और प्रदेश हित में बेहतर भूमिका निभा सकेगा। कब हमें बोलना, कब हमें चुप रहना है, सार्थक रूप से अपनी बात कहना है, इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। शोर-शराबा और विषयांतर कर अपनी बात करने से हम न केवल अपने अधिकारों, कर्त्तव्यों बल्कि क्षेत्र की जनता के साथ ही अन्याय करते हैं।