भोपाल।
गुना से कांग्रेस सांसद और यूपी के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखा है। पत्र में सिंधिया ने हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी चिंता व्यक्त की है और आदिवासियों व वन निवासियों के अधिकारों के हनन को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करने का अनुरोध किया ।साथ ही सिंधिया ने आदिवासियों को बेदखल करने से जुड़े कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का भी कमलनाथ सरकार को मशवरा दिया है।
सिंधिया ने पत्र में लिखा है कि 20 फरवरी के उच्च न्यायालय के निर्णय से मप्र के 3.5 लाख आदिवासी परिवारों के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है।इसका कारण भाजपा सरकार में आदिवासियों और वनवासियों द्वारा जमा किए गए दावों को किसी ना किसी मान्यता ना देना है।सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों के अनुसार दो लाख से ज्यादा अनुसूचित जनजातियों और डेढ़ लाख से ज्यादा वन निवासियों के दावों को ठुकराया गया है जो कि अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है।
सिंधिया ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से मांग की है कि बड़ी मात्रा में आदिवासियों और वन निवासियों के घरों को उजड़ने से बचाया जाए।इस मामले में सरकार पुर्नयाचिका भी दाखिल कर सकती है।मुझे उम्मीद है कि प्रदेश सरकार लाखों आदिवासियों के हित में कदम उठाने का हर संभव प्रयास करेगी।चुंकी कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए राज्य सरकारों के पास इस साल 27 जुलाई तक का ही समय है।
गौरतलब है कि 20 फरवरी को उच्चतम न्यायालय ने लिखित आदेश जारी कर 16 राज्यों को कहा है कि वे 10 लाख से अधिक जनजातीय और वन निवासियों को 27 जुलाई से पहले जंगल से बाहर निकालें। इस आदेश के मुताबिक, जिन परिवारों के वनभूमि स्वामित्व के दावों को खारिज कर दिया गया था, उन्हें राज्यों द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई से पहले तक बेदखल कर देना है। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला वन अधिनियम 2006 के विरुद्ध डाली गयी याचिका के पक्ष में आया है। न्यायालय ने जिन राज्यों को यह आदेश दिया है, उनमें आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल शामिल हैं। इस आदेश का असर लगभग 21 राज्यों के 23 लाख आदिवासियों और वनवासियों पर पड़ेगा और उन्हें जमीन छोड़नी पड़ेगी।