भोपाल। लोकसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस काफी सजग तरीके से अपने प्रत्याशियों का चयन कर रही है। जिस तरह से काफी समय से देश में राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री पर हमला कर रहे हैं उसको देखते हुए लोकसभा चुनाव राहुल गांधी के लिए कड़ी परीक्षा है। यही कारण है कि इस बार मध्यप्रदेश में कई ऐसी सीटे हैं जहां सालों से कांग्रेस नहीं जीत पाई है, वहां से इस बार बड़े नेताओं (चेहरों) को मैदान में उतारने की रणनीति पर काम किया जा रहा है। इसी कड़ी के तहत प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल से मैदान में उतारा गया है और पहली सूची में गुना-शिवपुरी को जिस तरह से होल्ड पर रखा गया है, उससे संकेत मिल रहे हैं कि कहीं रास्ता इंदौर का नहीं बन रहा।
गुना-शिवपुरी, छिंदवाड़ा एवं झाबुआ सीट ऐसी हैं जहां से वर्तमान में कांग्रेस के सांसद हैं और उनके नाम का ऐलान पहली सूची में होना चाहिए था, लेकिन इस सूची में गुना को होल्ड पर रखा गया है। गुना होल्ड पर रखे जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा होने लगी है कि कहीं कांग्रेस इंदौर में सिंधिया को तो आजमाने नहीं जा रही। कांग्रेस की राजनीति भी गुटीय संतुलन के साथ चलती है और जब प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि कांग्रेस कठिन सीटों से बड़े नेताओं को उतारेगी और दिग्विजय सिंह का नाम भी लिया था। इसके बाद जब सिंधिया भोपाल पहुंचे थे तो उन्होंने भी कमलनाथ की बात का समर्थन करते हुए कहा था कि बड़े नेताओं को कठिन सीटों से चुनाव लडऩा चाहिए। कांग्रेस की पहली सूची जारी हुई जिसमें दिग्विजय सिंह का नाम भोपाल से आने के बाद यह संकेत मिल गए कि कांग्रेस अपने बड़े नेताओं को कठिन सीटें जीतने के लिए दांव पर लगा सकती है। दिग्विजय सिंह के भोपाल से मैदान में आने के बाद कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी इंदौर से सिंधिया को चुनाव लड़ाने की वकालत शुरू कर दी है। प्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने तो साफ कहा है कि सिंधिया प्रदेश के सबसे बड़े नेता हैं और उनका हर जगह प्रभाव है ऐसे में उनको इंदौर सीट से मैदान में उतारा जाए तो कांग्रेस का सूखा समाप्त हो सकता है। अब अजय सिंह की बात के बाद फिलहाल किसी की प्रतिक्रिया तो नहीं आई है, लेकिन अंदरखाने यह हलचल मचने लगी है कि किसी तरह से इस पेशकश से बचा जाए, क्योंकि इंदौर कांग्रेस के लिए खासी कठिन सीट मानी जाती है।
राहुल के निर्णय से सभी को संशय
नेता किसी भी पार्टी को और कितना भी बड़ा क्यों न हो, लेकिन जब चुनाव लडऩे की बात आती है तो ऐसे नेता अपनी परंपरागत सीट से ही चुनाव लडऩा चाहते हैं। ऐसे में अगर बड़े नेताओं को दूसरे क्षेत्र में भेजने की कांग्रेस के अंदर चर्चा हो रही है तो कई नेताओं की धडक़ने बढऩा स्वाभाविक है। दिग्विजय सिंह ने चुनौती स्वीकार कर अन्य नेताओं के सामने परेशानी बढ़ा दी है, साथ ही अब हाई कमान के पास भी इस बात का दवाब रहेगा कि जब दिग्विजय सिंह पर दांव खेला जा सकता है तो अन्य पर क्यों नहीं। यही कारण है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस बार टिकट को लेकर निर्णय स्वयं ले रहे हैं। अब सवाल यह है कि राहुल गांधी जो चुनौती देगे उसे कौन नेता किस तरह से स्वीकार करता है।