भोपाल।
उत्तराखण्ड सरकार के प्रमोशन में आरक्षण को लेकर अब मध्य प्रदेश सरकार प्रमोशन के आरक्षण से कर्मचारियों की नारजागी दूर करने के लिए दूसरे विकल्प पर विचार कर रही है। मध्य प्रदेश में करीब पौने चार साल से कर्मचारियों की पदोन्नति पर प्रतिबंध लगा होने से वे परेशान हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है तो राज्य सरकार पदोन्नति के विकल्प तलाश रही है।
दरअसल प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सरकार अब कोर्ट के फैसले में इंकार के बाद दूसरे विकल्प पर विचार कर रही है। इनमें से एक विकल्प कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर वरिष्ठ पदों की जिम्मेदारी देना भी हो सकता है। प्रदेश सरकार की मंशा है जैसे आईएएस, आईपीएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को क्रमोन्नति देकर बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, वैसे ही अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को भी अंतरिम व्यवस्था होने तक बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंप दी जाए। अप्रैल, 2016 में मप्र हाईकोर्ट ने प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाने आदेश दिया था। इसके विरोध में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। सुप्रीम कोर्ट में मामले की डबल बेंच सुनवाई कर रही थी। इसमें एम. नागराज बनाम भारत संघ प्रकरण को आधार बनाकर सुनवाई की जा रही थी।
इस बीच एम नागराज प्रकरण को चुनौती दी गई। जिससे डबल बेंच ने इस मामले को पांच सदस्यीय खंडपीठ में भेज दिया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने पिछले साल 26 सितंबर के निर्णय में कहा कि पदोन्नति में आरक्षण दिया जाना संवैधानिक बाध्यता नहीं है। राज्य चाहे तो आरक्षण दे सकता है। कोर्ट के इसी फैसले को आधार मानकर सरकार जल्द ही इसको लेकर निर्णय ले सकती है।