भोपाल । दो साल पहले विधिवत प्रक्रिया से चुने गए सहायक प्राध्यापकों के सामने अब भी नियुक्ति का संकट बना हुआ है। नेताओं के सामने गुजारिश करने से लेकर मंत्रियों-विधायकों की सिफारिश भी इन लोगों की समस्या का समाधान नहीं कर पा रही है। मामले को लेकर अदालत के दिए हुए आदेश को भी विभाग ने कोने में पटक दिया है। एमपी पीएससी परीक्षा के मार्फत प्रदेशभर से चुने गए ढ़ाई हजार से ज्यादा इन सहायक प्राध्यापकों में अधिकांश उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। प्रत्याशा में गुजरते समय ने इन लोगों के भविष्य के सामने प्रश्रचिन्ह लगा दिया है। जिससे उबरने के लिए इन्होंने आंदोलन का सहारा लिया है।
पीएससी चयनित सहायक प्राध्यपक संघ मप्र गुरूवार को अपने हक की लड़ाई लडऩे के लिए राजधानी के शाहजहांनी पार्क में मौजूद है। प्रदेशभर से आए इन युवाओं और युवतियों ने इससे पहले भी नियुक्ति आंदोलन चलाया था, लेकिन आश्वासन का एक टुकड़ा हाथ आया और हालात फिर लटके रहने जैसे बना दिए गए हैं। शांति मार्च से लेकर मुख्यमंत्री, विभागीय मंत्री, विधायकों और हर उस चौखट पर यह लोग दस्तक लगा चुके हैं, जहां से इन्हेंं थोड़ी भी राहत की उम्मीद दिखाई दी। राजधानी में किए जा रहे आंदेालन की बागडोर संघ अध्यक्ष डॉ. प्रकाश खातरकर, हरिशंकर कंसाना, प्रवक्ता चौहान आदि ने संभाल रखी है।
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अदालत का आदेश भी बेअसर
जानकारी के मुताबिक एमपीपीएससी द्वारा चयनित 2536 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ने 17 जून को आदेश पारित किया है। जिसमें इन प्राध्यापकों के परीक्षा परिणाम की संशोधित सूची 15 दिन में जारी करने के लिए कहा गया था, लेकिन इस आदेश को डेढ़ माह गुजर जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।
प्रदेश के मूल निवासी हैं शामिल
प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा तय किए गए फार्मूले के मुताबिक इस परीक्षा में चयनित कुल परीक्षार्थियों में से करीब 90 फीसदी लोग मप्र के मूल निवासी हैं। इसमें करीब 1850 लोग आरक्षित वर्ग के भी बताए जा रहे हैं। बताया जाता है कि इस परीक्षा में शामिल हुए अधिकांश परीक्षार्थी नेट, सेट, पीएचडी जैसी उच्च डिग्रियां रखते हैं। परीक्षा देने के साथ इन लोगों से मांगी गई एनओसी की वजह से इन्होंने तत्कालीन रोजगार भी छोड़ दिया है। जिसके चलते पिछले दो साल से इनके साथ बेरोगजारी के हालात पसर गए हैं। साथ ही भविष्य में किसी अन्य नौकरी के लिए लगने वाले समय की समस्या भी इनके सामने खड़ी हो गई है
मजबूरी ले आई खुले मैदान में
रिमझिम फुहारों के बीच गुरूवार को शुरू हुए आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रदेश के दूर-दराज इलाकों से युवक-युवती मौजूद हैं। खुले मैदान में चलाए जा रहे आंदोलन में कुछ ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं, जिनके साथ छोटे बच्चे हैं। समय पर आंदोलन स्थल पर पहुंचने के लिए अधिकांश लोग अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा किए बिना यहां पहुंचे हैं, जिसके चलते उन्हें कई परेशानियां उठाना पड़ रही हैं। इसी तरह महिलाओं को अपने बच्चों को कपड़े बदलाने से लेकर उनके खानेपीने तक के लिए परेशान होना पड़ रहा है।