भोपाल| केंद्र की मोदी सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल के अंतिम समय में एक ऐसा फैसला किया है, जिसका बड़ा असर आगामी लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा| सामान्य वर्ग के पिछड़ों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को अमल में लाने के लिए कानून में संसोधन किया जा रहा है| आखिरी दौर में सरकार की इस उठापठक को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं| इस निर्णय के बाद राजनीतिक गलियारों में इसके आम चुनाव पर पड़ने वाले असर पर चर्चा शुरू हो गई है। क्या इस मास्टर स्ट्रोक से मोदी लहर एक बार फिर रफ़्तार पकड़ेगी, साथ ही कयास लगने लगे हैं कि क्या पीएम मोदी का ये मास्टरस्ट्रोक 2019 में भाजपा को दोबारा सत्ता दिला पाएगा। इन्ही तमाम पहलुओं पर राजनीति के जानकार और राष्ट्रीय मुद्दों पर पेनी नजर रखने वाले मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और प्रदेश टुडे ग्रुप के समूह संपादक हृदयेश दीक्षित ने अपने विचार रखे|
सवर्ण आरक्षण को लेकर श्री दीक्षित का कहना है कि हाल ही में जिस तरह से तीन राज्यों के चुनाव परिणाम भाजपा के खिलाफ आये हैं, एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दे ने जिस तरह से मुश्किलें बढ़ाई है, नोटा का बटन को लेकर अभियान चले, इससे कहीं न कहीं सरकार में भय है| जिसके चलते सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला किया| उन्होंने कहा पीएम नरेंद्र मोदी ने हमेशा उस लाइन को पकड़ने की कोशिश की जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कहता रहा है, पहली आर्थिक आधार पर आरक्षण और दूसरी राम मंदिर पर अध्यादेश लाना चाहिए| संघ को खुश करने के लिए भी कहीं न कहीं यह फैसला माना जा सकता है| इससे देश की राजनीति पर बहुत अनुकूल प्रभाव पढ़ने वाला नहीं है|
मोदी सरकार के आर्थिक आरक्षण के फैसले से सभी वर्ग को साधने के सवाल पर श्री दीक्षित ने कहा यह कहना बहुत कठिन है, क्यूंकि जिस तरह तीन तलाक पर राजनीति हुई और फिर कानून लाकर प्रक्रिया शुरू की गई, उसी तरह जब आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करते हैं, और जिस तरह संसद में बहस हो रही है| उससे साफ़ समझ आता है कि इस विषय पर भी राजनीति हो रही है| वहीं सरकार को संविधान के अंदर इस दस प्रतिशत आरक्षण को डिफाइन करना पड़ेगा| क्यूंकि सवर्णों को दिए जाने वाले इस आरक्षण में मुस्लिम, जाट, ईसाई समेत पिछड़ी जाति को भी शामिल कर लिया गया है| इसको सवर्ण आरक्षण नहीं माना जा सकता है| इसको लेकर सरकार को स्पष्टीकरण लाना होगा कि दस प्रतिशत आरक्षण के सही मायने क्या है, आगे क्या रोजगार होंगे, चार साल आठ माह बाद यह विषय क्यों ध्यान में आया, इससे साफ़ समझ आता है इसमें राजनीति है और ऐसी राजनीति से देश को नुकसान है|
लोकसभा चुनाव से पहले क्या इस मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जाए, इस पर श्री दीक्षित ने कहा कि जिस तरह से राज्यों में महागठबंधन की राजनीति हो रही है| जातीय समीकरण की जो राजनीति हो रही है, उसको तोड़ने के लिए यह एक मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है|