Dabra News : मध्य प्रदेश सरकार ने स्कूली बच्चों की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए बहुत प्रयोग किये हैं। मध्यान्ह भोजन, मुफ्त किताबें, वजीफा, मुफ्त यूनिफ़ॉर्म सहित अन्य कई सुविधाएँ बच्चों को दी जाती हैं, स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति पर सरकार नजर रखती है लेकिन कई जगह लापरवाह शासकीय कर्मचारी सरकार की साख पर ही बट्टा नहीं लगा रहे बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहें हैं।
बड़ी अकबई का बदहाल प्राइमरी स्कूल
ताजा मामला ग्वालियर जिले के डबरा विकासखंड का है। एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ की टीम को कई दिनों से शिकायत मिल रही थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में टीचर्स मनमानी करते हैं, अपनी सुविधा के अनुसार स्कूल आते हैं, बच्चों की पढ़ाई से उन्हें कुछ खास लगाव नहीं है। शिकायत के बाद जब हमारी टीम ग्राम बड़ी अकबई के प्राइमरी स्कूल पहुंची तो उसे वहां जो बच्चों ने बताया सुनकर हैरान रह गई।
शिक्षकों ने बनाई अपनी व्यवस्था, एक दिन में केवल दो टीचर पढ़ाएंगे
ग्राम बड़ी अकबई के सरकारी प्राइमरी स्कूल का भवन जर्जर मिला, स्कूल की लाईट कटी हुई मिली, बच्चे मिले लेकिन इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक नदारद मिले। पूछताछ करने पर पता चला कि यहाँ चार शिक्षक पदस्थ हैं लेकिन आते दो ही है, इन लोगों ने आपसी सामंजस्य से व्यवस्था बना ली है, एक दिन में दो टीचर आएंगे और सभी बच्चों को पढ़ाएंगे, अगले दिन दूसरे दो शिक्षक आयेंगे, लेकिन सभी शिक्षक हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत पूरे दिन के करेंगे जिससे उन्हें वेतन पूरे महीने का मिले।
स्कूल में सब कुछ मौखिक चलता है, शिक्षकों की अनुपस्थिति का कोई रिकॉर्ड नहीं
हमारी टीम को मासूम बच्चों ने टीचर्स की इस व्यवस्था की जानकारी दे दी, जब हमने स्कूल में मौजूद दोनों शिक्षकों (जिनमें से एक हेड मास्टर थे) से स्कूल की बिजली, जर्जर भवन, टीचर्स की गैर मौजूदगी पर सवाल किये तो वो दायें बाएं जवाब देने लगे। उनकी बातों से पता चला कि यहाँ सब कुछ मौखिक चलता है यानि टीचर्स नहीं आते तो हेड मास्टर को मौखिक बता देते हैं, स्कूल की परेशानियाँ भी हेड मास्टर बीआरसी को मौखिक बता देते हैं।
डबरा बीआरसी भी अंजान, किसी को बच्चों की चिंता नहीं
दरअसल डबरा के बड़ी अकबई के प्राइमरी स्कूल का स्टाफ मनमर्जी से नौकरी करता हैं। जब हमारी टीम ने डबरा में पदस्थ बीआरसी से स्कूल की बदहाली और शिक्षकों के मनमाने ढंग से स्कूल पहुँचने पर फोन पर सवाल किया तो वे भी कोई जवाब नहीं दे पाए। मतलब साफ है किसी को बच्चों की शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है , अपनी जिम्मेदारी से मतलब नहीं है, मतलब है तो सिर्फ महीने के वेतन से, जो उन्हें मिल जाता है।
सरकार अपनी पीठ थपथपाती है, जमीनी हकीकत कुछ और है
कुल मिलाकर शिवराज सरकार कितने भी प्रयास कर ले लेकिन भोपाल से जो व्यवस्थाएं बनती है, जो जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं उन्हें निभाने वाले वरिष्ठ अधिकारी जब आंख बंद कर लेते है तब गाँव आते आते उनका ये हाल होता है बावजूद इसके जमीनी हकीकत से अंजान सरकार अपनी पीठ खुद थपथपाती है। बहरहाल बड़ी अकबई तो एक उदाहरण हैं मप्र में ऐसे ना जाने कितने स्कूल होंगे जहाँ ऐसा हाल होगा, संभव है और बुरा हो, ऐसे में नौनिहालों के भविष्य क्या होगा समझा जा सकता है।
डबरा से अरुण रजक की रिपोर्ट