भोपाल। आसमानी बलाएं और बदलाव बेशक दुनिया और दुनिया के हर बाशिंदे को प्रभावित करती हैं और इसके हालात पर असर डालती हैं। आसमान से आने वाली बलाओं और मुसीबतों के वक्त पर अल्लाह से तौबा की जाना चाहिए, अपने गुनाहों की माफी तलब करने के साथ सारी दुनिया के लिए खैर की दुआएं की जाना चाहिए। गुरूवार को शहर, सूबे और देश के आसमान पर ग्रहण के दौरान भी इबादतों का मामूल किया जाए और अल्लाह से खैर की दुआएं की जाएं।
काजी-ए-शहर मुश्ताक अली नदवी ने इस तरह की सूचना शहरभर को सोशल मीडिया के जरिये पहुंचाई थी। तय कार्यक्रम के मुताबिक काजी मुश्ताक साहब ने राजधानी की मोती मस्जिद में नमाज-ए-कुसुफ अदा करवाई। बड़ी तादाद में पहुंचे लोगों ने इस खास नमाज में शिरकत की। दो रकअत नमाज के बाद दुआ-ए-खास की गई, जिसमें शहर, सूबे, देश और दुनिया पर आने वाली सभी आसमानी बलाओं से हिफाजत चाही गई। इस दौरान देश-दुनिया में अमन, सुकून, शांति और भाईचारे के हालात बने रहने की दुआ भी की गई।
मस्जिदों में हुई खास नमाज
काजी-ए-शहर के ऐलान के बाद शहर की लगभग सभी मस्जिदों में भी सूर्यग्रहण को लेकर होने वाली इस खास नमाज का अहतमाम किया गया। इसके लिए मस्जिदों से सुबह फजिर की नमाजों से ऐलान कर दिया गया था। बाद में इसकी जानकारी लाडड स्पीकर से भी दी गई। नमाज-ए-खास अदा करने से पहले ईमामों ने इस नमाज की फजीलत और इसको पढऩे का मकसद भी लोगों को समझाया। उन्होंने बताया कि यह खास नमाज इज्तिमाई तौर पर ही अदा की जाती है। घरों में महिलाओं को इस नमाज की अदायगी के लिए भी कहा गया था।
क्यों अदा की गई नमाज-ए-कुसुफ
आसमान में होने वाली हलचल और बदलाव का असर जमीन पर पढऩे की संभावनाएं भी बनी रहती हैं। सूर्य ग्रहण के दौरान जब सूरज, जमीन और चांद एक कतार में आते हैं तो इन तीनों के बीच रस्साकशी का दौर चलता रहता है। जमीन और सूर्य के बीच आए चांद को दोनों तरफ से खिंचाव के हालात बनते हैं। इस बीच यह उम्मीद भी की जा सकती है कि सूर्य अपनी शक्ति से चांद को अपनी तरफ खींच ले या यह भी हो सकता है कि जमीन की कशिश ज्यादा हो और चांद जमीन की तरफ चल पड़े। चंद्र ग्रह के जमीन पर आने वाली स्थिति में जमीन की तबाही की उम्मीदें की जाना चाहिए और इसे कयामत के रूप में देखा जाना चाहिए। इसी बला और परेशानी से महफूज रखने के लिए नमाज-ए-खास के जरिये अल्लाह तआला से दुआ की जाती है कि किसी भी परेशानी से सबकी हिफाजत करें।
किसी ने कहा कि यह हिन्दू धर्म की नकल
नई पीढ़ी के लिए नमाज-ए-कुसुफ एक नया उदाहरण कहा जा सकता है। ऐसे में इस खास नमाज को लेकर तरह-तरह की बातें भी चर्चाओं में रहीं। कहा जा रहा था कि जिस तरह से सूर्य ग्रहण के दौरान हिन्दू धर्मावलंबी मंदिरों के पट बंद कर देते हैं, ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान और पूजा-अर्चना की जाती है, उसी तरह इस्लाम के मानने वालों ने भी नमाज का नया मामूल किया है। हालांकि यह हदीस और शरीयत से ताल्लुक रखने वाली बात है, जिसे जानकारों न अपने तर्कों से समझाते हुए इस नमाज-ए-खास की अहमियत लोगों को समझाई और यह भी स्पष्ट किया कि यह किसी धर्म या मजबह की किसी भी परंपरा की नकल न होकर अल्लाह और उसके पैगंबर की बताई बातों में शामिल है। यह बात अलग है कि एक पीढ़ी इस बात से नावाकिफ रही है और उसके लिए यह कोई नई परंपरा का हिस्सा दिखाई दे रहा है।